बिहार के मिथिलांचल की धरती पर एक ऐसी रेललाइन है, जो अद्भुत भी है और अविश्वसनीय भी। यह देश की शायद पहली और एकमात्र रेललाइन है, जहां 40 किलोमीटर में 38 रेलवे फाटक हैं, लेकिन एक भी गेटमैन नहीं। यह अनोखी कहानी सकरी-बिरौल-हरनगर रेलखंड की है। यहां पिछले 17 वर्षों से रेल परिचालन जोखिम और इंतजार के बीच चल रहा है। इस रेललाइन पर ट्रेनें दौड़ती नहीं हैं। वे रुक-रुक कर रेंगती हैं। हर गुमटी पर लोको पायलट को ट्रेन रोकनी पड़ती है। नीचे उतरकर गुमटी बंद करनी होती है। फिर ट्रेन आगे बढ़ती है। कुछ दूरी पर फिर वही प्रक्रिया दोहराई जाती है। 38 गुमटियों पर यही सिलसिला चलता है। 40 किलोमीटर का सफर, जो एक घंटे में पूरा होना चाहिए, 3-4 घंटे में तय होता है। दिन के समय जो गेटमैन रहते हैं, उनके और स्टेशन मास्टर के बीच कोई कम्यूनिकेशन नहीं रहता। 17 वर्षों बाद भी अधूरा सफर सकरी से बिरौल तक ट्रेन सेवा वर्ष 2008 में शुरू हुई थी। वर्ष 2018 में बिरौल से हरनगर तक लाइन का विस्तार हुआ। यह परियोजना सकरी-कुशेश्वरस्थान-हसनपुर-खगड़िया रेल परियोजना का हिस्सा है। इसका उद्देश्य मिथिलांचल को सीधे खगड़िया से जोड़ना है। लेकिन आज भी बिथान से हरनगर और आगे का काम अधूरा है। स्टेशन नहीं, सिर्फ हॉल्ट इस रेलखंड की विडंबना यहीं खत्म नहीं होती। वर्ष 2008 से अब तक इस रूट पर एक भी पूर्ण स्टेशन विकसित नहीं हुआ। यहां केवल छह हाल्ट हैं। इनमें जगदीशपुर, नेऊरी, बिरौल, बेनीपुर, मां जगदम्बा हाल्ट और बैंगनी हाल्ट शामिल हैं। न प्लेटफॉर्म की समुचित सुविधा है। न यात्री प्रतीक्षालय। न ही सुरक्षा के पर्याप्त इंतजाम। इस रूट में ट्रेनें कम चलती है। इसलिए यात्री भी कम सफर करते हैं।आगे ट्रेनों की संख्या बढेगी और रेल रूट विकसित होगा तो गेटमैन सहित अन्य सुविधाओं पर विचार किया जाएगा। -सरस्वती चंद्र, सीपीआरओ, पूर्व मध्य रेलवे, हाजीपुर
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