पटना के राजेंद्र नगर के रहने वाले प्रोफेसर डॉ. संजीव धारी सिन्हा लीबिया में फंसे हुए हैं। वे साल 2014 से भारत लौटने का प्रयास कर रहे हैं, लेकिन सफल नहीं हो पा रहे हैं। प्रोफेसर सिन्हा ने भारतीय दूतावास पर लापरवाही का आरोप लगाया है, जिसके कारण उन्हें वीजा और वेतन संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। प्रोफेसर सिन्हा ने मानवाधिकार मामलों के वकील एसके झा को कॉल किया और मदद की गुहार लगाई। वकील ने इस संबंध में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और बिहार राज्य मानवाधिकार आयोग में दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं। मानवाधिकार मामलों के वकील एसके झा ने बताया कि प्रोफेसर डॉ. संजीव धारी सिन्हा के मामले में सरकार गंभीर नहीं हैं, कारण कि विशेष स्थिति में पूर्व की तिथि से वीजा देने का प्रावधान हैं, लेकिन इसके लिए संबंधित संस्थान और सरकार की भूमिका अहम हैं। लेकिन प्रस्तुत मामले में सरकार गंभीर नहीं हैं, जिस कारण प्रोफेसर सिन्हा की वतन वापसी संभव नहीं हो पा रही हैं, जो मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं। हालांकि मामले के संबंध में लीबिया के उपशिक्षा मंत्री ने पहल भी की और अलमेरगिब यूनिवर्सिटी ने भी सैलरी उनके अकाउंट में भेजने पर सहमति दे दी। लेकिन भारतीय दूतावास की सुस्ती के कारण मामला सुलझ नहीं रहा है।सिर्फ वैध तरीके से पूरी अवधि के वीजा मिलने पर ही उनकी वतन वापसी संभव है। संजीव धारी सिन्हा ने भारत और बिहार सरकार से की अपील प्रोफेसर डॉ. संजीव धारी सिन्हा ने भारत सरकार और बिहार सरकार से गुहार लगाई कि किसी तरह उन्हें लीगल एग्जिट वीजा और सहायक प्रोफेसर होने का कागज दिला दे। वे पैसा बाद में लीबिया से ले लेंगे लेकिन लीगल एग्जिट वीजा मिल जाए तो घर लौट जायेंगे। प्रो. सिन्हा लीबिया की राजधानी त्रिपोली से 80 किलोमीटर दूर खुम्स में हैं। वे अलमेरगिब यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी विषय के सहायक प्रोफेसर रहे हैं। उनका भारतीय मुद्रा के हिसाब से करीब 1.5 करोड़ रुपया बकाया हैं। न उन्हें बकाया वेतन दिया जा रहा है और न ही लीगल वीजा। डॉ.सिन्हा साल 2009 में लीबिया गये थे और साल 2017 तक त्रिपोली यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर थे। प्रोफेसर डॉ. सिन्हा के पास न तो लीगल वीजा है और न ही आई कार्ड हैं। मामला अब मानवाधिकार आयोग पहुंच चुका है, जिस कारण अब सरकार को मामले में हस्तक्षेप करना पड़ेगा और प्रोफेसर सिन्हा की वतन वापसी के लिए पहल करना होगा। वीजा न होने के कारण वेतन हवाला के दायरे में आ रहा है प्रोफेसर सिन्हा लीबिया के त्रिपोली यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी विभाग में कार्यरत थे। उन्होंने बताया कि 2014-15 और 2015-16 में उनकी कागजी कार्रवाई पूरी नहीं की गई। वीजा संबंधी दिक्कतों के कारण 2017 में त्रिपोली यूनिवर्सिटी ने उन्हें 39 माह की बजाय केवल 21 माह का ही वेतन दिया। उनका आरोप है कि वीजा न होने के कारण यह वेतन हवाला के दायरे में आता है। इसके बाद अलमेरगिब यूनिवर्सिटी में सेवा के दौरान भी उन्हें वैध वीजा नहीं दिया गया। प्रोफेसर सिन्हा के अनुसार, बिना वैध वीजा के विदेशों में सेवा देना गैरकानूनी है। इस अवधि में अर्जित राशि विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के दायरे में आएगी और पूरी सैलरी हवाला के तहत मानी जाएगी। अगस्त 2021 में ललन सिंह ने विदेश मंत्री से की थी अपील संजय सिन्हा के लीबिया में फंसने के मामले में जदयू के सीनियर नेता और केंद्रीय मंत्री ललन सिंह ने अगस्त 2021 में केंद्रीय विदेश मंत्री जयशंकर से गुहार लगाई थी। उन्होंने एक्स पोस्ट कर विदेश मंत्री को टैग करते हुए लिखा था- माननीय मंत्री जी, कृपया लीबिया में फंसे हमारे भाई की मदद करने को लेकर अधिकारियों को निर्देश जारी करें।
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