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शिशु मृत्यु प्रसव के 77 हजार मामलों पर अमेरिकी रिपोर्ट:UP-बिहार के निजी अस्पतालों में नवजात मौत का जोखिम सरकारी से 60% ज्यादा

अमेरिका के रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर कम्पैशनेट इकोनॉमिक्स (RICI) के शोधकर्ता नाथन फ्रांज की नई स्टडी सामने आई है। इसमें खुलासा हुआ है कि भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार के ग्रामीण इलाकों में निजी अस्पतालों में जन्म लेने वाले नवजात बच्चों की मौत का खतरा सरकारी अस्पतालों की तुलना में 60% अधिक है। नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 और नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 के 77 हजार डिलिवरी केसेस का विश्लेषण किया गया। इसमें सामने आया कि निजी अस्पतालों में नवजात मृत्यु दर प्रति 1000 में से 51 है, जबकि सरकारी अस्पतालों में यह सिर्फ आंकड़ा प्रति 1000 पर 32 का है। निजी अस्पताल चुनने वाली माताएं अधिक संपन्न, शिक्षित और बेहतर पोषण वाली होती हैं। इसके बावजूद उनके बच्चों का जोखिम अधिक है। इसका मूल कारण है निजी अस्पतालों का अधिक कमाई के उद्देश्य से किए जाने वाले अनावश्यक चिकित्सकीय हस्तक्षेप। बिहार: प्राइवेट अस्पताल में 8% प्रसव बढ़ने पर मौत में प्रति एक हजार पर 11 का इजाफा UP: जिन गांवों में प्राइवेट अस्पताल में प्रसव ज्यादा होते हैं वहां मौतें भी ज्यादा सुझाव: अस्पताल बदलने से ही 1.1 लाख नवजातों की जान बच सकती है
ग्रामीण भारत में निजी अस्पतालों में प्रसव नवजातों के लिए खतरनाक है क्योंकि वे माताओं का स्वास्थ्य नहीं, बल्कि निजी अस्पतालों के ज्यादा सेवाएं ज्यादा कमाई मॉडल पर आधारित है। तमाम कमियों के बावजूद सार्वजनिक अस्पताल में प्रसव को अधिक प्राकृतिक और सुरक्षित रखा जाता है। न बच्चे को तुरंत अलग किया जाता है और न ही अनावश्यक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगर निजी अस्पताल सरकारी अस्पतालों की तरह काम करने लगें, तो यूपी-बिहार में हर साल 37,000 से ज्यादा नवजातों की जान बच सकती है। सिर्फ अस्पताल बदल देने से यूपी-बिहार में हर साल 1.1 लाख से ज्यादा नवजातों की जान बच सकती है। सबसे आसान सुधार यह है- निजी अस्पतालों में अनावश्यक हस्तक्षेप रोकें और कमाई मॉडल खत्म करें।


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