रावण के विसर्जन में ‘लंकेश’ ने त्यागे प्राण, 50 साल से भक्ति में लीन थे संतोष नामदेव; अब कौन संभालेगा गद्दी?
पूरे देश में जहां विजयादशमी पर रावण दहन की परंपरा निभाई जाती है. वहीं जबलपुर के पाटन इलाके में रहने वाले संतोष नामदेव उर्फ लंकेश ने जीवनभर रावण की पूजा और भक्ति की. पिछले 50 वर्षों से वे हर साल पंचमी पर रावण की मूर्ति स्थापित कर दशहरे तक विधि-विधान से पूजा करते और फिर विसर्जन करते थे, लेकिन इस बार का दशहरा उनके जीवन का अंतिम पर्व साबित हुआ. मूर्ति विसर्जन के दौरान उन्हें अटैक आया और वहीं उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए. लंकेश ने जीवित रहते ही जिला प्रशासन के समक्ष जाकर देहदान की प्रक्रिया पूरी कर ली थी. उनका मानना था कि मृत्यु के बाद भी उनका शरीर समाज के काम आए. यही वजह रही कि उनकी मौत के बाद तुरंत देहदान की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है.
50 साल से रावण की भक्ति में लीन
संतोष नामदेव उर्फ लंकेश की यह परंपरा वर्ष 1975 से शुरू हुई थी. जब देशभर में लोग मां दुर्गा और भगवान राम की पूजा-अर्चना में डूबे रहते थे, तब संतोष नामदेव रावण की प्रतिमा स्थापित कर उसकी आराधना करते थे. दशहरे के दिन मूर्ति का विसर्जन उनका नियम बन गया था. आधी सदी से अधिक समय तक चली इस अनूठी परंपरा ने उन्हें पूरे महाकौशल में एक अलग पहचान दी. बचपन में संतोष नामदेव रामलीला में हिस्सा लिया करते थे. शुरुआत में उन्होंने रावण की सेना के सैनिक का किरदार निभाया, लेकिन बाद में उन्हें रावण का किरदार मिला. उस किरदार ने उन्हें इतना प्रभावित किया कि उन्होंने रावण को ही अपना गुरु और इष्ट मान लिया. तभी से उनकी रावण भक्ति का सिलसिला शुरू हुआ, जो मृत्यु तक जारी रहा.
अब कौन स्थापिक करेगा रावण की प्रतिमा?
लंकेश का मानना था कि रावण अत्यंत विद्वान और ज्ञानी राजा था. उनके अनुसार, रावण ने सीता का अपहरण किया जरूर, लेकिन उन्हें अशोक वाटिका में सुरक्षित रखा और किसी भी राक्षस या पशु को वहां प्रवेश नहीं दिया. यह सीता के प्रति उसके सम्मान का प्रतीक था. इसी आस्था के चलते लंकेश ने अपने बेटों के नाम भी रावण के पुत्रों के नाम पर मेघनाद और अक्षय रखे. लंकेश की रावण भक्ति सिर्फ उनके जीवन तक सीमित नहीं रही. उनका परिवार और आसपास के लोग भी इस परंपरा में शामिल होते थे. नवरात्रि पर रावण की प्रतिमा स्थापना और दशहरे पर शोभायात्रा अब उनके क्षेत्र में परंपरा बन चुकी थी. लोग लंकेश की आस्था से प्रभावित होकर इस आयोजन में उत्साहपूर्वक भाग लेते थे.
विसर्जन के समय ‘लंकेश’ को हार्ट अटैक आया
लंकेश हमेशा कहा करते थे कि जब उनकी मृत्यु होगी, तो वे खुद को रावण के चरणों में पाएंगे. संयोग देखिए, विसर्जन के समय ही उन्हें हार्ट अटैक आया और उन्होंने उसी क्षण प्राण त्याग दिए. लोगों का कहना है कि यह उनकी आस्था की पराकाष्ठा थी और वास्तव में वे अपने प्रिय देवता रावण की शरण में चले गए. लंकेश की मौत के बाद अब यह चर्चा है कि उनकी परंपरा आगे कौन निभाएगा. परिवार की ओर से स्पष्ट किया गया है कि अब उनके पोते इस परंपरा को संभालेंगे और हर साल रावण की प्रतिमा स्थापना और विसर्जन का क्रम जारी रहेगा.
लंकेश की रावण भक्ति अनोखी
संतोष नामदेव उर्फ लंकेश की रावण भक्ति अपने आप में अनोखी मिसाल है, जहां देशभर में रावण को बुराई का प्रतीक मानकर जलाया जाता है, वहीं लंकेश ने उसे ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक मानकर जीवनभर पूजनीय बनाया. उनकी मृत्यु भी उसी क्षण हुई, जब वे अपने प्रिय देवता का विसर्जन कर रहे थे. समाज में चर्चा है कि सचमुच रावण ने अपने इस अद्वितीय भक्त को अपने चरणों में समाहित कर लिया. लंकेश की यह कहानी बताती है कि आस्था कितनी गहरी हो सकती है और कैसे एक इंसान पूरे जीवनभर अपने विश्वास को जीता है.
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