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वह वाक्य जो फिसलकर गिर पड़ा… क्या सिर्फ हास्य था, या सदियों से चली आती किसी छिपी हुई सीढ़ी का चरमराना?

हर आदमी की दो मौतें होती हैं. एक जब वह सच को देखता है, और दूसरी जब सच उसे देख लेता है. आज सच ने सदन को देख लिया. तारीफ तब तक तारीफ नहीं होती, जब तक उसमें बराबरी का स्पर्श न हो.


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