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मृत्युभोज के खिलाफ गायत्री परिजनों का संकल्प:परबत्ता प्रखंड में सामाजिक कुरीति के विरुद्ध जागरण अभियान

खगड़िया जिले के परबत्ता प्रखंड में मृत्युभोज जैसी सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ गायत्री परिवार ने एक संगठित अभियान शुरू किया है। इस कुरीति के विरुद्ध गायत्री परिजन अब मुखर होकर सामने आए हैं, जिसका उद्देश्य समाज में जागरूकता लाना है। गायत्री परिवार का मानना है कि शोक की घड़ी को सामाजिक दबाव और दिखावे में बदलना अमानवीय है। उनका स्पष्ट संदेश है कि शोक का सम्मान सादगी, संवेदना और सहयोग से होना चाहिए, न कि कर्ज और आडंबरपूर्ण भोज से। मृत्युभोज सामाजिक कुरीति और कानूनी अपराध गायत्री परिवार के युवा प्रवक्ता श्रवण आकाश ने बताया कि मृत्युभोज न केवल एक सामाजिक कुरीति है, बल्कि यह कानूनन अपराध भी है। उन्होंने ‘मृत्युभोज अधिनियम 1960’ का हवाला देते हुए कहा कि यह परंपरा प्रतिबंधित है, फिर भी जागरूकता की कमी के कारण कई परिवार सामाजिक दबाव में इसे निभाने को मजबूर हैं। उन्होंने युवाओं से इस दिशा में आगे आने का आह्वान किया। वरिष्ठ गायत्री साधक अनिल चंद्र मंडल ने इस अभियान के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गायत्री परिवार का लक्ष्य केवल कानून की जानकारी देना नहीं, बल्कि समाज की सोच में बदलाव लाना है। उन्होंने जोर दिया कि मृत्यु के बाद शोक संतप्त परिवार को भोज की नहीं, बल्कि आत्मबल, सहानुभूति और नैतिक सहयोग की आवश्यकता होती है। सत्संग, विचार गोष्ठी और घर-घर संपर्क अभियान के माध्यम से लोगों को मृत्युभोज के दुष्परिणामों से अवगत कराया जा रहा है। अभियान में सक्रिय भूमिका निभा रहे विपिन कुमार उर्फ अनिल यादव ने बताया कि परबत्ता प्रखंड के कई गांवों में अब लोग स्वयं मृत्युभोज न करने और न ही किसी को करने देने का संकल्प ले रहे हैं। परबत्ता में मृत्युभोज के खिलाफ सामाजिक आंदोलन गायत्री परिजन ज्ञानचंद भगत ने कानून के प्रावधानों की जानकारी देते हुए बताया कि मृत्युभोज कराने, सहयोग करने या उकसाने पर एक वर्ष तक का कारावास, जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। उन्होंने कहा कि पंचायत प्रतिनिधियों, ग्रामसेवकों और आम नागरिकों को भी इसकी सूचना प्रशासन को देकर आयोजन रुकवाने का अधिकार है। उन्होंने प्रशासन और समाज के समन्वय को इस लड़ाई की सबसे बड़ी ताकत बताया। परबत्ता प्रखंड में गायत्री परिजनों की यह पहल अब एक सामाजिक आंदोलन का रूप लेती दिख रही है। आध्यात्मिक मूल्यों और सामाजिक जिम्मेदारी के समन्वय से लोग वर्षों पुरानी इस कुरीति को त्यागने का संकल्प ले रहे हैं। गायत्री परिवार का सामूहिक आह्वान है—“मृत्युभोज छोड़ें, सादगी अपनाएं, शोक को संस्कार से जोड़ें—यही सच्ची मानवता है।”


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