मुगलों के पूर्वज चंगेज खान-तैमूर लंग कितने क्रूर थे? किस्से पढ़कर औरंगजेब को भूल जाएंगे

मुगलों के पूर्वज चंगेज खान-तैमूर लंग कितने क्रूर थे? किस्से पढ़कर औरंगजेब को भूल जाएंगे

शासकों की क्रूरता की चर्चा होती है तो अक्सर औरंगजेब या बाबर तक सीमित रह जाती है, पर उनसे पहले मध्य एशिया के दो शासकों मंगोल शासक चंगेज खां (तेमूजिन) और तैमूर लंग (टीमूर-ए-लंग) के अभियान दुनिया के इतिहास में असाधारण क्रूरता के प्रतीक हैं. इनसे जुड़े किस्से उनके युद्ध कौशल के साथ-साथ उनके दमन और भय की राजनीति को उजागर करते हैं.

चंगेज खान 13वीं सदी का एक मंगोल योद्धा था. जो मंगोल साम्राज्य का संस्थापक था. वह मुगल सल्तनत की नींव रखने वाले बाबर की मां की ओर से दसवां परदादा था. जिसके कारण बाबर और दूसरे मुग़ल बादशाह चंगेज खान के वंशज थे. वहीं तैमूर ने तैमूरी साम्राज्य की स्थापना की. बाबर का तैमूर का ही परपोता था.

चंगेज खां के किस्से

जब हजारों सिर काटकर ढेर लगाए गए

ख़्वारज़्मिया पर मंगोल चढ़ाई के दौरान निशापुर ने प्रतिरोध किया. शहर गिरने के बाद प्रतिशोध ऐसा हुआ कि कथाओं में कुत्तों-बिल्लियों तक के न बचने का मुहावरा चल पड़ा. हजारों सिर काटकर ढेर लगाए गए. यह संदेश था कि मंगोल सत्ता के सामने विद्रोह की कीमत क्या होती है. इसमें मंगोल अनुशासन, तेज़ घेराबंदी और दया की अनुपस्थिति तीनों साथ दिखते हैं.

ख़्वारज़्मिया का समृद्ध नगर उर्गेन्च लंबे समय तक टिका रहा. जब वह टूट गया, तो मंगोलों ने बड़ी संख्या में निवासियों का संहार किया और शिल्पियों को चुनकर अलग कर लिया. जलमार्गों और नहरों तक को तोड़ दिया गया ताकि शहर आर्थिक रूप से फिर न उठ सके. यह भविष्य की बगावत रोकने की रणनीति थी, विकास की जड़ ही काट डालना.

Genghis Khan

चंगेज खान.

मर्व और सराख़्स के मैदानों में खोपड़ियों के ढेर

मर्व जैसे उच्च सभ्यता-केंद्र में समर्पण के बाद भी व्यापक नरसंहार हुआ. जीत के बाद नगरों को बहुधा खाली कराया जाता. जीवितों का सीमित हिस्सा दास बनता, बाकी का अंत. फिर मानव-खोपड़ियों के मीनार खड़े किए जाते, जिससे खबरें दूर-दूर तक भय बनकर पहुंचें, ताकि अगले शहर बिना लड़े झुक जाएं.

बामियान: मंगोल युवराज की मौत और उसका बदला

बामियान की घेराबंदी में चंगेज का एक प्रिय पोता मारा गया. इसके बाद शहर पर जो कहर टूटा वह सामान्य मंगोल नीति से भी कठोर बताया जाता है, धरती बराबर कर देना. बामियान का उदाहरण दिखाता है कि व्यक्तिगत क्षति मंगोल प्रतिशोध को किस तरह उग्र बना देती थी.

झूठी पीछे हट और मानवीय ढाल की चालें

मंगोल युद्ध कला में फेंटेड रिट्रीट यानी जान-बूझकर पीछे हटकर शत्रु को बाहर खींचना खास था. जब शत्रु शहर से बाहर आता, उसे मैदान में घेरकर काट दिया जाता और फिर नगर निर्बल हो जाता. साथ ही, कभी-कभी बंदियों को आगे कर मानवीय ढाल बनाई जाती, जो नैतिकता से परे, केवल विजय-लाभ के लिए होती थी.

कराकोरम का लौह अनुशासन

चंगेज़ खां ने यासा (कानून) से अपनी सेना में कठोर अनुशासन लागू किया. आदेश उल्लंघन पर मृत्युदंड, लूट का साझा बंटवारा, भागने पर दंड, इस लोहे की रीढ़ ने आक्रमणों को यांत्रिक क्रूरता दी. अनुशासन ने न केवल जीत आसान की, बल्कि विरोधियों के मन में डर की स्थायी दीवार भी खड़ी की.

तैमूर लंग के किस्से

Taimur Lang History

तैमूर लंग.

तैमूर का इस्फ़हान, हज़ारों सिरों की मीनारें

1387 में इस्फ़हान के बगावत के बाद तैमूर ने ऐसे नरसंहार का आदेश दिया कि कथाओं में हज़ारों सिरों के बुर्ज या मीनारों का चित्रण मिलता है. यह केवल दंड नहीं, एक नाटक था, एक राजनीतिक संदेश था कि तैमूरी सत्ता के ख़िलाफ़ उठना स्वयं शहर के विनाश का निमंत्रण है.

बगदाद (1401): खोपड़ियों से टीलों का निर्माण

तैमूर ने बगदाद पर कब्ज़े के बाद बड़े पैमाने पर कत्लेआम कराया और खोपड़ियों के टीलों का निर्माण करवाया. एक पुरानी सभ्यता यानी राजधानी को भय के स्मारक में बदलना उसकी मनोवैज्ञानिक रणनीति का हिस्सा था, जिससे अगले मोर्चे अपने-आप ढीले पड़ जाएं.

दिल्ली (1398): दहशत का तूफ़ान आया

दिल्ली पर चढ़ाई के दौरान तैमूर की सेना ने शहर में व्यापक हिंसा, लूट-पाट और जनसंहार किया. क़ैदियों को कत्ल कर देना और नगर के भीतर तांडव, जैसी इन घटनाओं ने उत्तर भारत की सामाजिक-आर्थिक धाराओं को झकझोर दिया. दिल्ली जीतना भर नहीं, उसे दहला देना तैमूर के उद्देश्य में शामिल था.

सिवास और अलेप्पो, समर्पण की भी कीमत

अनातोलिया के सिवास में और फिर सीरिया के अलेप्पो-दमिश्क में, तैमूर ने प्रतिरोध या देर से समर्पण पर कठोर दंड दिया. कहीं रक्षकों को ज़िंदा दफनाने की बातें मिलती हैं, तो कहीं जलते शहरों के साये में बंदियों की कतारें. यह समर्पण करो या मिट जाओ की नीति थी, जिसमें समर्पण भी सुरक्षित राह नहीं सिद्ध होता.

समरकंद की शान, दूसरों की बरबादी

तैमूर ने समरकंद को सजाने के लिए हर विजित नगर से कारीगर, वास्तुकार और विद्वानों का उठा लाया. बाहर के शहरों के लिए यह सांस्कृतिक निर्वासन था, जिससे उनके अपने कला-उद्योग सूख गए. एक ओर समरकंद में गुंबद-इवान चमकते गए, दूसरी ओर, लूटे हुए नगर सांस्कृतिक रिक्तता में डूबती गए यानी सॉफ्ट पावर के पीछे कठोर क्रूरता.

तोख़तमिश से जंग और सारी-बरके का पतन

स्वर्ण अर्द (Golden Horde) पर तैमूर की चढ़ाई में सारी-बरके (Sarai) जैसे नगरों का विध्वंस हुआ. वोल्गा क्षेत्र के व्यापारिक मार्ग ध्वस्त हुए, काफ़िले तितर-बितर हो गए और आबादियां उजड़ गईं. युद्ध केवल सेनाओं का टकराव नहीं, पूरी अर्थव्यवस्था पर चोट बन गया, जो वर्षों तक घाव छोड़ गया.

क्रूरता क्यों थी रणनीति?

भय पैदा करना: खोपड़ियों की मीनारें, जनसंहार और धराशायी किए शहर, ये सब अगले शहरों को बिना लड़े झुकाने के लिए विज्ञापन थे. खबरें ऊंटों और काफ़िलों से दूर तक उड़तीं, जिससे प्रतिरोध पिघल जाता.

संसाधनों का केंद्रीकरण: योग्य शिल्पियों को उठाकर राजधानी में बसाना; प्रतिद्वंद्वी नगरों की आर्थिक नसें काट देना था.

अनुशासन और गति: मंगोल घुड़सवारों की गति, तैमूरी घेराबंदियां और लोहे का अनुशासन, इन सबने दया की गुंजाइश कम कर दी, क्योंकि लक्ष्य था तेज़ और निर्णायक परिणाम.

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