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राजेंद्रनगर नेत्र अस्पताल…6 ओटी, पर 3 ही माइक्रोस्कोपिक मशीन

राजेंद्रनगर सुपर स्पेशियलिटी नेत्र अस्पताल। यह महज नाम का सुपर स्पेशियलिटी है। करोड़ों की लागत से भव्य भवन तो बन गया, लेकिन उपकरणों का भारी अभाव है। छह ऑपरेशन थिएटर हैं, लेकिन महज तीन माइक्रोस्कोपिक मशीन हैं और वह भी 15 साल से अधिक पुरानी। रेटिना की सर्जरी के लिए न तो विट्रेक्टोमी मशीन है और न ही उन्नत विजुलाइजेशन सिस्टम। जटिल ऑपरेशन के लिए ऑपरेटिंग माइक्रोस्कोप, एंडो इल्यूमिनेशन या लेजर मशीन भी नहीं है। इमरजेंसी सेवा भी नहीं है, जो सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल की पहली शर्त है। सबसे बड़ी परेशानी यह है कि यह अस्पताल ओप्थॉल्मो असिस्टेंट के सहारे चल रहा है। यहां सिर्फ मोतियाबिंद का ऑपरेशन नियमित रूप से होता है। ग्लूकोमा (काला मोतिया) या रेटिना जैसे गंभीर मामलों को आईजीआईएमएस भेज दिया जाता है। ये सुविधाएं होनी चाहिए अत्याधुनिक मशीन की कमी बन रही बाधक डॉक्टर समय पर नहीं आते और दो-तीन घंटे में ही चले जाते हैं, जिससे मरीजों को रोज परेशानी झेलनी पड़ रही है। बेतिया से आई निर्मला देवी ने बताया कि उनकी बेटी की आंख में लकड़ी तोड़ने के क्रम में झटका लग गया था। यहां दिखाया तो डॉक्टर ने ऑपरेशन की सलाह दी। कल ऑपरेशन किया गया था और आज पुन: दिखाने के लिए कहा गया। सुबह से ही यहां आकर बैठी हूं। 11 बज चुके हैं, लेकिन डॉक्टर नहीं आए हैं। कटिहार से अपनी मां का इलाज कराने पहुंचे अभिषेक झा ने कहा-डॉक्टर मिलते नहीं, टेस्ट होते नहीं और आखिर में रेफर कर देते हैं। एक अस्पताल कर्मी ने बताया कि डॉक्टर 11 बजे आते हैं और एक-डेढ़ बजे तक चले जाते हैं। मरीजों का गुस्सा हमलोगों को झेलना पड़ता है। एक अन्य अस्पतालकर्मी ने बताया कि दो बजते-बजते अस्पताल में सन्नाटा पसर जाता है, जबकि 24 घंटे इलाज की व्यवस्था होनी चाहिए। ओपीडी और जांच की अधिकांश जिम्मेदारी आप्थॉल्मो असिस्टेंट पर होती है। एक अन्य कर्मी ने बताया कि यहां तैनात एक डॉक्टर हाजीपुर में क्लिनिक चलाते हैं, यहां 1-2 घंटे के लिए आते हैं। एक डॉक्टर नौबतपुर में क्लिनिक चलाते हैं।


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