सहरसा के तिलाठी गांव के अमरेंद्र कुमार (45) आज पूरे इलाके में सफल मत्स्य पालक के रूप में पहचाने जाते हैं। सरकारी योजना का फायदा लेकर उन्होंने अपने गांव में दो बड़े तालाबों में देसी मछलियों का पालन शुरू किया, जिससे आज वे लगभग 8 लाख रुपए सालाना की आमदनी कर रहे हैं। अमरेंद्र कुमार मूलतः खेती-किसानी से जुड़े परिवार से हैं। उन्होंने कटिहार जिले के डीएन कॉलेज से ग्रेजुएशन पूरा किया और इसके बाद कोलकाता जल बोर्ड में लिपिक के रूप में लगभग दो वर्षों तक नौकरी की। अमरेंद्र बताते हैं कि नौकरी के दौरान उनकी दोस्ती कुछ किसानों से हुई और वहीं से उन्हें कृषि की ओर गहरी प्रेरणा मिली। वे कहते हैं, “बंगाल क्षेत्र में मैंने देखा कि एक अच्छी खेती से होने वाली आय सरकारी नौकरी से कहीं ज्यादा है। तब मुझे महसूस हुआ कि गांव लौटकर कृषि करना ही बेहतर विकल्प होगा।” नौकरी छोड़कर अमरेंद्र साल 2002 में गांव लौटे साल 2002 में नौकरी छोड़कर अमरेंद्र गांव लौट आए और वर्षों तक पारंपरिक खेती धान, गेहूं जैसी फसलों पर काम किया। साल 2017-18 में जब पारंपरिक खेती में अपेक्षित मुनाफा नहीं दिखा, तब उन्होंने मत्स्य पालन की ओर रुख किया। शुरुआत छोटे पैमाने पर की, लेकिन 2022 में उन्होंने इसे बड़े रूप में विस्तार दिया। 8 लाख रुपए की परियोजना स्वीकृति मिली मुख्यमंत्री मत्स्य विकास योजना के तहत उन्हें 8 लाख रुपए की परियोजना स्वीकृति मिली, जिसमें 4 लाख रुपए अनुदान के रूप में प्राप्त हुए। इसके बाद उन्होंने लगभग चार एकड़ क्षेत्र में दो बड़े तालाब खुदवाए और आधुनिक तरीके से मछली पालन शुरू किया। 50 हजार लाइन मछली के बच्चों को तालाब में छोड़ा अमरेंद्र बताते हैं कि वे पश्चिम बंगाल के मालदा के नारायणपुर गांव से गुणवत्तापूर्ण मछली बीज (फिंगर लिंग) मंगाते हैं। उन्होंने एक क्विंटल लगभग 50 हजार लाइन मछली के बच्चों को तालाब में छोड़ा था। शुरुआती दिनों में अधिक मात्रा में बीज डालने के कारण कुछ समस्याएं आईं, लेकिन बाद में उन्होंने संतुलित मात्रा में बीज डालना और सही आकार की फिंगर लिंग चुनना सीख लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि इस वर्ष एक तालाब से करीब 7 क्विंटल मछली उत्पादन होने का अनुमान है। 5–6 लाख रुपए का शुद्ध फायदा आसानी से अमरेंद्र का कहना है कि मत्स्य पालन से नियमित खर्च निकालने के बाद भी उन्हें 5–6 लाख रुपए का शुद्ध फायदा आसानी से हो जाता है। उनकी सफलता से क्षेत्र के कई युवा प्रेरित हो रहे हैं और मत्स्य विभाग की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए आगे आ रहे हैं।
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