उत्तराखंड के जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगने वाली वन तुलसी अब धीरे-धीरे एक उभरती हुई व्यवसायिक फसल के रूप में पहचान बना रही है। सेलाकुई स्थित सगंध पौध केंद्र में हुए शोध में यह साबित हुआ है कि वन तुलसी से निकाला गया तेल लौंग के तेल का एक बेहतरीन विकल्प बन सकता है। इसकी खुशबू, औषधीय विशेषताएं और बाजार में तेजी से बढ़ती मांग इसे फार्मा, फ्लेवर, परफ्यूम और एरोमा उद्योग का नया स्टार प्रोडक्ट बना रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में उत्तराखंड के पहाड़ी किसानों के लिए यह फसल आर्थिक रूप से लाभकारी साबित हो सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां जंगली जानवर पारंपरिक फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं। 2 प्वाइंट्स में पढ़िए वन तुलसी का तेल क्यों खास… 60 किलो तेल निकालने पर होगी 2 लाख से ज्यादा कमाई सगंध पौध केंद्र के वैज्ञानिकों ने बताया कि वन तुलसी पूरी तरह बारहमासी पौधा है। एक हेक्टेयर में लगभग 20,000 पौधे आसानी से लगाए जा सकते हैं। सबसे खास बात यह है कि जंगली जानवर इस पौधे को नुकसान नहीं पहुंचाते, इसलिए पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती और भी फायदेमंद साबित हो सकती है। प्रति हेक्टेयर पत्तियों का उत्पादन लगभग 200 क्विंटल है, जिससे तेल उत्पादन लगभग 60 किलो तक हो सकता है। बाजार में तेल की औसत कीमत 4,000 रुपए प्रति किलो है, जिससे एक हेक्टेयर से कुल संभावित आय लगभग 2 लाख 40 हजार रुपए तक पहुंच सकती है। निदेशक बोले- वेरायटी डेवलपमेंट पर रहेगा फोकस सगंध पौध केंद्र के निदेशक नृपेंद्र सिंह चौहान ने कहा कि सेंटर में वन तुलसी की व्यवसायिक खेती का ट्रायल सफल रहा है और उद्योग जगत में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि वन तुलसी के तेल में लौंग जैसी प्राकृतिक सुगंध और औषधीय गुण हैं। कई कंपनियां इसे पहले से ही क्लोव ऑयल (लौंग के तेल) की जगह उपयोग कर रही हैं और परिणाम बेहद उत्साहजनक हैं। उन्होंने यह भी बताया कि आने वाले समय में किसानों को इसकी व्यवसायिक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। यह तेल फार्मा इंडस्ट्री, परफ्यूमरी, फ्लेवर इंडस्ट्री, एरोमा थेरेपी, आयुर्वेदिक उत्पाद और हर्बल चाय जैसे कई क्षेत्रों में इस्तेमाल हो रहा है। सबसे खास बात यह है कि वन तुलसी में एक साल लगाकर हर तीन महीने में कटिंग की जाती है और यह चक्र 6–7 साल तक चलता है। आने वाले समय में सेंटर इसकी वेरायटी डेवलपमेंट पर फोकस करेगा। 6 जिलों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है शोध के सकारात्मक परिणामों ने साबित कर दिया है कि वन तुलसी न सिर्फ एक सुगंधित औषधीय पौधा है, बल्कि किसानों के लिए बेहतर आमदनी का नया विकल्प भी है। एरोमा सेक्टर की बढ़ती मांग और लौंग के तेल का प्राकृतिक विकल्प मिलने से इस फसल का भविष्य बेहद उज्ज्वल माना जा रहा है। उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में जहां जंगली जानवरों से खेत सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं, वहां यह पौधा किसानों के लिए विशेष लाभकारी साबित होने वाला है। क्योंकि जंगली जानवर इस पौधे को नहीं खाते हैं। यह पौधा अल्मोड़ा, नैनीताल, चमोली, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग और उत्तरकाशी जैसे पर्वतीय जिलों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है।
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