औरंगाबाद के रामाधार मेहता लगातार खेती में नए प्रयोग कर रहे हैं। उनका कहना है कि खेत में लगी फसलों को रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों से बचाने के लिए प्राकृतिक तरीकों का यूज करते हैं। 67 साल के रामाधार मेहता बताते हैं कि मैंने रसायनमुक्त खाद खुद तैयार किया है, जिसे ‘मटका खाद’ नाम दिया है। इसके अलावा, ‘अमृत जल’ बनाया है, जिसका छिड़काव फसलों पर करते हैं। अमृत जल का छिड़काव फसलों को कीट-व्याधि से बचाता है। इसे भी उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों की सलाह पर खुद विकसित किया है। रामाधार मेहता बिहार के औरंगाबाद जिले के ओबरा प्रखंड के रतवार (सोनहुली पंचायत) के रहने वाले हैं। वे बताते हैं कि खेती तभी से करते आ रहे हैं, जब हल-बैल का जमाना था। बाद में खेती में नए-नए औजारों का यूज किया जाने लगा, तो उन्होंने उन तरीकों का भी यूज किया, क्योंकि समय के अनुसार खुद को ढालना जरूरी होता है। वे कुसमौर भारतीय बीज उत्पादन केंद्र, मऊ (उत्तर प्रदेश) के संपर्क में रहते हैं। साथ ही भदोही के कृषि विज्ञान केंद्र के कृषि वैज्ञानिकों से भी सलाह लेते हैं। नेचुरल खेती में उत्पादन में गिरावट हुई तो बनाया ‘मटका खाद’, ‘अमृत जल’ रामाधार बताते हैं कि प्राकृतिक खेती आज की सबसे बड़ी जरूरत है। लोग रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग से तरह-तरह की हेल्थ से संबंधित परेशानियों से घिरते जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि प्राकृतिक खेती में उत्पादन में गिरावट हुई तो उन्होंने खुद ही घर पर ‘मटका खाद’ और ‘अमृत जल’ तैयार किया। जानिए, मटका खाद कैसे तैयार किया जाता है रामाधार महतो बताते हैं कि मटका खाद पूरी तरह से जैविक होती है। इसे बनाने के लिए एक किलो गाय का गोबर, 250 ग्राम गुड़, 250 ग्राम बेसन, आधा किलो अमरूद के फलों का गुदा बंद जार में रखते हैं। इसमें करीब एक लीटर पानी लेते हैं। इसे सात दिन बंद कर रखते हैं। वे बताते हैं कि हर दिन समय-समय पर तैयार किए गए मिक्स को क्लॉक वाइज इसे घुमाकर हिलाते हुए मिक्स करते हैं। 7वें दिन मटका खाद बनकर तैयार हो जाती है। इस घोल को पानी में घोलकर खेत में डाला जाता है। रामाधार महतो बताते हैं कि इस मटका खाद से मिट्टी में जीवांश की पूर्ति हो जाती है। 12 लीटर पानी में 100 एमएल गो मूत्र मिलाकर तैयार करते हैं अमृत जल 12 लीटर पानी में 100 एमएल गो-मूत्र मिलाते हैं। इसका छिड़काव स्प्रे से फसलों पर करते हैं। उन्होंने काला नमक धान की खेती की थी, जिस पर अमृत-जल का छिड़काव उन्होंने किया था। रामाधार ने बताया कि अमृत जल और मटका खाद का प्रयोग 4 दिनों के अंतराल पर किया जाता है। जिस दिन अमृत जल का छिड़काव करते हैं, उसके चौथे दिन मटका खाद का घोल खेत में डालते हैं। यह प्रक्रिया फसल की आवश्यकतानुसार तीन-चार हफ्तों तक दुहराई जा सकती है। रामाधार ने बताया कि वे प्राकृतिक विधि से खेती करते हैं। इस विधि से उपजाई जाने वाली फसलों में अमृत-जल व मटका खाद के प्रयोग से अच्छी उपज प्राप्त हुई है। वे 4 बीघे में प्राकृतिक तरीके से काला नमक धान के अलावा गेहूं, मूंगफली, मूंग की फसल उपजाते हैं। सब्जियों की खेती भी करते हैं। उनसे सीखने के लिए आसपास के गांवों के किसान भी आते हैं। तनाछेदक कीट पर काबू पाने के लिए उन्होंने सिंचाई के समय पानी में 200 एमएल जले मोबिल का प्रयोग किया था, जिसका परिणाम उत्साह बढ़ाने वाला रहा था। ——————— इन प्रगतिशील किसान से और जानें 9771114822 ——————— यह खबर दूसरों से भी शेयर करें ——————— आप भी किसान हैं और कोई अनोखा नवाचार किया है तो पूरी जानकारी, फोटो-वीडियो अपने नाम-पते के साथ हमें 8770590566 पर वॉट्सऐप करें। ध्यान रहे, आपका किया काम किसी भी मीडिया या सोशल मीडिया में जारी न हुआ हो।
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