संघ के तीसरे सरसंघचालक बालासाहब ईश्वर का अस्तित्व मानते थे, व्रत, पूजा, पाठ से उनका कोई विरोध नहीं था. किंतु स्वयं वह संध्या-वंदन, स्तोत्रों का पाठ नित्य नैमित्तिक कर्म आदि में उदासीन थे. एक बार उन्होंने कहा, ‘मुझे संघ का कम्युनिस्ट कहते हैं’. RSS के 100 सालों के सफर की 100 कहानियों की कड़ी में आज पेश है बालासाहब देवरस की कहानी.
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