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रेलूराम पूनिया हत्याकांड; संजीव की रिहाई को परिवार यमुनानगर पहुंचा:7 साल पहले फरलो पर आकर हुआ था फरार, जमानत जरूरी; सोनिया की रिहाई जल्द संभव

हरियाणा में बहुचर्चित पूर्व विधायक रेलूराम हत्याकांड के आरोपी दामाद संजीव की रिहाई के प्रयास तेज हो गए हैं। संजीव के वकील यमुनानगर जिले की जगाधरी कोर्ट संजीव की रिहाई के लिए कागजात जमा करवाएंगे। संजीव पर 2018 में फरलो पर आकर यमुनानगर के बिलासपुर से फरार होने का आरोप है। 31 मई 2018 को वह 02 साल, 08 महीने और 04 दिनों के लिए फरलो से फरार हो गया था। संजीव को रिहाई से पहले यहां भी बेल बॉन्ड भरना होगा। संजीव पर बिलासपुर थाने में जेल अधिनियम सहित 420, 467, 468, 471, 120-बी के तहत मामला दर्ज किया गया था। उधर, सोनिया और संजीव की रिहाई से रेलूराम का परिवार परेशान है। उनकी अपनी जान का खतरा सता रहा है। परिवार ने एसपी से मिलकर सुरक्षा की गुहार लगाई है, वहीं प्राइवेट सिक्योरिटी के लिए भी एजेंसियों से संपर्क किया है। इससे पहले संजीव के फरार होने पर परिवार ने पूरी कोठी में सीसीटीवी कैमरे लगवाए थे। बता दें कि 23 अगस्त 2001 में हिसार के लितानी गांव में फॉर्म हाउस में छोटी बेटी सोनिया ने पति संजीव के साथ मिलकर प्रॉपर्टी के लालच में अपने पति संजीव के साथ मिलकर पिता रेलूराम पूनिया (50), उनकी पत्नी कृष्णा देवी (41), बच्चे प्रियंका (14), सुनील (23), बहू शकुंतला (20), पोता लोकेश (4) और दो पोतियों शिवानी (2) तथा 45 दिन की प्रीति की हत्या कर दी थी। साल 2004 में हिसार की अदालत ने संजीव और सोनिया को फांसी की सजा सुनाई थी, जिसे 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखा। 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका में देरी का हवाला देते हुए सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। इसके बाद हाईकोर्ट ने राहत देते हुए बीते गुरुवार को ही दोनों को अंतरिम जमानत दे दी थी। हिसार कोर्ट में कल भरा था बेल बॉन्ड
शुक्रवार को दामाद संजीव की रिहाई के आदेश हिसार कोर्ट से हो गए थे। शुक्रवार को संजीव के उत्तर प्रदेश के सहारनपुर निवासी मां राजबीरी देवी और चाचा राजेंद्र ने मुख्य न्यायिक दंडाधिकारी राजीव कुमार की अदालत में जमानतनामा (बेल बॉन्ड) जमा करवाया था। दोनों ने एक-एक लाख रुपए का बेल बॉन्ड भरा था। यहां जानिए यमुनानगर का वह मामला, जिसमें संजीव आरोपी… फरलो पर आकर फरार हुआ था संजीव
पुलिस के मुताबिक, वर्ष 2004 में हत्यारे संजीव को कोर्ट ने सजा सुना दी थी। इसके बाद से ही वह अलग-अलग जेलों में रहा। हालांकि बीच-बीच में वह पैरोल पर बाहर आता रहा। कई बार वह पैरोल पर आया और फिर वापस लौट जाता था। मई 2018 में वह 28 दिन की फरलो पर बाहर आया था। इस बार उसने बिलासपुर के चांगनौली का पता दिया। यहां पर उसे मकान की मरम्मत कराने के नाम पर फरलो ली थी। 31 मई को उसे लौटना था, लेकिन वह वापस नहीं गया। उस समय डिटेक्टिव यूनिट (अब सीआईटू) को इसकी जांच दी गई। टीम जांच में लगी रही, लेकिन संजीव का कोई पता नहीं लग सका। टीम ने बिलासपुर से लेकर उसके पैतृक घर उत्तर प्रदेश के सहारनपुर जिले के लक्ष्मणपुरी में भी दबिश दी थी। परिवार से भी पूछताछ की, लेकिन कोई पता नहीं लग सका। बाद में यह केस एसटीएफ को दिया गया। 3 साल बाद मेरठ से किया गया था अरेस्ट
संजीव को मोस्ट वांटेड अपराधियों की सूची में शामिल करते हुए एक लाख रुपए का इनाम भी घोषित किया गया था। तीन साल बाद उसे मेरठ से गिरफ्तार किया गया था पूछताछ में संजीव ने बताया था कि उसका जेल में दम घुटने लगा था। वह खुली हवा में रहना चाहता था। इसलिए उसने फरलो मिलने पर यहां से भाग जाने की योजना बनाई थी। उसने पहले ही सोचा हुआ था कि फरार होने पर वह नेपाल में छिपकर रहेगा। वहां पर वह आठ दिन तक रहा, लेकिन उसके पास कोई आईडी नहीं थी। इसलिए उसे किसी ने अपने पास न तो नौकरी पर रखा और न ही रहने दिया। इसके बाद उसने नर्मदा नदी के किनारे-किनारे भ्रमण किया। वह किसी को अपनी पहचान नहीं बताता था। तीन साल तक जंगलों, सड़कों पर भटकने के बाद वह यूपी के मेरठ आया था, जहां से उसे गिरफ्तार किया था। संजीव ने जेल में रहते हुए 5 अपराध किए
संजीव पर जेल में रहते हुए भी अपराध करने के आरोप हैं। 7 फरवरी 2005 को संजीव ने जेल में नाइट वॉचमैन के साथ दुर्व्यवहार किया। 18 अक्टूबर 2008 को संजीव ने अपने अन्य साथी कैदियों के साथ मिलकर सेंट्रल जेल, अंबाला से सुरंग खोदकर बाहर निकलने की योजना बनाई। इसके संबंध में 24 अक्टूबर 2008 अंबाला के बलदेव नगर थाने में एफआईआर दर्ज की गई थी। 19 अगस्त 2012 और 4 अप्रैल 2018 को उसने अन्य कैदियों के साथ झगड़ा किया। 31 मई 2018 को वह 2 साल, 8 महीने और 4 दिनों के लिए फरलो से फरार हो गया। इसका यमुनानगर के बिलासपुर थाने में केस दर्ज है। यह मामला लंबित है, जिसमें उसे जमानत नहीं मिली है। —————– ये खबर भी पढ़ें…
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