जमुई के गिद्धौर प्रखंड स्थित मौरा बालू घाट को लेकर किसानों का विरोध प्रदर्शन लगातार जारी है। मौरा और आसपास के गांवों के किसान अपनी कृषि योग्य भूमि को बंजर होने से बचाने के लिए बालू घाट बंद करने की मांग कर रहे हैं। उनका आरोप है कि लगातार बालू खनन से खेती और सिंचाई व्यवस्था पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। किसानों के अनुसार, मौरा पुवारी, मंजला बाहियार, पछियारी, कोरियाका और धोबघट जैसे सिंचाई पैन से सैकड़ों एकड़ कृषि भूमि की सिंचाई होती है। नदी से जुड़े इन पैनों का अस्तित्व बालू खनन के कारण संकट में है। सच्चिदानंद मंडल, विजय रावत, राजेंद्र रावत सहित दर्जनों किसानों ने यह बात कही। जिला खनिज विकास पदाधिकारी को जांच के आदेश दिए थे इससे पूर्व दिसंबर माह में मौरा गांव के किसानों ने जमुई के जिलाधिकारी नवीन से मुलाकात कर ज्ञापन सौंपा था। जिलाधिकारी ने मामले की गंभीरता को देखते हुए जिला खनिज विकास पदाधिकारी को जांच के आदेश दिए थे और उचित कार्रवाई का आश्वासन भी दिया था। हालांकि, किसानों का कहना है कि अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। दायर लोक याचिका के आधार पर 2018 में निविदा रद्द कर दी गई थी किसानों ने बताया कि वर्ष 2017-18 में भी इस घाट की बंदोबस्ती का विरोध किया गया था। तब उच्च न्यायालय में दायर लोक याचिका के आधार पर 2018 में निविदा रद्द कर दी गई थी। किसानों का आरोप है कि 16 जुलाई 2025 को बिना सार्वजनिक राय लिए गोपनीय तरीके से बैठक कर घाट को पुनः चालू करने की प्रक्रिया शुरू की गई है, जिससे उनमें आक्रोश है। किसान नियमावली के तहत सिंचाई पैन के मुहाने से 1900 फीट तक खनन पर रोक लगाने की मांग कर रहे हैं।
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