‘क्या हमने कहीं चोरी की है? डाका डालकर ये दुकान बनाई है? हमने किसी का पैसा नहीं छीना, न कोई गलत काम किया है। अपना मकान बेचकर ये दुकान खरीदी थी अब हम कहां जाएं?
अब इस उम्र में हम किसके आगे भीख मांगे, हाथ फैलाएं? हमारे बच्चों की पढ़ाई, शादियां कैसे होंगी? उनका गुजारा कैसे चलेगा’? पिछले 35 साल से अपने खून-पसीने से सींची दुकान को धराशायी होते देखकर उन 22 व्यापारियों और घर वालों का दिल बैठा जा रहा था, जिनकी दुकानें खाली करवाकर जमींदोज कर दी गईं। उनके आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। मार्केट की इमारत पर बुलडोजर की हुई हर चोट व्यापारियों की आत्मा पर लग रही थी। सेंट्रल मार्केट के व्यापारी अफसरों के सामने गिड़गिड़ाते रहे, हाथ जोड़ते रहे कि उन्हें बख्श दें, लेकिन सु्प्रीम कोर्ट के आदेश के आगे सब बेबस थे। अपनी आंखों के सामने अपने सपनों को खत्म हाेते देख पीड़ितों ने रोते हुए दैनिक भास्कर से अपना दर्द बताया…. सरकार चाहे तो हमसे पैसा ले ले, हम घर बेचकर वो जगह ले लेंगे
कांप्लेक्स में अलंकार साड़ी स्टोर के संचालक राजीव गुप्ता के आंसू पिछले दो दिनों से थमे नहीं है। अपनी पत्नी, बहन और दोनों बेटों के साथ राजीव पिछले दो दिनों से यहीं कांप्लेक्स के सामने बैठे हैं। वो कभी अपनी टूटती दुकान देखते हैं, तो कभी बच्चों के चेहरों पर नजर डालते हैं। राजीव कहते हैं हमारी सरकार से हाथ जोड़कर, झोली बिछाकर गुजारिश है कि हमें इसके बदले में जगह दे। सरकार चाहे तो हमसे पैसा ले ले, हम घर बेचकर वो जगह ले लेंगे, लेकिन रोटी खाने के लिए हमें कुछ तो चाहिए। जहां हम अपना छोटा सा काम कर सकें। हम पर दोहरी मार, 100 लोगों का रोजगार खत्म
आगे कहते हैं कि हमारी दुकान तो गई, हमारा पैसा कमाने का जरिया तो सरकार ने खत्म ही कर दिया। अब ये कांप्लेक्स तोड़ने का जो पैसा है वो भी हमसे ही लिया जा रहा है। हमारे इस कांप्लेक्स में 100 से ज्यादा लोगों को रोजगार मिलता था। अब उनके परिवार कैसे चलेंगे, क्या वो अपराधी नहीं बनेंगे। एक तरफ सरकार कहती है अपराध हो रहा है, यहां सरकार क्राइम करने के लिए मजबूर कर रही है। जो दो वक्त की रोटी लोग कमा रहे थे उसे भी उजाड़ दिया गया। हमारे पुनर्वास का सरकार इंतजाम करे। अपराधी को भी फांसी से मर्सी मिलती है
एक आदमी कत्ल करता है तो उसे भी सजा मिलती है, फांसी नहीं होती। हमने गलती की है, तो हमारे लिए भी सरकार पुनर्वास का इंतजाम करे, थोड़ी सी मर्सी तो हमें भी मिलना चाहिए। हमें नहीं पता इस सदमे और नुकसान से हमारा हार्टफेल होगा, हम सुसाइड करेंगे। हम जिंदा रहेंगे भी या नहीं ये भी नहीं जानते। आदमी मरता है लेकिन रोजगार खत्म होने पर पूरा परिवार मरता है। हम मर जाएंगे तो क्या सरकार हमारी लाश उठाने आएगी। हमने अफसरों से नेताओं को पैसा दिया, अब सब गायब
राजीव कहते हैं मेरे दो बेटे हैं वो पढ़ रहे हैं। सवाल करते हैं कि अब वो कैसे पढ़ेंगे। हमने इन 35 सालों में किन अफसरों, नेताओं को पैसा दिया है वो हम कहना नहीं चाहते। केवल लक्ष्मीकांत वाजपेयी जी हमारे साथ खड़े हुए थे, वरना कोई नेता, सांसद, विधायक हमसे मिलने या हमें सांत्वना देने नहीं आया। हमने पैसे देकर दुकान बनाई ये गुनाह है क्या
राजीव की पत्नी अंजू गुप्ता कहती हैं कि यहां नई सड़क पर लोगों ने अवैध तरह से खोखे जमाए थे। जो न बिल देते थे, न टैक्स देते थे। उनकी तो रजिस्ट्रियां भी नहीं थी। सरकार ने जब उनको वहां से हटाया तो उन्हें मेडिकल के आगे जगह दी। उनके पुनर्वास के लिए दुकानें दे दी, लेकिन हम लोगों का क्या होगा? हम तो सड़क पर आ गए। हमने तो सरकार को बिल, टैक्स सब दिया। अपनी रजिस्ट्री कराई हमारा तो सब उजड़ गया। ये जमीन हमने रजिस्ट्री करके खरीदी थी। अपनी जमापूंजी को हमने इस दुकान में लगाया था, लेकिन हमें वो जमीन भी नहीं लौटाई जा रही। हम उस जमीन पर मकान ही बना लेंगे। हमने क्या गुनाह किया है किसी की जेब तो हमने काटी नहीं है, केवल हमने रिहायशी इलाके में कमर्शियल दुकान बना ली। हमारा बिजली बिल, रजिस्ट्री सब कमर्शियल है। हम बिल कमर्शियल का दे रहे हैं। पीढ़ियों पर इस एक्शन का असर होगा
रोते हुए रुबी रस्तोगी ने कहा इसी मार्केट में पिंक हार्ट के नाम से उनका शोरूम है। बोलीं कि कितने लोग इन दुकानों से जुड़े हुए थे। उनके घरों के चूल्हे बुझ गए, अब उनके घर में खर्चा कैसा चलेगा कहा कि आज भी ये काम हो रहे हैं। कौन सा अवैध निर्माण रुक गया है। ये सोचना चाहिए था कि इस उम्र में ये दुकानदार कहां जाएंगे, वैलिड है क्या, सरकार के सामने वैलिड कुछ नहीं है। लोगों की पीढ़ीयों पर इस स्टेप का असर पड़ रहा है। एक हाथ से कभी ताली नहीं बजती, यहां पैसा लेकर सारी चीजें हुईं तो अफसरों को सजा क्यो नहीं मिली है। हमने तो जीएसटी भी दिया है। मकान बेचकर दुकान खरीदी थी
कांप्लेक्स में क्रॉकरी की दुकान चलाने वाले व्यापारी ने बताया कि 1990 से हम यहां दुकान चला रहे हैं। अब इस उम्र में हम कहां जाकर दुकान खोलेंगे, कहां काम करेंगे। हमने पैसे देकर दुकान खरीदी, मैंने मकान बेचकर ये दुकान खरीदी थी, इस दुकान से ही मेरा खर्चा चलता था। 1991 में मैं यहां किराएदार था, 2009 में मैंने उस दुकान को खरीद लिया। तब शास्त्रीनगर में कुल 5-7 दुकानें थी, तभी हमसे कह देते कि दुकानें मत खोलो हमारी दुकानें बंद करा देते। लेकिन अब मैं कहां जाऊं। नेता आते हैं उनका स्वागत कर दो बस वोट मांगने के अलावा उन्होंने कुछ नहीं किया। हमने कोई चोरी नहीं की है न डकैती डाली है। अब मेरा साथ कौन देगा मैं बच्चों को भीख मांगकर कहां से पढ़ाऊं, घर बेचकर मैंने ये दुकान खरीदी थी अब किराए के घर में रहता हूं, वो दुकान भी चली गई। बच्चों की शादी कैसे करुगा, कैसे पढ़ाऊंगा
एक अन्य दुकानदार ने बताया कि 1999 में मैंने ये दुकान खरीदी, तब यहां कुछ नहीं था, आज पूरा बाजार रौनक पर है। कल को बच्चों की शादियां करनी हैं, कहां से शादी करेंगे। पैसा कहां से आएग। अब तो घर चलाना भी मुश्किल हो रहा है। अब पढ़िए पूरा मामला… आवास के लिए आवंटित जमीन पर बना है कांप्लेक्स सेंट्रल मार्केट में भूखंड संख्या 661/6 लगभग 288 वर्ग मीटर पर बना है, जिसमें 22 कब्जेदार हैं। यह भूखंड आवास विकास परिषद के दस्तावेज के अनुसार काजीपुर के वीर सिंह को आवास के लिए आवंटित हुआ था, लेकिन विनोद अरोड़ा नाम के व्यक्ति ने पावर ऑफ अटॉर्नी की सहायता से यहां व्यवसायिक निर्माण कर दिया। 19 सितंबर, 1990 को आवास एवं विकास परिषद ने पहला नोटिस जारी किया था। शुक्रवार को आवास विकास परिषद ने मुनादी कर व्यापारियों को दुकानें खाली करने का निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर 2024 को सेंट्रल मार्केट 661/6 पर निर्मित कांप्लेक्स को तीन माह में खाली करा कर आवास विकास परिषद को दो सप्ताह में ध्वस्त करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने आवासीय भूखंडों पर उक्त कांप्लेक्स की तरह अन्य निर्माणों को भी ध्वस्त करने के आदेश दिए हैं। तब से नौ माह बाद यह कार्रवाई की गई है। मामले में याचिकाकर्ता लोकेश खुराना ने मामले में अवमानना का वाद सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है। जिसमें सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने गृह सचिव, आवास आयुक्त, डीएम, एसएसपी, आवास विकास के अधिकारियों और उक्त कांप्लेक्स के 22 व्यापारियों को नोटिस जारी किया है। दो सप्ताह में जवाब देने के लिए कहा है। इसकी सुनवाई की तिथि 27 अक्टूबर को है। इसी को लेकर पुलिस प्रशासन और आवास विकास परिषद ने ध्वस्तीकरण की तिथि 25 अक्टूबर निर्धारित की है। ————— ये खबर भी पढ़िए दुकानों पर बुलडोजर चलता देख रोईं महिलाएं: हाथ जोड़कर अफसरों से मिन्नतें करती रहीं; मेरठ में 22 दुकानों का कॉम्प्लेक्स ढहाया मेरठ में 35 साल पुराने 3 मंजिला कॉम्प्लेक्स को ढहा दिया गया। इसमें 22 दुकानें थीं। बुलडोजर चलना शुरू होते ही कारोबारी रोने लगे। एक्शन रोकने के लिए महिलाएं भी हाथ जोड़कर अफसरों से मिन्नतें करती दिखीं। अलंकार साड़ी सूट्स शॉप के मालिक और उनकी पत्नी सुबह से कुर्सी पर बैठकर अपनी दुकान को निहारते रहे। दुकान गिरने पर पूरा परिवार फफक पड़ा। कहने लगे, दुकान से ही परिवार चलता था। अब कैसे गुजारा करेंगे?पूरी खबर पढ़ें
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