‘कोविड काल में मैंने इंसानों को अपनों से दूर होते देखा। कोई किसी को हाथ लगाने से भी डर रहा था। भाई-भाई के करीब नहीं जा रहा था। यह देखकर मेरी आत्मा को चोट पहुंची। उस दिन एहसास हुआ कि कोई किसी का नहीं। अकेले आए थे, अकेले ही जाना है। उसी समय मैंने सोच लिया था कि दुनिया की मोह-माया त्याग दूंगा। वैराग्य ले लूंगा। अब वो समय आ गया है।’ यह कहना है, बागपत के रहने वाले 30 साल के हर्षित जैन का। हर्षित दिल्ली में कपड़ों कारोबार करते थे। 1 करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर था। लेकिन, अब वह वैराग्य अपना चुके हैं। हर्षित के पिता भी बड़े कारोबारी, भाई डॉक्टर
बागपत जिला मुख्यालय से करीब 40 किमी दूर दोघट कस्बा है। यहां रहने वाले हर्षित जैन अपने परिवार के छोटे बेटे हैं। उनके पिता सुरेश जैन करीब 12 साल पहले सुरेश जैन दिल्ली शिफ्ट हो गए थे। उनका दिल्ली में इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण का बड़ा कारोबार है। मां सविता हाउस वाइफ हैं। हर्षित के भाई संयम जैन दिल्ली के मैक्स हॉस्पिटल में डॉक्टर हैं। भाभी रचना घर संभालती हैं। हालांकि दिल्ली शिफ्ट होने के बावजूद सुरेश जैन का बागपत में अपने पुस्तैनी घर आना-जाना लगा रहता है। आगे की कहानी हर्षित की जुबानी… हर्षित बताते हैं- मेरी शुरुआती पढ़ाई बड़ौत में ही हुई। इसके बाद 2018 में गाजियाबाद से मैंने मैकेनिकल स्ट्रीम में बीटेक किया। फिर उसी साल पापा की मदद से दिल्ली के चांदनी चौक में कपड़े का व्यापार शुरू किया। इसमें खूब मुनाफा कमाया। 1 करोड़ का टर्नओवर खड़ा किया। लेकिन, 2019 में कोविड काल आ गया। दिल्ली समेत पूरे देश से लोग अपने-अपने घरों को लौटने लगे। सभी जगह लॉकडाउन लग गया। यह सब देखकर मन में कई सवाल उठने लगे। मैंने देखा कि कोविड फैलने के बाद इंसान इंसान के ही काम नहीं आ रहा। अपनों की मौत के बाद लोग कंधा देने से भी कतराने लगे। भाई-भाई से दूर हो गया
मैंने देखा कि एक भाई अपने बीमार भाई को दूर से खाना दे रहा। उसके पास नहीं जा रहा। मौत का डर सता रहा। कोई अपनापन नहीं। इंसान अकेले आया था, अकेले ही जाना है। ये मंजर मैंने अपनी आंखों से देखा, तो अंतर्मन से टूट गया। 4 साल तक विचार करता रहा
चूंकि मेरा परिवार जैन धर्म को मानता है, जैन मुनियों से मेरा भी जुड़ाव रहा। कोविड के बाद मेरा मन धीरे-धीरे वैराग्य की ओर बढ़ने लगा। लगने लगा कि दुनिया की मोह-माया में कुछ नहीं रखा है। जैन मुनियों से वैराग्य के बारे में पूछा। 3-4 साल तक विचार करता रहा, अब लगा कि वैराग्य का समय आ गया है। मैं मुनियों जैसा सादा जीवन जियूंगा हर्षित कहते हैं कि अब मैं 30 साल का हूं। सभी धन दौलत को त्याग कर संयम की राह अपना रहा हूं। एक प्रसिद्ध जैन मुनि से मैंने दीक्षा ली। जैन मुनि बनने की सारी प्रक्रिया मैं अपनाने को तैयार हूं। उसी के नियम अनुसार अब मैं सादा जीवन जियूंगा। हजारों भक्तों के साथ तिलक समारोह हुआ
बीते दिन हर्षित जैन का बागपत के जैन मंदिरों में तिलक समारोह हुआ। पहले दोघट के जैन मंदिर में तिलक समारोह किया गया। बग्घी पर बैठाकर बैंड-बाजों के साथ कस्बे में भ्रमण कराया गया। उसके बाद जैन मंदिर में जाकर यात्रा खत्म हुई। मंदिर में जैन मुनि बनाने के लिए मुनियों ने तिलक किया। इसके बाद मंगलवार को बामनौली गांव के जैन मंदिर में विधि-विधान के साथ मंत्रोच्चारण के बाद दोबारा तिलक किया गया। जैन मुनि बनने के बाद हर्षित ने अपना बैग पैक किया। पिता बोले- मैं खुश हूं, बेटे ने सत्य को करीब से देखा
हर्षित के वैराग्य को लेकर पिता सुरेश कुमार ने कहा- मैं खुश हूं, मेरा बेटा धर्म में आस्था रखता है। कोविड के समय में उसने सत्य को करीब से देखा। उसके मन में मुनि बनने का विचार आया। अब वह मुनि बन गया है। 14 साल के श्रेयस और 16 के संभव जैन भी मुनि बने
बागपत में हर्षित के साथ उत्तराखंड के संभव जैन और हरियाणा के श्रेयस ने भी वैराग्य अपनाया है। 16 साल के संभव जैन ने कक्षा-9 तक पढ़ाई की है। उसके बाद ही वैराग्य का रास्ता चुनने का सोच लिया। उनके पिता सुरेश जैन ने भी दीक्षा ग्रहण की है। मां शालू जैन ग्रहिणी हैं। संभव पिछले 7 साल से जैन संतों की सेवा कर रहे। वहीं, हरियाणा के रहने वाले श्रेयस जैन ने सिर्फ 14 साल की उम्र में वैराग्य अपना लिया। श्रेयस 7वीं पास करने के बाद 11 साल की उम्र से जैन संतों की सेवा कर रहे थे। उनके पिता पवन कुमार हैं। ———————— ये खबर भी पढ़ें संत प्रेमानंद से कॉमेडियन राजपाल यादव बोले- पत्नी झगड़ा करेगी:लगता है श्रीकृष्ण का मनसुखा मैं ही था; ठहाके मारकर हंसे महाराज बॉलीवुड के कॉमेडियन एक्टर राजपाल यादव मंगलवार को वृंदावन पहुंचे। उन्होंने संत प्रेमानंद महाराज से आशीर्वाद लिया। राजपाल ने भगवान श्रीकृष्ण के सखा मनसुखा की कहानी सुनाई तो संत प्रेमानंद खिलखिलाकर हंस पड़े। पूरी खबर पढ़ें
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