समस्तीपुर के उजियारपुर प्रखंड के भगवानपुर कमला गांव स्थित देवखाल चौर महाभारत कालीन इतिहास से जुड़ा है। मान्यता है कि लक्षागृह कांड के बाद पांडव अपनी मां कुंती के साथ देवखाल चौर में सुरंग के माध्यम से बाहर निकले थे। इसके बाद इस स्थल पर कुंती ने छठ व्रत किया था। समाजसेवी राजू सहनी बताते हैं कि ऐतिहासिक महत्व को देखते हुए इस स्थल के प्रति लोगों की आस्था है। हाल ही में पर्यटन विभाग की टीम ने स्थल का निरीक्षण भी किया था। उन्होंने कहा कि पूर्वज बताते हैं कि यहां पर ही सुरंग निकला था। जो बाद में कटाव के कारण बंद हो गया, लेकिन लोग इस घाट पर पूरी आस्था के साथ छठ पूजा करते हैं। उन्होंने अपने निजी फंड से घाटों का जीर्णोद्धार कराया है। कभी नहीं सुखता देवखाल चौर करीब पांच हजार से अधिक एकड़ में फैले देवखाल चौर में कभी पानी नहीं सुखा। जिस कारण कमला के साथ ही आसपास के लोग यहां छठ पर्व करने के लिए आते हैं। माना जाता है यहां से करीब 5 किमी दूर पांडव स्थान में लक्षागृह कांड हुआ था। जहां से सुरंग के रास्ते पांडव देवखाल चौर में बाहर निकले थे। उस समय कार्तिक मास चल रहा था। पांडवों की जान बचने के बाद इसी घाट पर कुंती ने छठ पूजा की थी। ग्रामीण विनोद सहनी बताते हैं कि हम लोग पूर्वजों से सुनते आ रहे हैं कि पांडव स्थान (दलसिंहसराय) में लक्षागृह कांड हुआ था। जहां से पांडव बच कर निकले थे। जिसके बाद कुंती ने यहीं पर छठ किया था। यहां जयमंगला स्थान भी है। जो बिहार में दो स्थानों पर ही है। उन्होंने कहा कि इस स्थल की मिट्टी उर्वरा शक्ति से भरपूर है। कहा जाता है कि इस घाट पर थाली भी बड़ी संख्या में थी। लोग यहां पर आकर भोजन बनाकर खाते थे। जिसके बाद थाली स्वत: कमला नदी से समां जाती थी। सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे इस बार इस घाट पर बड़े पैमाने पर तैयारी की गई है। कमला पंचायत के साथ ही आसपास के रायपुर, परोरिया आदि पंचायतों के लोग भी यहां पहुंचेंगे। देवखाल चौर आने वाले सभी रास्तों पर राजू सहनी की ओर से लाइटिंग की व्यवस्था की गई है। घाट का निर्माण लगभग पूरा हो चुका है। इस बार रात भर रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया गया है। इस बार प्रखंड के 28 पंचायत में कुल 32 घाटों का निर्माण कराया गया है और लाइटिंग की व्यवस्था कराई गई है।
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