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मोदी-शाह से मिले नीतीश, निशांत की पॉलिटिकल एंट्री कराएगी BJP:बंगाल चुनाव से पहले तय होगी जिम्मेदारी; दिल्ली में बंद कमरे में मीटिंग की 3 बड़ी बातें

CM नीतीश कुमार दो दिवसीय दिल्ली दौरे के बाद सोमवार को पटना लौट आए। पटना लौटने से पहले उन्होंने दिल्ली में PM नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से अलग-अलग बंद कमरे में मुलाकात की है। JDU के टॉप सोर्सेज की मानें तो इस मुलाकात में 3 विषयों पर चर्चा हुई, जिसमें सबसे बड़ी बात यह थी कि बीजेपी निशांत की पॉलिटिकल एंट्री कराएगी। बंगाल चुनाव से पहले उनके लिए बड़ी जिम्मेदारी तय होगी। भास्कर एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में पढ़िए, दिल्ली में तीनों विषयों पर क्या बातें हुईं…। 1. निशांत कुमार की पॉलिटिकल एंट्री पर मुहर JDU के एक सीनियर नेता ने भास्कर को बताया कि इस मीटिंग में मुख्य रूप से CM के बेटे निशांत कुमार की पॉलिटिकल डेब्यू पर चर्चा हुई। ऐसा नहीं है कि ये सब अचानक हुआ है। अमित शाह पहले भी ये प्रस्ताव दे चुके हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय स्तर के एक नेता की माने तो अमित शाह बिहार में नीतीश की जगह उनके पसंद के चेहरे को आगे बढ़ाना चाहते हैं, जबकि नीतीश कुमार की इच्छा सीएम की कुर्सी पर बने रहने की है। उनके हेल्थ को लेकर सत्ताधारी पार्टी के नेता सकते में हैं। हालिया हिजाब प्रकरण के बाद देश भर में हुई किरकिरी ने भी नेताओं की चिंता बढ़ाई है। यही कारण है कि इस पर एक बार फिर से नए सिरे से मंथन शुरू हो गया है। जदयू नेता दावा करते हैं, ‘PM नरेंद्र मोदी अगर नीतीश कुमार को इस बात के लिए मना पाते हैं तभी ये संभव है, नहीं तो कोई नीतीश की मर्जी के खिलाफ उन्हें सीएम की कुर्सी से नहीं हटा सकता।’ JDU सूत्रों की मानें तो इस मीटिंग के बाद इस बात की पूरी संभावना है कि खरमास बाद या बंगाल चुनाव से पहले निशांत कुमार का पॉलिटिकल डेब्यू हो सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो 19 नवंबर से पहले इस मामले पर जेडीयू के दो टॉप लीडर केंद्रीय मंत्री ललन सिंह और राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा 2-3 बार अमित शाह के साथ लंबी बैठक कर चुके हैं। 5 दिसंबर को जब निशांत दिल्ली से लौट रहे थे तो उनकी मुलाकात अमित शाह से हुई। हालांकि इसका आधिकारिक दावा दोनों में से किसी से नहीं किया। निशांत पर बात करनी थी, इसलिए ललन साथ थे… जदयू से जुड़े प्रदेश स्तर के एक नेता बताते हैं, पार्टी में जब भी कोई बड़ा निर्णय लेना होता है तो नीतीश कुमार सबसे ज्यादा ललन सिंह पर भरोसा करते हैं। इस चुनाव में भी सीट शेयरिंग से लेकर उम्मीदवार चुनने तक के फैसले में ललन सिंह की सबसे बड़ी भूमिका रही। मंत्री पद किसे मिले, यह निर्णय करने में भी उनका बड़ा रोल था। उन्होंने बताया कि इस बार मामला बड़ा था, ऐसे में दिल्ली में पीएम और गृह मंत्री के साथ मीटिंग के दौरान सीएम नीतीश कुमार के साथ जदयू की तरफ से केवल ललन सिंह साथ रहे। उनके अलावा किसी भी नेता को नीतीश अपने साथ नहीं ले गए। अमूमन दिल्ली में नीतीश कुमार किसी के साथ मीटिंग करते हैं तो ललन सिंह के साथ राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा भी मौजूद रहते हैं, लेकिन इस बार वे साथ नहीं थे। 2. बजट में बिहार के लिए स्पेशल फंड की डिमांड चुनावी घोषणाओं के बाद नीतीश सरकार पर अचानक से आर्थिक भार बढ़ा है। अगर केवल 5 बड़ी घोषणाओं (फ्री बिजली, पेंशन बढ़ोतरी, आंगनबाड़ी सेविका को स्मार्टफोन और मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना) के खर्च को जोड़ दें तो सरकार के बजट पर लगभग 25 हजार करोड़ से ज्यादा का बोझ बढ़ा है। सरकार गठन के बाद नीतीश सरकार ने अब तक सबसे अधिक बजट वाला (91,717 करोड़) सेकेंड सप्लीमेंट्री बजट पेश कर चुकी है। ऐसे में एक चर्चा इस बात की भी हो रही है कि सीएम इन घोषणाओं को समय से पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से बिहार के लिए विशेष आर्थिक पैकेज की मांग कर सकते हैं। फरवरी में सेंट्रल बजट आने वाला है। इससे पहले वित्तीय वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में बिहार को लगभग 58,900 करोड़ रुपए की विशेष सौगातें मिलीं थी। इन पैसों से सड़क, बाढ़ नियंत्रण, ऊर्जा और पर्यटन परियोजनाएं पूरी करने का लक्ष्य रखा गया था। 3. खरमास बाद नीतीश कैबिनेट का होगा विस्तार जदयू सूत्रों की मानें तो एक चर्चा खरमास बाद होने वाले कैबिनेट विस्तार पर भी हुई। दरअसल, 20 नवंबर को हुए शपथ ग्रहण में 27 मंत्रियों ने शपथ ली थी। बीजेपी के 14 और जदयू के सीएम समेत 9 मंत्रियों ने शपथ ली थी। इसके बाद BJP ने अपने कोटे के मंत्री नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बना दी। उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। बिहार में कुल 36 मंत्री बन सकते हैं। इस लिहाज से देखें तो अभी 9 मंत्री शपथ ले सकते हैं। इसमें सबसे ज्यादा 6 सीटें जदयू कोटे की हैं। ऐसे में खरमास बाद नीतीश कैबिनेट में नए चेहरों का शामिल होना तय माना जा रहा है। अब समझिए इस बात की चर्चा अभी क्यों 2 पॉइंट में समझिए निशांत JDU के लिए क्यों जरूरी… नीतीश कुमार लगातार यह बात कहते रहे हैं कि उन्होंने कभी राजनीति में परिवार को आगे नहीं बढ़ाया। अपने परिवार से किसी को चुनाव नहीं लड़वाया। वह अपने आदर्श कर्पूरी ठाकुर के आदर्शों का पालन कर रहे हैं। इसका नतीजा ये है कि नीतीश कुमार के बाद पार्टी में सभी नंबर-2 के नेता हैं। एक भी नेता ऐसा नहीं, जिसे पार्टी के भीतर और राज्य भर में स्वीकार किया जाए। एक बार नीतीश कुमार जीतन राम मांझी को पार्टी में अपनी जगह आगे बढ़ाकर खामियाजा भुगत चुके हैं। दोबारा किसी भी सूरत में अपनी पार्टी में टूट नहीं चाहेंगे। 2003 में बनी JDU बीते 22 साल से नीतीश की छतरी के नीचे ही चल रही है। नीतीश कुमार ही चेहरा हैं। पार्टी में कोई और नेता नहीं, जिसकी पकड़ पूरे बिहार में हो। दूसरे नंबर पर जरूर कुछ नेता पहुंचे हैं, लेकिन वे भी लंबे समय तक टिक नहीं पाए। इनमें सबसे बड़ा नाम RCP सिंह (रामचंद्र प्रसाद सिंह ) का है। UP कैडर के IAS अफसर रहे RCP 2010 में नौकरी छोड़कर JDU में आए। उन्हें नीतीश कुमार का आंख-कान-नाक कहा जाता था। 2020 में JDU के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 2 साल बाद ही दोनों के रिश्ते में दरार पड़ गई। RCP ने JDU छोड़ दिया। वे भाजपा में शामिल हुए और फिर जन सुराज का हिस्सा बन गए। JDU में नीतीश के अलावा 4 बड़े नेता हैं। केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, विजय कुमार चौधरी और अशोक चौधरी। इनमें ललन सिंह और विजय चौधरी भूमिहार हैं। संजय झा ब्राह्मण और अशोक चौधरी दलित हैं। JDU के कोर वोटर कुर्मी-कोइरी और EBC हैं। तीनों समाज को मिला लें तो बिहार की कुल आबादी का 43% हैं। इनमें अकेले EBC आबादी 36% है। मतलब यह है कि नीतीश के बाद पार्टी के चारों बड़े नेता JDU के कोर वोट बैंक से नहीं आते। चारों कुर्मी-कोइरी और अति पिछड़ा समीकरण में फिट नहीं।


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