भागलपुर के रितेश कुमार साह (25) बिना गियर की साधारण साइकिल से माउंट एवरेस्ट बेस कैंप तक पहुंचे है। लेकिन अब वापसी चुनौती बन रही है। जिसको लेकर पिता ने सरकार और जिला प्रशासन से मदद से गुहार लगाई है। रितेश जिले के कहलगांव प्रखंड अंतर्गत पैठनपुरा वार्ड नंबर–1 के रहने वाले है। सीमित संसाधनों, न्यूनतम खर्च और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के बीच पूरा किया गया यह सफर गौरव का विषय है। हालांकि, इस ऐतिहासिक उपलब्धि के बाद अब उनकी सुरक्षित वापसी को लेकर चिंता बढ़ गई है। बिना गियर वाली साइकिल के सहारे तय किया सफर रितेश कुमार साह ने 23 अक्टूबर की रात दिल्ली के अशोकनगर से अपनी यात्रा की शुरुआत की थी। उनके पास न तो आधुनिक पर्वतारोहण उपकरण थे और न ही किसी प्रकार का प्रायोजन था। सामान्य बिना गियर साइकिल, 25 किलो का बैग और सीमित कपड़ों के सहारे उन्होंने इस चुनौतीपूर्ण यात्रा को आगे बढ़ाया। 41 दिनों की लगातार कठिन यात्रा के बाद वे 5364 मीटर की ऊंचाई पर स्थित एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचे और तिरंगा फहराकर सफलता दर्ज कराई। इस उपलब्धि पर नेपाल सरकार की ओर से उन्हें प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। 1300 किलोमीटर तक पैदल यात्रा की यात्रा के दौरान रितेश को खड़ी चढ़ाइयों, पथरीले रास्तों, अत्यधिक ठंड और ऑक्सीजन की कमी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। कई स्थानों पर साइकिल चलाना संभव नहीं होने के कारण उन्होंने करीब 20 किलो वजनी साइकिल को कंधे पर उठाकर लगभग 1300 किलोमीटर तक पैदल यात्रा की। लंबे समय तक सीमित भोजन के रूप में चना और गुड़ पर निर्भर रहने से उनका शारीरिक स्वास्थ्य प्रभावित हुआ। अपर्याप्त कपड़ों के कारण हाथ-पैर सूज गए और शरीर पर छाले पड़ गए। एवरेस्ट बेस कैंप पहुंचने के बाद उनकी तबीयत बिगड़ने की सूचना पर परिजनों ने जनप्रतिनिधियों और जिला प्रशासन से मदद की गुहार लगाई। हालांकि, अब तक किसी प्रकार की प्रशासनिक सहायता उपलब्ध नहीं हो सकी है। आर्थिक संकट के कारण रितेश सीमित संसाधनों के साथ ही वापसी की यात्रा कर रहे हैं। परिवार को बेटे की उपलब्धि पर गर्व है, लेकिन उसकी सुरक्षा और स्वास्थ्य को लेकर चिंता बनी हुई है।
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