लद्दाख में क्या वाकई रैली में 200 लोग भी इकट्ठा नहीं कर पाएगी कांग्रेस? भीड़ के हिंसक प्रदर्शन से छिड़ी चर्चा

लद्दाख में क्या वाकई रैली में 200 लोग भी इकट्ठा नहीं कर पाएगी कांग्रेस? भीड़ के हिंसक प्रदर्शन से छिड़ी चर्चा

लद्दाख में हिंसा के बाद क्षेत्र में कांग्रेस की क्षमता पर ही सवाल उठने लगे हैं. प्रदर्शन के बाद विवादों में आए सोनम वांगचुक ने कहा था कि यहां पर कांग्रेस का कोई प्रभाव नहीं है. वो यहां पर भीड़ नहीं जुटा सकती. इसके बाद लद्दाख में ही कांग्रेस नेता तेसरिंग नाम्गयाल ने कहा कि हिंसा के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. रैली के लिए 200 लोगों को जुटाना भी मुश्किल होता है. इन बयानों के बाद सवाल उठता है कि क्या वाकई लद्दाख में कांग्रेस इतनी कमजोर है.

साल 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के बाद लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग कर केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया. यहां पर आखिरी चुनाव 2024 में लोकसभा का हुआ था. निर्दलीय उम्मीदवार मोहम्मद हनीफा ने यहां से जीत हासिल की थी. कुल 1,35,524 मतों में से हनीफा को 48.2 प्रतिशत वोट मिले. उनके खाते में 65,259 वोट आए थे, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी त्सेरिंग नामग्याल को 27.6 प्रतिशत वोट के साथ 37,397 वोट मिले थे. बीजेपी उम्मीदवार ग्यालसन को 23.6 प्रतिशत वोट के साथ 31,956 वोट मिले.

2019 और 2014 में बीजेपी जीती

इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से बीजेपी के जामयांग सेरिंग ने जीत हासिल की थी. उन्हें 42,914 वोट मिले थे. जबकि निर्दलीय उम्मीदवार सज्जाद हुसैन 31,984 वोटों के साथ दूसरे स्थान पर रहे और निर्दलीय उम्मीदवार असगर अली करबलाई 29,365 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रहे थे. 2014 के चुनाव की बात करें तो इसमें भी बीजेपी ने बाजी मारी थी. उसे महज 36 वोटों से जीत मिली थी. दूसरे और तीसरे नंबर निर्दलीय प्रत्याशी रहा था. कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी. उसे 26 हजार वोटों से संतोष करना पड़ा था.

कभी मजबूत हुआ करती थी कांग्रेस

लद्दाख में 1996 तक कांग्रेस मजबूत हुआ करती थी. बीजेपी के उदय के साथ उसका प्रभाव यहां पर कम होना शुरू हुआ. 1967 से लेकर 1984 तक कांग्रेस को इस सीट पर जीत मिली. यहां पर उसे पहली हार 1989 के चुनाव में मिली थी. निर्दलीय उम्मीदवार मोहम्मद हसन के हाथों कांग्रेस को शिकस्त का सामना करना पड़ा था. इसके बाद 1996 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की. इस चुनाव के बाद कांग्रेस का ये जलवा कम होता गया और अब तो हालत ये हो गई है कि उसके नेता 200 लोगों की भीड़ जुटाने की बात से भी डरते हैं.

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