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राज्यों के पास विकास के लिए पैसा नहीं:80% तक कमाई वेतन-पेंशन और फ्री स्कीम में खर्च; राजस्थान को कर्ज चुकाने के लिए कर्ज की जरूरत

एक दशक से मुफ्त की योजनाएं (फ्री स्कीम) और सब्सिडी राज्यों की सत्ता पाने का ‘शर्तिया नुस्खा’ है। ले​किन राज्यों की बिगड़ती वित्तीय सेहत इस नुस्खे का बड़ा साइड इफेक्ट बनकर सामने आ रही है। राज्यों के पास बिजली, सड़क और आवास के लिए पैसा ही नहीं है। उनकी कमाई और खर्च का लेखाजोखा बताता है कि सब्सिडी, वेतन, पेंशन और ब्याज की अदायगी जैसे अहम खर्चों के बाद राज्यों के हाथ अपनी कमाई का 20-25% हिस्सा ही बच पा रहा है। पंजाब जैसे राज्य के हाथ तो खर्च के लिए 7% रा​शि ही बची। हालांकि उसे इस वर्ष ₹90 हजार करोड़ का मूलधन भी चुकाना है। इसलिए इस बची राशि के साथ मूलधन चुकाने के लिए पंजाब को भारी भरकम कर्ज की जरूरत होगी। पंजाब इस वर्ष अक्टूबर में ₹20 हजार करोड़ का कर्ज बाजार से ले चुका है। राजस्थान को इस बार ₹1.50 लाख करोड़ कर्ज का मूलधन चुकाना है। राजस्थान 32 हजार करोड़ रुपए कर्ज ले चुका है, लेकिन बकाया तो कर्ज लेने की सीमा से भी ज्यादा है। उसे कर्ज चुकाने के लिए भी कर्ज लेने की जरूरत पड़ेगी। बिहार चुनावी वादे पूरे करने में दिवालिया हो सकता है मध्य प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, बिहार जैसे राज्यों का कर्ज उनकी जीडीपी की तुलना में एक तिहाई के करीब है या ज्यादा है। ऐसे में इन पर आने वाले सालों में मूलधन की अदायगी का बोझ और बढ़ सकता है। बिहार में चुनावी वादे पूरे करने पर आने वाला बोझ राज्य के पूंजीगत व्यय का 25 गुना हो सकता है। राज्य दिवालिया हो सकता है। महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे बड़े राज्यों का अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा केवल वेतन, पेंशन और अन्य जरूरी खर्च में चला जाता है। विकास के लिए एक छोटी राशि ही मिलती है। राजस्थान, समेत कई राज्यों में 45 गीगावॉट की सौर, पवन ऊर्जा क्षमता अटकी हुई हैं, क्योंकि सरकारें बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर तक नहीं कर पा रही हैं। सारे बेहाल: बंगाल पर ब्याज का बोझ​ शिक्षा के कुल बजट से ज्यादा, MP पर बढ़ रहा है कर्ज पुरानी सरकार की योजनाएं बंद करने से राहत संभव रिटायर्ड आईएएस और स्टेट फाइनेंस के एक्सपर्ट अजीत केसरी बताते हैं कि मुफ्त की योजना या सब्सिडी की घोषणा करते समय ये देखना जरूरी है ​कि आय के संसाधन कितने हैं। नई योजनाओं के साथ सत्ता में आई सरकारें पुरानी सरकार की योजनाएं बंद नहीं करतीं। अजीत केसरी के मुताबिक, सरकार को डर होता है कि कहीं लोग नाराज न हो जाएं। असम सरकार ने पुरानी सरकार की योजनाएं खत्म कर दी थीं। दूसरी सरकार भी ऐसे कदम उठाएं तो भी कुछ बोझ कम हो सकता है।


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