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वन विभाग के लिए सीएम धामी के निर्देश मानना असंभव:अधिकारी बोले- पहाड़ों पर 30 मिनट में पहुंचना मुश्किल, सरकार के ऑर्डर ने गिराया मनोबल

उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में इन दिनों जंगल जानवरों के हमलों की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। अकेले 2025 में अभी तक तेंदुए, गुलदार और भालू के हमलों में 35 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 193 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं। बीते दो महीनों में इन घटनाओं में अचानक तेजी आई है। जिन इलाकों में हमले हुए, वहां लोगों में सरकार और स्थानीय विधायकों के प्रति नाराजगी भी बढ़ी है। हालांकि, दो दिन पहले ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने वन्यजीव-मानव संघर्ष पर समीक्षा बैठक की है। इसमें सरकार ने वन विभाग को ज्यादा सतर्क रहने और किसी भी घटना के 30 मिनट के अंदर मौके पर पहुंचने का निर्देश दिया है। साथ ही, वन विभाग और जिला प्रशासन को यह भी कहा गया है कि खतरे वाले इलाकों में बच्चों को स्कूल तक एस्कॉर्ट किया जाए। लेकिन दैनिक भास्कर एप ने जब इस पर वन विभाग के कई अधिकारियों से बात की, तो सामने आया कि सरकार के ये निर्देश ज्यादातर ‘डैमेज कंट्रोल’ और लीपापोती जैसे हैं। वन विभाग के मुताबिक, इन आदेशों को ग्राउंड लेवल पर लागू करना लगभग असंभव है। पहले वो निर्देश समझिए जो सरकार ने दिए 1- मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटना की सूचना मिलने के 30 मिनट के अन्दर वन विभाग की टीम मौके पर पहुंच जाए। इसके लिए संबंधित डीएफओ और रेंजर की जिम्मेदारी तय की जाए।
2- जिन क्षेत्रों में जंगली जानवरों का अधिक भय है, ऐसे क्षेत्रों में स्कूली बच्चों को स्कूल तक छोड़ने और घर तक लाने के लिए वन विभाग और जिला प्रशासन द्वारा एस्कॉर्ट की व्यवस्था की जाए। 2 प्वाइंट्स में समझिए वन विभाग के लिए इन्हें निभाना असंभव क्यों? राज्य का 70% हिस्सा वनों से घिरा उत्तराखंड की भौगोलिक स्थिति को देखा जाए तो राज्य का करीब 70% हिस्सा वनों से घिरा हुआ है जिसमें जंगली जानवरों की संख्या भी बहुत ज्यादा है ऐसे में जंगलों के आसपास रहने वाले इलाकों के साथ-साथ अब जंगली जानवरों की मौजूदगी जंगल से दूर रिहाइशी इलाकों में भी देखने को मिल रही है जिसके कारण मानव वन्य जीव संघर्ष के मामलों में भी हर साल तेजी देखने को मिल रही है जबकि साल 2025 में मानव वन्यजीव संघर्ष के मामलों ने पिछले 3 सालों के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। गढ़वाल में पौड़ी, चमोली और कुमाऊं में चंपावत, पिथौरागढ़ हॉटस्पॉट वैसे तो मानव वन्य जीव संघर्ष के मामले उत्तराखंड के सभी जिलों में है लेकिन इन मामलों में इस साल सबसे ज्यादा घटनाएं पौड़ी और चमोली जिले से सामने आई हैं जबकि कुमाऊं में चंपावत जिले में सबसे ज्यादा घटनाएं दर्ज की गई हैं। इन दोनों जगहों पर गुलदार भालू और बाघ के हमले की सबसे ज्यादा घटनाएं हुईं हैं। हैरानी की बात यह है कि इन इलाकों में भालू के हमलों की घटनाएं ऐसे समय में बढ़ रही है जब भालू निद्रा अवस्था के लिए ऊंचाई वाले इलाकों पर चला जाता है लेकिन इस साल भालू के व्यवहार में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। पौड़ी में हमले बढ़े, तो DFO को हटाया गया 4 दिसंबर को पौड़ी के गजल्ड गांव में गुलदार ने एक व्यक्ति को मार दिया था। इस घटना के बाद ग्रामीणों ने गुस्से में वन कर्मियों को कमरे में बंद कर दिया और विधायक के सामने ही मुर्दाबाद के नारे लगाए थे। लगातार घटनाओं के बाद सरकार ने DFO अभिमन्यु को हटाने के आदेश जारी कर दिए। पौड़ी में तैनात वन कर्मियों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया- हम दिन-रात गश्त कर रहे हैं, लेकिन सरकार के नए आदेश ऐसे हैं जो कर्मचारियों का मनोबल गिराते हैं। 30 मिनट में पहुंचना मुश्किल लेकिन रिएक्शन टाइम हो कम उत्तराखंड वन प्रमुख रंजन कुमार मिश्रा कहते हैं कि पर्वतीय क्षेत्रों में गांव बहुत दूरी पर होते हैं लेकिन घटना होने पर जो भी कर्मचारी या अधिकारी घटनास्थल के पास है उसको घटनास्थल पर बिना देरी किए जल्दी पहुंचना जरूरी है जिसमें कोई भी लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी। वन प्रमुख रंजन कुमार मिश्रा का कहना है कि प्रदेश की भौगोलिक स्थिति चुनौती पूर्ण है ऐसे में कोई दुर्घटना होती है तो रिस्पांस टाइम को कम किया जाए।


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