यूएस के टैरिफ हमलों के बीच भारत-यूके ट्रेड डील एक स्मार्ट चाल, जानें क्या हैं इसके मायने

यूएस के टैरिफ हमलों के बीच भारत-यूके ट्रेड डील एक स्मार्ट चाल, जानें क्या हैं इसके मायने

ट्रंप कह रहे हैं- स्टॉप ब्रिंगिंग पीपल टू टेक आवर जॉब्स – और वहीं ब्रिटेन कह रहा है – कम, वी वेलकम टैलेंट. मतलब एक तरफ़ गेटकीपिंग, दूसरी तरफ़ रेड कार्पेट. ऐसे में सवाल ये है कि भारत किसके साथ चलेगा? दुनिया के बदलते ट्रेड समीकरणों में भारत अब सिर्फ़ खेल का हिस्सा नहीं, बल्कि एक रणनीतिक खिलाड़ी बनता दिख रहा है. यूएस के टैरिफ हमलों के बीच भारत-यूके ट्रेड डील एक स्मार्ट चाल साबित हो सकती है. अमेरिका ने बेतहाशा टैरिफ बढ़ाए हैं, लेकिन क्या ब्रिटेन का नया व्यापार समझौता भारत के लिए सेफ्टी नेट बन सकता है? जब एक तरफ़ वॉशिंगटन से व्यापार युद्ध के बादल उठ रहे हैं, तो वहीं लंदन भारत को नया आर्थिक रास्ता दे रहा है. तो क्या यूके से हो रही ये डील भारत की एक्सपोर्ट इकोनॉमी को संभाले रखेगी? जानिए विस्तार से

अमेरिकी दबाव और वैश्विक परिदृश्य

भारत के निर्यात क्षेत्र पर अमेरिकी टैरिफ का झटका साफ दिख रहा है. ट्रंप प्रशासन के नए टैरिफ स्ट्रक्चर ने भारत के लेबर-इंटेंसिव सेक्टर्स — जैसे टेक्सटाइल्स, जेम्स एंड ज्वेलरी, इंजीनियरिंग गुड्स – को सबसे ज़्यादा प्रभावित किया है. अमेरिका के बढ़े टैरिफ शुल्क की वजह से भारत को हर साल करीब 40 अरब डॉलर के एक्सपोर्ट लॉस का सामना करना पड़ सकता है. इधर, वियतनाम, बांग्लादेश और यहां तक कि चीन को फिलहाल कम टैरिफ मिल रहा है, यानी भारत की प्रतिस्पर्धा और कठिन हो गई है.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की भारत यात्रा

इसी बीच, ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर (Keir Starmer) की भारत यात्रा ने इस पूरी कहानी को नया मोड़ दे दिया है. प्रधानमंत्री बनने के बाद यह उनकी भारत की पहली आधिकारिक यात्रा है, जिसमें वे 125 सदस्यीय व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली और मुंबई पहुंचे के दौरे पर हैं. इस दौरे का मकसद भारत-ब्रिटेन के बीच लंबित फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) को अंतिम रूप देना और इसे जुलाई 2026 तक लागू करने की दिशा में ठोस प्रगति करना है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात में दोनों नेताओं ने ट्रेड, टेक्नोलॉजी, डिफेंस और एजुकेशन पार्टनरशिप जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा की. स्टार्मर ने बैठक के दौरान कहा- भारत हमारे लिए सिर्फ़ एक व्यापारिक साझेदार नहीं, बल्कि भविष्य की वैश्विक स्थिरता में एक भरोसेमंद साथी है. इस दौरान भारत को ब्रिटेन से लगभग 350 मिलियन पाउंड यानि 468 मिलियन डॉलर कीमत के हल्के मिसाइल सिस्टम्स की सप्लाई के समझौते को भी मंज़ूरी मिली है, जो दोनों देशों की रक्षा साझेदारी को नई दिशा देता है.

इसके साथ ही स्टार्मर ने एक बड़ा राजनीतिक संकेत भी दिया है- यूके भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की उम्मीद का समर्थन करता है. इस बयान को भारत में एक सकारात्मक संकेत के तौर पर देखा जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब अमेरिका की नीतियाँ व्यापार को लेकर अनिश्चितता बढ़ा रही हैं. विशेषज्ञों के अनुसार, स्टार्मर की यह यात्रा भारत-ब्रिटेन रिश्तों को सिर्फ़ व्यापारिक नहीं, बल्कि रणनीतिक साझेदारी में बदलने की दिशा में अहम कदम साबित हो सकती है.

भारत-यूके व्यापार समझौते की दिशा

अमेरिकी टैरिफ में बढ़ोतरी के बाद, यही वह समय है जब भारत और ब्रिटेन के बीच Free Trade Agreement (FTA) पर बातचीत ने रफ्तार पकड़ी है. यह डील जुलाई 2026 तक लागू होने की उम्मीद है, और इसका मकसद है भारत को अमेरिका की अस्थिर नीतियों से आंशिक सुरक्षा देना. केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, पीयूष गोयल ने बार-बार कहा है, “मुक्त व्यापार समझौता (FTA) “महत्वाकांक्षी और संतुलित” है और इससे भारतीय उद्योगों और Goods and Services के क्षेत्र के पेशेवरों को फायदा होगा.

द इंडियन एक्सप्रेस के एक लेख में कहा गया है, “ब्रिटेन के साथ यह समझौता भारत की व्यापार विविधीकरण रणनीति (Diversification Strategy) को मज़बूत करता है, खासकर अस्थिर अमेरिकी व्यापार नीतियों के जवाब में. इसमें वाणिज्य मंत्रालय के हवाले से कहा गया है कि यह समझौता भारत की हाई-वैल्यू सर्विसेज़ का वैश्विक केंद्र बनने के लक्ष्य के अनुरूप है. ब्रिटेन दुनिया की सबसे विकसित सेवा अर्थव्यवस्थाओं में से एक है. यह साझेदारी भारत के आईटी, कंसल्टिंग, फिनटेक, और हेल्थकेयर सर्विस प्रोवाइडर्स को बड़ा मौका देगी.

अमेरिकी अस्थिरता बनाम ब्रिटिश स्थिरता

ट्रंप प्रशासन की नई पॉलिसी के तहत, अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक ने कहा था, “हम अपनी नौकरियां बाहर से आने वालों को नहीं देंगे. अब से जो भी हमारे बाजार में आना चाहता है, उसे कीमत चुकानी होगी”. यानी अब अमेरिका की नीति है Pay to Play.

इसके उलट ब्रिटेन ने पोस्ट-ब्रेक्सिट दौर में भारत जैसे उभरते बाज़ारों के साथ गहरे आर्थिक रिश्ते बनाने की कोशिश शुरू कर दी है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टारमर ने साझेदारी और भारत के साथ नए व्यापार समझौते के बारे में बात की, इसे “विकास का आधार” बताया और भारत की अर्थव्यवस्था के संभावित विकास के साथ “अद्वितीय” अवसरों पर प्रकाश डाला. उन्होंने अपने व्यापार मिशन के दौरान कारोबार के लिए इन मौकों का फायदा उठाने को आसान बनाने पर ज़ोर दिया.

हाल ही में ब्रिटेन के व्यापार और वाणिज्य मंत्री पीटर काइल ने कहा था कि ब्रिटेन की भारत के साथ व्यापार बढ़ाने की महत्वाकांक्षी योजनाएं हैं. उन्होंने नए व्यापार समझौते को भारत के साथ किसी भी देश द्वारा हासिल किया गया सर्वश्रेष्ठ समझौता बताया. उन्होंने कहा कि व्यापार प्रतिनिधिमंडल का लक्ष्य इस समझौते के माध्यम से कंपनियों को विकास और समृद्धि प्रदान करने में मदद करना है.

हाल की बैठकों के बाद जारी आधिकारिक यूके-भारत संयुक्त बयानों में यूके में प्रवासी भारतीयों की एक “लिविंग ब्रिज” के रूप में अहम भूमिका को स्वीकार किया गया, जो दोनों देशों के बीच आर्थिक और सांस्कृतिक रिश्तों को मज़बूत करता है.

भारतीय निर्यातकों के लिए राहत के संकेत

इस समझौते के लागू होते ही भारत के टेक्सटाइल और लेदर उत्पादों को ब्रिटिश बाजार में वह दर्जा मिलेगा, जो वियतनाम या बांग्लादेश को पहले से हासिल है. ब्रिटेन हर साल करीब 27 अरब डॉलर के टेक्सटाइल उत्पाद आयात करता है, और 2024 में भारत का ब्रिटेन को निर्यात 13.5 अरब डॉलर था. यानि अब यह अंतर घट सकता है. इसके अलावा, भारत को यूके से लगभग 90% वस्तुओं पर टैरिफ-फ्री एक्सेस मिलेगा – जिनमें ज्वेलरी, फार्मा, इंजीनियरिंग और मशीनरी जैसे सेक्टर शामिल हैं.

फेडरेशन ऑफ़ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन (FIEO) के अध्यक्ष एस. सी. रल्हन ने एक बयान में इस समझौते को इंडियन एक्सपोर्टर्स के लिए एक “परिवर्तनकारी क्षण” बताते हुए कहा था कि यह समझौता प्रमुख क्षेत्रों, विशेष रूप से MSME सेक्टर और लेबर से जुड़े उद्योगों के लिए अभूतपूर्व अवसर प्रदान करता है.

सेवाओं का नया मोर्चा

भारत-यूके डील का सबसे बड़ा फायदा सर्विस सेक्टर को होगा. ब्रिटिश बैंकिंग और इंश्योरेंस फर्म्स को भारत में निवेश का आसान रास्ता मिलेगा, वहीं भारतीय आईटी कंपनियों और कंसल्टिंग सर्विसेज को ब्रिटिश मार्केट में प्रवेश आसान होगा.

इसके साथ-साथ, वीज़ा व्यवस्था भी इस डील का हिस्सा है. एक प्रस्तावित प्रावधान के तहत, भारत के स्किल्ड प्रोफेशनल्स को बिना किसी लंबी इमिग्रेशन प्रक्रिया के ब्रिटेन में शॉर्ट-टर्म प्रोजेक्ट्स और टेक असाइनमेंट्स पर काम करने की इजाज़त होगी. ब्रिटिश हायरिंग एजेंसी ग्लोबल टैलेंट ग्रुप के CEO साइमन हैरोल्ड ने कहा- “भारत के पास स्किल है, हमारे पास स्कोप है। यह साझेदारी दोनों को फायदा पहुंचाएगी.

तो क्या ब्रिटेन के साथ यह समझौता भारत को अमेरिकी आर्थिक अस्थिरता से बचा सकेगा? या फिर यह भी सिर्फ एक सीमित राहत साबित होगी? साफ है कि भारत अब एक ही बाजार पर निर्भर नहीं रहना चाहता और शायद यही रणनीति भारत को आने वाले दशक की आर्थिक कहानी में सबसे अलग बनाएगी.

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