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रासायनिक खाद पर निर्भरता खत्म, सेमीऑर्गेनिक खेती से बढ़ाई पैदावार:कैमूर के रहने वाले किसान रविशंकर करते हैं समेकित खेती, इनके स्ट्रॉबेरी और तरबूज कोलकाता तक जा रहे हैं

कैमूर के रविशंकर प्राकृतिक खेती करते हैं। उनकी खेती का मैकेनिज्म ऐसा है कि लोग रविशंकर सिंह दूर-दूर से सीखने आते हैं। उन्होंने शुरुआत 2012 में की। कई वर्षों से सेमीऑर्गेनिक खेती कर रहे हैं। इसमें खाद्यान्न के साथ सब्जियों और फलों की उपज भी है। उनका कहना है कि जल्द ही उनका फार्म पूर्ण ऑर्गेनिक हो जाएगा, क्योंकि मिट्टी मे धीरे-धीरे सुधार होता है। बेहतर मार्केट भी मिल रहा है। कैमूर जिले के चांद प्रखंड के दुलही पंचायत के गांव मोरवा कुतुबपुर के रविशंकर सिंह कहते हैं- धान-गेहूं की खेती के बाद लोग डंठल को खेतों में ही फूंक देते हैं। 2012 से पहले मैं भी भी ऐसा ही कर रहा था। लेकिन इसीबीच एक घटना हुई। करीब एक एकड़ में गेहूं का डंठल जला नहीं पाया। बारिश होने और मिट्टी में अधिक नमी की वजह से डंठल सहित जुताई कर धान की बुआई कर दी। नतीजा यह हुआ कि रासायनिक खाद के उपयोग वाले खेत के मुकाबले कई गुना बेहतर पौधे निकले, उपज भी अच्छी हुई। तब से मैंने पूरी तरह प्राकृतिक खेती का निर्णय लिया। रासायनिक खाद का प्रयोग नहीं करता हूं। इससे खेत की मिट्टी सेमी ऑर्गेनिक हो चुकी है। रविशंकर सिंह बताते हैं कि यूं तो खेती के साथ पशुपालन एक पारंपरिक व्यवसाय रहा है। लेकिन पिछले कुछ सालों से मेरे पास 15 गाएं हैं। इन्हीं के गोबर से वर्मी कंपोस्ट तैयार कर उर्वरक के तौर पर खेतों में उपयोग करता हूं। उनके मूत्र से जीवामृत बनाकर कीटनाशक की तरह उपयोग आता है। पारंपरिक फसल में धान के अलावा स्ट्रॉबेरी, तरबूज, सब्जी की भी खेती करते हैं। तरबूज व स्ट्रॉबेरी उत्तर प्रदेश, झारखंड के अलावे बंगाल के कोलकाता तक भेजते हैं। रविशंकर ने बताया कि धान की खेती करता हूं। वह भी कम अवधि की। यह इसलिए क्योंकि उस समय दूसरी नगदी फसल नहीं लगाई जा सकती, लेकिन धान काटने के बाद गेहूं की खेती नहीं करता। उसके बदले में ऑर्गेनिक चने की खेती करता हूं। वह अच्छा लाभ भी देती है। उनके फार्म हाउस का प्रबंध रोजगारपरक है। इससे इन्हें आसानी से मजदूर भी उपलब्ध हो जाते हैं। 50 से अधिक श्रमिक उनके फार्म हाउस में नियमित काम करते हैं। उनके फार्म के ठीक बीच में करीब 1 एकड़ का तालाब है। तालाब में वैसी प्रजाति की मछलियां पालते हैं जो घास खाकर तैयार होती हैं। पूरे खेत में ड्रिप इरीगेशन, 60 प्रतिशत पानी की भी बचत
उद्यान विभाग के सहयोग से पूरे खेत में ड्रिप इरीगेशन और स्प्रिंकलर इंस्टॉल कर चुके हैं। इसी के जरिए फसलों की सिंचाई होती है। इससे पानी की बचत के साथ आवश्यकता के अनुसार ही फसल को सिंचाई मिलती है। इसलिए अच्छी उपज भी होती है। रविशंकर ने बताया अब तक प्राकृतिक खेती के लिए 1500 से अधिक किसानों को ट्रेंड कर चुका हूं। कृषि विभाग ने फार्मर मास्टर ट्रेनर (एफएमटी) बनाने के लिए प्रस्ताव रखा है। उनके फार्म को दिखाने के लिए कृषि विज्ञान केंद्र, आर्सेटि व अन्य संस्थानों में प्रशिक्षण ले रहे किसानों को लाया जाता है। अब वह दूसरों को भी प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।


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