31 मार्च 1997, सुबह ठीक 9:30 बजे। लखनऊ के पॉश इलाकों में से एक इंदिरानगर। शांत और साफ-सुथरी सड़कें। स्प्रिंगडेल स्कूल के आसपास काफी चहल-पहल थी। आज प्राइमरी सेक्शन का रिजल्ट आना था। उछलते-कूदते बच्चे अपने पेरेंट्स के साथ आ-जा रहे थे। तभी ठांय… ठांय… ठां…ठां…ठां… अचानक कान फोड़ देने वाली आवाज आने लगी। लगा जैसे किसी ने पटाखे की लड़ी चला दी हो, लेकिन आवाज पटाखों की नहीं, गोलियों की थी। पेरेंट्स एकदम जहां के तहां जम गए। सफेद कुर्ता-पायजामा पहने एक व्यक्ति सड़क के बीचों-बीच औंधे मुंह पड़ा था। एक महिला बच्चे को गोद में उठाए चीखते हुए भाग रही थी। किलर नंबर- 1: लम्बा, स्मार्ट। दोनों हाथों में पिस्टल लिए।
किलर नंबर- 2: छोटा कद, तेज-तर्रार, स्टेनगन थामे था।
किलर नंबर- 3: इन दोनों को कवर देने के लिए खड़ा था। लम्बा आदमी खून से लथपथ लाश के करीब आया और पैर से उसे सीधा करने की कोशिश की। जब लाश सीधी न हुई तो अपने साथियों से बोला- “ओए, इसे सीधा कर।” दोनों बड़ी बेदर्दी से लाश को खींचकर एक किनारे लाए और पलटकर देखा। लंबा आदमी गुर्राते हुए बोला- “मैगजीन बदल, फटाफट।” तीनों ने जल्दी से हथियारों की मैगजीन बदली। मैगजीन बदलते ही लंबे आदमी ने लाश को देखकर गाली दी- “मा@#$@#$द, बहुत घूर-घूरकर देखता था।” फिर दनदनाते हुए पांच-पांच गोलियां उसकी दोनों आंखों में दाग दीं। चेहरा गोलियों से छलनी हो गया था। तभी लाश में कुछ हरकत हुई। वो फिर चीखा- “साला, इस बार भी बच जाएगा? ओए, हार्ट किधर होता है… दाएं या बाएं?” छोटे कद वाले आदमी ने कहा- “अबे, दोनों तरफ ठोक दे। काहे रिस्क ले रहा है।” ठां…ठां…ठां…ठां… एक बार फिर दशहत गूंज उठी। लाश के सीने में दोनों तरफ दस-दस गोलियां दाग दी गईं। अब-तक दूसरी मैगजीन भी खाली हो चुकी थी। लंबे वाले आदमी ने गोलियों से छलनी और अब बेजान हो चुके शरीर पर नफरत से थूकते हुए फिर गाली दी- “मा@#$%” इसके बाद अपने साथियों से बोला- चल बे, खेल खतम। और फिर तीनों 100 मीटर दूर खड़ी सफेद कार की तरफ चल दिए। बिना किसी जल्दबाजी और घबराहट के बड़े इत्मीनान से गाड़ी में बैठे और गायब हो गए। उधर लाश पर मक्खियां भिनभिना रही थीं। ये कोई और नहीं, पूर्वांचल के सबसे बड़ा माफिया और पूर्व विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही थे। उस दिन यूपी के गैंगस्टर्स में एक नए नाम ने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई, नाम था- श्रीप्रकाश शुक्ला। गोरखपुर के मामखोर गांव का 22-23 साल का लड़का। जिस दौर में यूपी पुलिस, फर्स्ट वर्ल्ड वॉर में इस्तेमाल हुई थ्री नॉट थ्री राइफलें इस्तेमाल कर रही थी, उस समय श्रीप्रकाश AK-47 से गोलियां बरसा रहा था। श्रीप्रकाश ने शाही को कुल 126 गोलियां मारी थीं। बिना बीमारी एडमिट हुए मंत्री लालजी टंडन श्रीप्रकाश रोज अपने गुर्गों से जानता था कि प्रदेश के बड़े अखबारों में उसके बारे में कुछ छपा है या नहीं। अगर छपा है तो क्या छपा है। शुक्ला ने अपने एक गुर्गे को फोन लगाया- “क्या छपा है आज?” गुर्गा- “भैया, लालजी टंडन का बयान आया है। कह रहे हैं कि आप व्यापारियों से गुंडा टैक्स वसूल रहे हैं। जल्दी ही आपका खात्मा कर देंगे।” श्रीप्रकाश की आंखों में खून उतर आया। लालजी टंडन, यूपी की कल्याण सिंह सरकार में कैबिनेट मंत्री। श्रीप्रकाश ने दांत पीसते हुए कहा- “ससुरा, मंत्री बन गया है तो कुछ भी बोलेगा। मेरा खात्मा करेगा? निकाल उसकी कुंडली, दो दिन में पूरी डिटेल चाहिए। इस टंडन का चैप्टर बंद करना पड़ेगा।” ‘कुंडली निकालना’ श्रीप्रकाश की पुरानी ट्रिक थी। इसी से वो सबको धमकाता था। दो दिन बाद उसके पास टंडन के डेली रूटीन की एक-एक मिनट की जानकारी थी। अगले दिन लालजी टंडन के घर फोन की घंटी बजी। ट्रिन… ट्रिन… टंडन के पीए सतीश ने फोन उठाया। श्रीप्रकाश ने बेहद शांति से कहा- “सतीशजी, मैं मऊ का भाजपा जिलाध्यक्ष बोल रहा हूं। मंत्री जी से बात करा दीजिए, बहुत अर्जेंट है।” सतीश- “एक मिनट होल्ड करिए भाईसाब।”
थोड़ी देर बाद मंत्री लालजी टंडन की भारी आवाज आई- “हां सतीशजी…”
श्रीप्रकाश ने अपनी ठसक में कहा- “टंडन जी, फोन रखना मत, ध्यान से मेरी बात सुनो।” टंडन ने तमतमाकर पूछा- “कौन बोल रहा है?”
श्रीप्रकाश- “मुझे तो आप जानते ही हैं, श्रीप्रकाश शुक्ला बोल रहा हूं।”
टंडन ने अनजान बनते हुए कहा- “कौन श्रीप्रकाश शुक्ला? मैं नहीं जानता।” श्रीप्रकाश ने ठहाका लगाया और बोला- “मैं वही हूं, जिसने शाही को बीच लखनऊ में डेढ़ सौ गोलियां मारी थीं। मैं वही हूं, जिसने जनपथ के भरे बाजार में दरोगा आरके सिंह की खोपड़ी में दस गोलियां उतारी थीं। कुछ याद आ गया हो तो ठीक नहीं तो आगे और बताऊं? एक बात और, बात पूरी सुनना, फोन मत रखना, नहीं तो बहुत भारी पड़ेगा।” मंत्री जी का चेहरा एकदम सफेद पड़ चुका था। उनके हाथ कांप रहे थे। श्रीप्रकाश ने नाराजगी जताते हुए कहा- “आज अखबारों में छपा है कि तुम्हारी पुलिस हमको मार देगी। पुलिस में बूता होता तो पहले ही मार चुकी होती। लेकिन मैं तुमको एक सप्ताह में मार दूंगा।” लालजी टंडन के मुंह से कोई आवाज नहीं निकली। श्रीप्रकाश तमककर बोला- “मैं तो तुम्हें कल ही मार देता। कल जिस प्रोग्राम में तुम गए थे, वहां मैं भी था। गया इसलिए था कि पहले तुमको निपटा दूं, फिर पुलिस को देखूंगा।” श्रीप्रकाश आगे बोला- “मैं मंच पर आया था, तुम्हें माला भी पहनाई थी। उस समय दो पिस्टल मेरी कमर में लगी थीं। मन तो किया था कि वहीं दस गोलियां उतार दूं। फिर सोचा, पहले तुम्हें बता दूं। मैंने कभी किसी को बिना बताए नहीं मारा। प्रोग्राम के फोटो मंगाकर देख लेना। मैंने जींस और नीले रंग का टी-शर्ट पहनी थी। अब दोबारा फोन नहीं करूंगा, सीधे तुम्हारे पास आऊंगा।” टंडन का गला सूख चुका था। किसी तरह मुंह से निकला- “तुम मुझसे चाहते क्या हो?” श्रीप्रकाश- “जो तुम्हारा काम है, वो करो। ये जो बार-बार व्यापारियों के नाम पर सीएम को बरगला रहे हो, दोबारा किसी अखबार में आ गया तो उस दिन से एक हफ्ता गिन लेना।” श्रीप्रकाश ने फोन काट दिया। टंडन ने कांपते हाथों से रिसीवर रखा। तुरंत अपने पीए सतीश को बुलाकर कहा- “कल स्टेडियम में जो प्रोग्राम था, उसके फोटो लेकर आओ। देखो कोई लड़का जींस-टीशर्ट में है क्या?” पीए ने फोटो मंगवाकर मंत्री जी के सामने रख दीं। टंडन ध्यान से फोटो देखने लगे। दो-तीन फोटो देखने के बाद उनके चेहरे का रंग फिर बदल गया। पीए से बोले- “ये जींस-टीशर्ट वाले लड़के का फोटो सामने से नहीं खींचा है, आधा चेहरा ही दिख रहा है। फोटोग्राफर से कहो सामने का कोई फोटो हो तो बताए।” टंडन को जींस-टीशर्ट वाले लड़के का सामने से फोटो नहीं मिला। वे बुरी तरह डर चुके थे। उन्होंने अपने सारे प्रोग्राम कैंसिल कर दिए और अपेंडिक्स में इन्फेक्शन की बीमारी का बहाना बनाकर अस्पताल में भर्ती हो गए। श्रीप्रकाश शुक्ला का ‘कॉल-शॉक’ अपना काम कर चुका था। ‘जानते हो, मैं पप्पू यादव की बहन हूं’ बिहार का बॉर्डर गोरखपुर के पड़ोसी जिले देवरिया व कुशीनगर से लगता है। ये वो इलाका था जहां से श्रीप्रकाश ने अपने पंख फैलाने शुरू किए। वो बिहार के गैंगस्टर सूरजभान की सरपरस्ती में आगे बढ़ रहा था। सूरजभान ने ही उसे AK-47 दी थी। राजनीति में भी खासा दखल होने के कारण सूरजभान पटना, बेगूसराय, लखीसराय, मोकामा सहित पूरे बिहार में पकड़ रखता था। उसकी बिहार की लालू यादव सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे ब्रजबिहारी प्रसाद से पुरानी अदावत थी। सूरजभान के पास श्रीप्रकाश जैसा बेखौफ और बेपरवाह आदमी था। उसने ब्रजबिहारी को रास्ते से हटाने के लिए श्रीप्रकाश को पटना बुलाया। ब्रजबिहारी पटना के इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (IGIMS) में भर्ती थे। सुबह-शाम वहां उनका जनता दरबार भी लगाता था। श्रीप्रकाश ने जब ब्रजबिहारी की कुंडली निकाली तो पता चला कि अचानक अस्पताल में घुसकर ब्रजबिहारी को मारना संभव नहीं है। तब श्रीप्रकाश खुद मरीज बनकर IGIMS में भर्ती हुआ। इसमें सूरजभान की पहचान के एक डॉक्टर ने मदद की। डॉक्टर भी सूरजभान के इलाके मोकामा का रहने वाला था। झूठी बीमारी का इलाज कराने के दौरान श्रीप्रकाश की नजर डॉक्टर की एक महिला असिस्टेंट पर पड़ी। अय्याश किस्म का श्रीप्रकाश उसे पसंद करने लगा। यही वजह थी कि 10 जुलाई, 1998 को पटना IGIMS में ब्रजबिहारी का मर्डर करने के बाद भी श्रीप्रकाश पटना में ही टिका रहा। एक दिन अपने साथी सुधीर से बोला- “ढंग के कपड़े पहनकर अस्पताल चले जाओ। मैं भी तैयार हो रहा हूं। मोकामा वाले डॉक्टर का चैंबर ग्राउंड फ्लोर पर है। उसमें देखना एक डाक्टरनी भी बैठी होगी।” सुधीर ने सिर हिलाया लेकिन कोई जवाब नहीं दिया। श्रीप्रकाश तमककर बोला- “अबे, गर्दन न हिलाओ समझ रहे हो कि नहीं… जब वो बाहर आए तो मुझे फोन करके बताना। उसे वहीं घेरकर बात करुंगा। एक बार नाम-पता मिल जाए, फिर देखता हूं। अब उस डाक्टरनी से मिले बिना रह नहीं पाऊंगा।” सुधीर ने डरते हुए कहा- “भइया, रिस्की काम है। काहे चक्कर में पड़ते हो, लखनऊ में बहुत मिल जाएंगी।” श्रीप्रकाश गहरी सांस खींचकर बोला- “तुम नहीं समझोगे सुधीर…” सुधीर पटना IGIMS पहुंचा। डॉक्टर के चैंबर में झांककर देखा। साइड वाली कुर्सी पर वही महिला डॉक्टर बैठी थी। सुधीर बाहर बैठकर महिला डॉक्टर के निकलने का इंतजार करता रहा। थोड़ी देर में डॉक्टर बाहर आई। सुधीर ने श्रीप्रकाश को फोन करके बताया कि डॉक्टर मेनगेट की तरफ जा रही है। श्रीप्रकाश अस्पताल के बाहर गाड़ी में बैठा था। सीधे अंदर आया और तेजी से आगे बढ़कर आवाज दी- “डाक्टर साब… डाक्टर साब…” डॉक्टर रुक गई। सिर पर दुपट्टा रखते हुए बोली- “जी बताइए?” श्रीप्रकाश ने बेहद शराफत से नजरें मिलाकर कहा- “डाक्टर साब आपने मेरा इलाज किया था। दवा का पर्चा कहीं खो गया है। फिर से दवा लिखवानी है।” महिला डॉक्टर रूखे अंदाज में कहा कि कल ओपीडी में आना और चल दी। श्रीप्रकाश पीछे चल दिया और बोला- “अपना मोबाइल नंबर दे दीजिए। मैं फोन लगाकर पूछ लूंगा। जब आप ओपीडी में होंगी, मैं आ जाऊंगा।” इतना सुनकर डॉक्टर गुस्से से लाल हो गई। उसने कहा- “पगला गए हो? तुम्हारी इतनी हिम्मत कि मेरा मोबाइल नंबर मांगो? एक बार कह दिए न, कल ओपीडी में आना। समझ नहीं आता।” श्रीप्रकाश भौंहें चढ़ाकर बोला- “इसमें नाराज होने वाली क्या बात है? कितने दिन से परेशान हूं, आपको देखने के लिए।” अब डॉक्टर का गुस्सा सातवें आसमान पर था। वो बोली- “ज्यादा दिमाग खराब हो रहा है। भइया को बुलाऊं? अगर वो आए न, तुम्हारा इतना टुकड़ा करेगा कि कोई पहचान नहीं पाएगा।” श्रीप्रकाश पर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ। उसने इसे मजाक में लिया और बोला, बुला लो। डॉक्टर का पारा और चढ़ गया, बोली- “जानते हो कौन है मेरा भाई?” श्रीप्रकाश बेहपरवाही से बोला- “मुझे उसको जानने की जरूरत नहीं है।” महिला डॉक्टर की आंखों में जैसे अंगारे थे। वो लगभग चीखते हुए बोली- “पप्पू यादव को जानता है, हम उनकी बहन हैं।” श्रीप्रकाश ठहाका लगाकर बोला- “वो दो क्वंटल का पप्पू यादव? चलो ठीक है, उससे भी निपट लूंगा। जाकर बता देना श्रीप्रकाश शुक्ला मिले थे।” महिला डॉक्टर से एक आदमी को उलझते देख चार-पांच लोग वहां खड़े हो गए थे। भीड़ बढ़ती देख श्रीप्रकाश वहां से निकल गया। उसके गाड़ी में बैठते ही सुधीर ने पूछा- “भइया, काम बना कुछ?” श्रीप्रकाश खुश होकर बोला- “बन गया। पप्पू यादव की बहन है। घर का नंबर मिल जाएगा। अब देखता हूं, कैसे बात नहीं करती। अभी सूरजभान दादा से पप्पू का घर भी पूछ लेता हूं। कल वहीं से खींच लेंगे डॉक्टरनी को…।” ये सुनते ही सुधीर डर गया और बोला- “जाने दीजिए भइया, पप्पू यादव भी @#$$ है।”
श्रीप्रकाश अकड़कर बोला- “सभी को रास्ते से हटा दूंगा।” अब श्रीप्रकाश ने बाहुबली पप्पू यादव के घर फोन करना शुरू कर दिया। वे उस समय पूर्णिया सीट से सांसद थे। उन्हें जान से मारने की धमकी दी। इसके बाद पप्पू यादव ने बहन को अस्पताल भेजना बंद कर दिया। इस बीच श्रीप्रकाश को यूपी जाना पड़ा और दो महीने बाद ही उसका एनकाउंटर हो गया। यूपी के CM कल्याण सिंह की सुपारी अर्दली ने आहिस्ता से ऑफिस का दरवाजा खोला और धीमी आवाज में बोला- “साब… सीएम साब तुरंत आपसे मिलना चाहते हैं।” प्रोविंशियल आर्म्ड कॉन्स्टेबुलरी (PAC) के ADG अजय राज शर्मा ने चौंककर सिर ऊपर किया- “मुख्यमंत्री जी… अचानक से…” उन्होंने कोट उठाया और सीतापुर से लखनऊ के लिए निकल निकल पड़े। जब वे सीएम हाउस पहुंचे तो देखा मुख्यमंत्री कल्याण सिंह लॉबी में टहल रहे थे। ADG शर्मा ने सीएम को सैल्यूट किया और पूछा- “क्या बात है सर, ऐसे अचानक से…?” कल्याण सिंह ने गहरी सांस ली और बोले- “भाई… ये श्रीप्रकाश शुक्ला ने जीना हराम कर दिया है। असेंबली में हमें जवाब देना पड़ता है।” ADG शर्मा ने ध्यान से देखा, कल्याण सिंह के माथे पर उभरी लकीरों की वजह प्रशासनिक चुनौतियां नहीं थीं। परेशानी शायद कुछ और ही थी। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा- “लेकिन सर… ये तो रोज की राजनीति है। आपके लिए कौन सी नई बात है।” कल्याण सिंह कुछ पल चुप रहे। फिर अचानक से बोले- “नहीं…नहीं… सही कह रहे हो। असली परेशानी दूसरी है।” उनकी आवाज थोड़ी सी और गंभीर हो गई। वे बोले- “मेरी जान खतरे में है और इसकी वजह वही है श्रीप्रकाश शुक्ला।” शर्मा ने चौंककर पूछा- “क्या बात है सर?” कल्याण सिंह- “मेरी सुपारी ले ली है 5 करोड़ में। मुझे मालूम है, इसमें इतनी कैपेबिलिटी है कि सारी सिक्योरिटी तोड़कर घुस आए और मुझे मार दे।” कमरे में कुछ पल के लिए सन्नाटा छा गया। अजय राज शर्मा ने धीरे से कहा- “मामला तो बेहद सीरियस है…।” कल्याण सिंह ने सिर हिलाया और बोले- “कल से आप ADG लॉ एंड ऑर्डर का चार्ज ले लीजिए।” शर्मा ने हामी भर दी। फिर बोले- “लेकिन मेरी एक रिक्वेस्ट है, मैं एक स्पेशल यूनिट बनाना चाहता हूं। इसी वक्त सैंक्शन कीजिए क्योंकि कल मुझे चार्ज लेना है।” CM कल्याण सिंह ने तुरंत मंजूरी दे दी। यही वो पल था, जब स्पेशल टास्क फोर्स यानी STF ने जन्म लिया। इसके बाद सब-कुछ बहुत तेजी से हुआ। अजय राज शर्मा ने STF के लिए सारे अफसर अपनी पसंद से चुने। लखनऊ के SSP अरुण कुमार और CO हजरतगंज राजेश पांडेय भी उनमें शामिल थे। सभी अफसर बेहद चुस्त-दुरुस्त और 35 साल से कम उम्र के थे। ऑपरेशन श्रीप्रकाश शुक्ला उन दिनों मोबाइल फोन लॉन्च ही हुए थे। बेहद महंगा होने की वजह से आम आदमी की पहुंच से बाहर थे। उस समय इनकमिंग करीब 10 रुपए/मिनट और आउटगोइंग करीब 17 रुपए थी। श्रीप्रकाश को इससे फर्क नहीं पड़ता था। बाजार में आते ही किसी और के नाम से उसने दो मोबाइल ले लिए थे। उसके एक दिन का फोन बिल हजारों में आता था लेकिन श्रीप्रकाश को अंदाजा नहीं था कि यही मोबाइल एक दिन उसकी मौत की वजह बनेगा। उन दिनों टेक्नोलॉजी आज की तरह एडवांस नहीं थी। STF ने किसी तरह से लैंडलाइन कॉल सुनने और रिकॉर्ड करने के लिए एक डिवाइस बनवाया। इसके अलावा श्रीप्रकाश का मोबाइल नंबर ट्रैक करवाना भी शुरू किया। लेकिन श्रीप्रकाश हमेशा एक कदम आगे की सोचता था। वो एक नंबर ज्यादा देर इस्तेमाल नहीं करता था। कॉल बीच में काटकर सिम कार्ड बदलकर दोबारा कॉल करता था। कहा जाता है कि वो एक साथ 14 सिम इस्तेमाल करता था। इससे STF का काम और मुश्किल हो गया था। फिर भी उसकी कॉल ट्रैकिंग की जाती रही। इसी दौरान गोरखपुर की एक लड़की का नंबर पता चला। उसके पिता सुपरिटेंडेंट इंजीनियर थे। श्रीप्रकाश चाहे कितने भी मोबाइल नंबर और लैंडलाइन बदले, लेकिन रोज उससे लंबी बात करता। लड़की श्रीप्रकाश की गर्लफ्रेंड थी। STF ने उसका फोन इंटरसेप्ट करना शुरू किया। 21 सितंबर 1998, नवरात्र का पहला दिन। गर्लफ्रेंड से बात करते हुए श्रीप्रकाश बोला- “आज मेरा व्रत है।”
लड़की ने कहा- “मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकती। मम्मी मंदिर जाएंगी, तब मैं 10:30 बजे की ट्रेन पकड़कर तुम्हारे पास दिल्ली आ जाऊंगी।”
श्रीप्रकाश बोला- “अभी मत आओ, कल मुझे रांची निकलना है।” पूरी बातचीत गोरखपुर DIG ऑफिस में टैप हो रही थी जबकि STF को पहले ही इसका सुराग मिल चुका था। STF टीम दिल्ली में ही थी। गोरखपुर DIG ने तुरंत दिल्ली में STF टीम को खबर दी कि श्रीप्रकाश की लोकेशन दिल्ली–NCR में ट्रेस हुई है। 22 सितंबर 1998, नवरात्र का दूसरा दिन। प्लान के मुताबिक श्रीप्रकाश ने रांची जाने के लिए एअर इंडिया की तीन टिकटें बुक कराई थीं। टीम ने दिल्ली एयरपोर्ट पर जाल बिछा रखा था, लेकिन श्रीप्रकाश नहीं आया। उसकी फ्लाइट मिस हो गई थी। तभी गोरखपुर DIG ने फिर सूचना दी कि श्रीप्रकाश उसी लड़की से बात कर रही है। किसी PCO से फोन किया जा रहा है। दिल्ली क्राइम ब्रांच की मदद से पता चला कि नंबर की लोकेशन ग्रेटर कैलाश-II में है। STF को सीधे उस जगह तक पहुंचने का रास्ता मिल गया था। इसके बाद देरी की कोई गुंजाइश नहीं थी। SSP अरुण कुमार ने आदेश दिया- “गाड़ी भगाओ। वो अभी भी कॉल पर है। दस-पंद्रह मिनट पहुंच गए तो हाथ लग सकता है।” एक टीम तुरंत ग्रेटर कैलाश-II की ओर निकली। ये एक हाई प्रोफाइल रिहायशी इलाका था। STF टीम लोकेशन पर पहुंची। एक छोटे शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के ग्राउंड फ्लोर पर PCO दिखा, लेकिन श्रीप्रकाश वहां नहीं था। DSP सत्येंद्र वीर सिंह ने PCO वाले से पूछा- “जिस आदमी ने अभी गोरखपुर बात की, वो कब निकला?” PCO वाला बोला- “साब, अभी दो मिनट पहले ही गया है।” इतने में एक सब-इंस्पेक्टर भागता हुआ आया- “सर, अभी सूचना मिली है। श्रीप्रकाश, सुधीर और अनुज तीनों नीली सीलो कार में बैठकर इंदिरापुरम की तरफ मुड़े हैं।” STF फौरन उस ओर रवाना हुई। जीप पूरी रफ्तार से दौड़ रही थी। कुछ ही समय बाद नीली सीलो गाड़ी दिखाई दी। वायरलेस से आगे नाके पर भी खबर भेजी गई। श्रीप्रकाश को रोकने के लिए टेढ़ी-मेढ़ी गाड़ियां लगाकर पूरा रास्ता बंद कर दिया गया था। पहली बार इस तरह चारों तरफ से घिरने की वजह से श्रीप्रकाश घबरा गया। इसी घबराहट में उसने गाड़ी सड़क से नीचे उतार दी। हड़बड़ाहट में गाड़ी कुछ दूर चलकर इलेक्ट्रिक पोल से टकरा गई। गाड़ी बैक करके आगे बढ़ने की कोशश की लेकिन कुछ दूर जाकर बंद हो गई। श्रीप्रकाश समझ गया था कि इस बार निकलना मुश्किल है। चारों तरफ खड़ी आड़ी-तिरछी गाड़ियां, सामने दिल्ली पुलिस की जिप्सी और पीछे रास्ता बंद। STF ने लाउडस्पीकर पर चेतावनी दी- “श्रीप्रकाश तुम चारों तरफ से घिर चुके हो। अभी वक्त है… सरेंडर कर दो।” श्रीप्रकाश ने एक पल चारों तरफ देखा। उसके चेहरे पर घबराहट साफ दिख रही थी। धीरे-धीरे उसने हाथ ऊपर किए और बोला- “देखो, नवरात्र का समय है। मैं हनुमान जी का भक्त हूं। मेरी जेब में हनुमान चालीसा है, मुझे जाने दो।” STF की तरफ से कड़क आवाज आई- “पाप और पूजा को मत जोड़ो। तुमने लोगों को बेरहमी से मारा हैं। भक्ति का नाम लेकर बच नहीं पाओगे।” वो कुछ सेकेंड चुप रहा, फिर अचानक बोला- “मैं भी ब्राह्मण हूं… कम से कम जनेऊ का तो ख्याल कर लो।” STF का जवाब और सख्त था- “कानून जात नहीं देखता। तुमने सैकड़ों घर उजाड़े हैं। जनेऊ तुम्हें नहीं बचाएगा।” श्रीप्रकाश अपनी जेब टटोलते हुए बोला- “देखो… मुझे जाने दो। मैं वादा करता हूं, आगे कभी आपके रास्ते में नहीं आऊंगा। पैसे चाहिए तो बता दो, जितना कहोगे दूंगा।” STF का जवाब आया- “हम बिकने वाले नहीं हैं। तुम्हारे पैसों से दफ्तर की धूल भी नहीं झाड़ते।” श्रीप्रकाश का कोई भी पैंतरा काम न आया। वो समझ चुका था कि पुलिस उसे लेकर ही जाएगी जिंदा या… जैसे वो खुद कहता था- ‘मेरी लाश जाएगी।’ श्रीप्रकाश का चेहरा तमतमा गया। अचानक चीखकर बोला- “ठीक है, फिर लो… यहीं खत्म करते हैं।” वो अचानक कार से उतरा और पिस्टल से फायरिंग शुरू कर दी- तड़-तड़-तड़… ठां-ठां-ठां… STF की तरफ से भी जवाबी गोलियां चलीं। कुछ ही पलों में पूरा इलाका गोलियों की आवाज से गूंज उठा। गोलियां चलाते हुए श्रीप्रकाश फिर से कार में घुस गया। वो लगातार चिल्ला रहा था- “साले रास्ता रोककर रखे हो? हट जाओ यहां से।” वॉकी पकड़े जवानों को देखकर चिल्लाया- “हमरे रस्ता में पड़ गइला त उड़ा के राख दिहम, दिमाग मत खराब करा।” STF की तरह से जब राजेश पाण्डेय, सत्येंद्र वीर सिंह और अविनाश मिश्रा उसकी ओर बढ़े तो वो और तमतमा गया। उस ओर फायरिंग करते हुए बोला- “काहू में दम नाहीं बा हमके पकड़ लेवे के। साइड हो जा, ना त सभकर लाश बिछा देब।” कार में बैठे उसके साथी अनुज और सुधीर भी घबरा चुके थे। उन्होंने फिर गाड़ी बैक करने की कोशिश की। पुलिस ने टायरों पर फायरिंग शुरू कर दी। कार के अंदर से तीनों लगातार गोलियां चला रहे थे। अरुण कुमार ने टीम को हौसला दिया- “शांत रहो। इनके पास सिर्फ छोटे हथियार हैं। ज्यादा देर नहीं चलेंगे। थोड़ी देर में ये अपने आप ढीले पड़ जाएंगे।” कुछ देर बाद सुधीर और अनुज गाड़ी से उतरकर जंगल की ओर भागे। STF के कुछ लोग उनके पीछे दौड़ पड़े। उधर श्रीप्रकाश बीच-बीच में फायर कर रहा था। तभी सत्येंद्र वीर सिंह की एक गोली उसे लगी। वो भी जंगल की तरफ भागना चाहता था, लेकिन दो कदम चलकर गिर पड़ा। राजेश पांडेय आगे बढ़े और उस पर दो–तीन फायर और कर दिए। धूल और बारूद की गंध हवा में तैर ही रही थी कि अविनाश मिश्रा और इंद्रजीत सिंह तेवतिया ने आखिरी गोलियां दागकर अनुज और सुधीर को भी बेअसर कर दिया। कुछ ही पलों बाद अरुण कुमार वहां पहुंचे। जमीन पर पड़े श्रीप्रकाश की आंखों में बुझती हुई चमक, मानो किसी अनसुने पछतावे की परछाईं मालूम पड़ रही थी। सांसें थम चुकी थीं और सन्नाटा फैलता जा रहा था। अरुण कुमार ने टीम की तरफ देखा। उनकी नजर में थकान भी थी और जंग जीतने की संतुष्टि भी। उन्होंने गहरी सांस ली, सिर हिलाया और बोले- “अच्छा काम किया दोस्तों।” *** स्टोरी एडिट- कृष्ण गोपाल ***
रेफरेंस
बाइटिंग द बुलेट- अजय राज शर्मा । वर्चस्व- राजेश पांडेय । ऑपरेशन बजूका- राजेश पांडेय, डॉ राकेश गोस्वामी। पूर्व आईजी राजेश पांडेय (STF के फाउंडिंग मेंबर) । जर्नलिस्ट- आनंद राय, विष्णु मोहन, गोविंद राजू पंत, सिद्धार्थ कलहंस। भास्कर टीम ने पुलिस विभाग, पीड़ित और जानकारों से बात करने के बाद सभी कड़ियों को जोड़कर यह स्टोरी लिखी है। फिर भी घटनाओं के क्रम में कुछ अंतर हो सकता है। कहानी को रोचक बनाने के लिए क्रिएटिव लिबर्टी ली गई है। ———————————————————– ये स्टोरी भी पढ़ें… खून देखे बिना न सोने वाला सीरियल किलर: यूपी के फुरसतगंज में 22 मर्डर कबूले, वीकेंड पर करता था कत्ल 9 जून 2001, शनिवार की रात थी। रायबरेली में फुरसतगंज ब्लॉक का सैमसी गांव गहरी नींद में डूबा था। कहीं आंगन में चारपाई पर खर्राटे गूंज रहे थे, कहीं छतों पर बच्चे सो रहे थे। इसी सन्नाटे के बीच जगदीश प्रसाद अपनी आटा चक्की में अकेले सो रहे थे। घड़ी रात के एक बजा रही थी। अचानक एक धमाका हुआ- ‘धांय…!’ जगदीश के मुंह से आवाज तक नहीं निकली। पूरी स्टोरी पढ़ें…
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