रेणुका चौधरी का कहना है कि हमारे बच्चे, हमारे बुजुर्ग, हमारे देशवासी, हमारे दिल्लीवासी शर्मिंदा हो रहे हैं. हम दुनिया के नज़रों में ये सोचते हैं कि भारत जो एक बड़ा लोकतंत्र है उसकी राजधानी में हम सांस तक नहीं ले पा रहे हैं. और इन लोगों को ये अहसास नहीं हो रहा कि ये एक बहुत बड़ा मुद्दा है. संसद में इस पर कम से कम दस घंटे की चर्चा होनी चाहिए थी. वंदे मातरम एक सम्मानित गीत है जिसे हम सभी जानते हैं, लेकिन आज कुछ लोग इसे एक नए नशे की तरह लेकर हमें समझा रहे हैं कि इसका मतलब क्या है. लेकिन हमारे रग रग में वंदे मातरम समाया हुआ है.
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