पश्चिमी चंपारण के लौरिया चीनी मिल से जुड़े 997 बोरा चीनी घोटाले के 35 साल पुराने मामले में निगरानी कोर्ट ने फैसला सुनाया है। कोर्ट ने मिल के प्रशासन प्रमुख, लेखा अधिकारी और चार अन्य कर्मियों को सजा सुनाई, जिसके बाद सभी को मुजफ्फरपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। मिल के प्रशासन प्रमुख रहे भोजपुर के नंद कुमार सिंह और प्रबंध निदेशक के विशेष सहायक लखीसराय के उमेश प्रसाद सिंह को दो-दो साल की जेल और दस-दस हजार रुपये जुर्माने की सजा दी गई है। तीन-तीन साल की जेल और 25-25 हजार रुपए जुर्माना किया गया वहीं, गोपालगंज के लेखा पदाधिकारी अजय श्रीवास्तव, बेतिया के बिक्री लिपिक लालबाबू प्रसाद, पूर्वी चंपारण के लेखा लिपिक सुनील श्रीवास्तव और मधुबन के बिक्री प्रभारी धीरेंद्र झा को तीन-तीन साल की जेल और 25-25 हजार रुपए जुर्माना किया गया है। अदालत ने सभी दोषियों को बॉन्ड पर रिहा करने का आदेश दिया विशेष लोक अभियोजक कृष्णदेव साह ने बताया कि सजा सुनाए जाने के बाद अदालत ने सभी दोषियों को बॉन्ड पर रिहा करने का आदेश दिया है। दोषियों की उम्र लगभग 70 से 80 वर्ष के बीच बताई गई है। वे इस सजा के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील कर सकते हैं। आईपीसी की धारा 463 के तहत दोषी ठहराया गया स्पेशल पीपी कृष्णदेव साह के अनुसार, दोषियों को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत दोषी पाया गया है। दोषियों की अधिक उम्र को देखते हुए उन्हें केवल भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत सजा सुनाई गई। फर्जी कागजात बनाने के मामले में उन्हें आईपीसी की धारा 463 के तहत दोषी ठहराया गया है। कुल 18 अधिकारियों और कर्मियों पर चार्जशीट दाखिल की थी इस मामले में निगरानी ने कुल 18 अधिकारियों और कर्मियों पर चार्जशीट दाखिल की थी, जिनमें से तीन की मौत हो चुकी है। शेष 15 आरोपितों में से नौ अभी भी फरार हैं, जिन पर स्थाई वारंट जारी है। 10 दिसंबर को छह आरोपितों को दोषी पाया गया था। यह घोटाला सितंबर 1990 में हुआ था, जब बिहार स्टेट शुगर कॉर्पोरेशन के लौरिया चीनी मिल से 997 बोरा चीनी गायब हो गई थी और मिल के महाप्रबंधक एचबीएन सिंह व अन्य अधिकारियों ने फर्जी फर्मों के माध्यम से इसकी बिक्री दर्शाई थी।
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