संविधान दिवस के अवसर पर बेतिया जिला मुख्यालय पर संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर किसानों और मजदूरों ने प्रदर्शन किया। इस दौरान अखिल भारतीय किसान महासभा और ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (एक्टु) के नेताओं ने केंद्र सरकार की नीतियों का विरोध किया। जिला कलेक्टर के सामने जमकर प्रदर्शन अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय पार्षद और पश्चिम चंपारण के जिलाध्यक्ष सुनील कुमार राव ने जिला कलेक्टर के समक्ष प्रदर्शन को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि पांच साल पहले कोविड महामारी के दौरान केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानूनों के माध्यम से खेती को बड़े पूंजीपतियों और कॉर्पोरेट घरानों को सौंपने की साजिश रची थी। ‘गन्ना मूल्य 600 रुपए किए बिना पेराई सत्र शुरू’ राव ने आरोप लगाया कि मंडी अधिनियम और आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन करके सरकार ने फसल खरीद और खाद्य वितरण पर कॉर्पोरेट नियंत्रण स्थापित करने का प्रयास किया, जिससे मूल्य समर्थन और खाद्य सुरक्षा समाप्त हो जाती। उन्होंने यह भी कहा कि गन्ना मूल्य 600 रुपए किए बिना पेराई सत्र शुरू हो गया है और धान का मूल्य 3100 रुपए नहीं किया गया है, ना ही उसकी खरीद शुरू हुई है। ‘चार नई श्रम संहिताएं आने से मजदूर वर्ग कमजोर’ ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन (एक्टु) के जिला संयोजक जवाहर प्रसाद ने कहा कि कोरोना काल में पुराने 44 श्रम कानूनों को खत्म कर चार नई श्रम संहिताएं लाई गईं। इनका उद्देश्य मजदूर वर्ग के अधिकारों को कमजोर करना था। इन संहिताओं में हड़ताल के अधिकार को सीमित करना, कार्यस्थल सुरक्षा को कमजोर करना, ‘हायर एंड फायर’ नीति की अनुमति देना और 8 घंटे के कार्य-दिवस को बढ़ाकर 12 घंटे करना जैसे प्रावधान शामिल हैं। किसानों के साथ विश्वासघात किया गया अखिल भारतीय किसान महासभा के राज्य पार्षद बिनोद यादव ने कहा कि मोदी सरकार ने स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को कानूनी हक का दर्जा देने की बजाय किसानों के साथ विश्वासघात किया है। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि तमाम मेहनतकश वर्गों के विरोध के बावजूद हाल ही में चार श्रम संहिताओं को लागू कर दिया गया है, जिसके खिलाफ संघर्ष जारी है।
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