भारतीय सेना ने दुनिया के सबसे घातक अटैक हेलिकॉप्टर कहे जाने वाले AH-64E अपाचे अटैक हेलिकॉप्टरों को जोधपुर एयरबेस पर तैनात किया है, जो एक समय में 256 लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है और 16 लक्ष्यों को प्राथमिकता दे सकता है। ये हेलिकॉप्टर अब पाकिस्तान सीमा की निगरानी और भारत की रक्षात्मक और आक्रामक क्षमताओं को मजबूत बनाएंगे। हाल ही में जैसलमेर क्षेत्र में हुए सैन्य अभ्यास ‘त्रिशूल’ और ‘मरु ज्वाला’ में इन हेलिकॉप्टरों का उपयोग किया गया था। अभ्यास के बाद इन्हें पश्चिमी सीमा के पास एक महत्वपूर्ण एयरबेस पर तैनात किया गया है। यह पहली बार है जब भारतीय थल सेना के अपाचे हेलिकॉप्टरों ने किसी बड़े सैन्य अभ्यास में हिस्सा लिया। अभ्यास के दौरान इन हेलिकॉप्टरों ने तय लक्ष्यों पर सटीक हमला किया। जून 2025 में अमेरिका से मिले 3 अपाचे हेलिकॉप्टरों की पहली खेप की ट्रेनिंग पूरी हो चुकी है। ये हेलिकॉप्टर अब ऑपरेशनल ड्यूटी के लिए तैयार हैं। राजस्थान में स्क्वाड्रन होने की वजह से इनका रंग रेत (मिट्टी) जैसा रखा गया है, जिससे रेगिस्तानी इलाकों में छुपने में मदद मिलती है। त्रिशूल युद्धाभ्यास में ‘अग्निपरीक्षा’ पास नवंबर में जैसलमेर के रेगिस्तान में हुए सैन्य अभ्यास के दौरान अपाचे हेलिकॉप्टरों ने हिस्सा लिया। यह पहली बार था जब भारतीय थल सेना के अपाचे हेलिकॉप्टरों ने T-90 ‘भीष्म’ टैंकों के साथ संयुक्त रूप से अभ्यास किया। दुनिया का सबसे एडवांस अटैक हेलिकॉप्टर AH-64E अपाचे एक अटैक हेलिकॉप्टर है। यह हेलफायर मिसाइल, 70 मिमी रॉकेट और 30 मिमी चेन गन से लैस होता है। इसमें एएन/एपीजी-78 लॉन्गबो रडार सिस्टम लगा है, जो एक समय में 256 लक्ष्यों को ट्रैक कर सकता है और 16 लक्ष्यों को प्राथमिकता दे सकता है। हेलिकॉप्टर में नाइट विजन सिस्टम भी मौजूद है, जिससे रात के समय निगरानी और ऑपरेशन किए जा सकते हैं। जोधपुर का एयरबेस: क्यों है यह तैनाती खास? अपाचे हेलिकॉप्टरों की जोधपुर में तैनाती भारत की रक्षा रणनीति का एक बड़ा हिस्सा है। IAF के अपाचे: एयर डॉमिनेंस और स्ट्राइक रोल भारतीय वायुसेना के पास पहले से 22 अपाचे हेलिकॉप्टर हैं। इनकी तैनाती मुख्य रूप से पठानकोट और असम जैसे रणनीतिक एयरबेस पर की गई है। IAF के अपाचे का मुख्य काम है- ये हेलिकॉप्टर ज्यादा ऊंचाई, लंबी दूरी और बड़े ऑपरेशन एरिया को ध्यान में रखकर इस्तेमाल किए जाते हैं। आर्मी के अपाचे: जमीनी जंग के लिए खास थल सेना के लिए खरीदे गए 6 अपाचे हेलिकॉप्टर (जिनमें से 3 मिल चुके हैं)खास तौर पर रेगिस्तानी और मैदानी इलाकों के लिए कस्टमाइज किए गए हैं। आर्मी अपाचे का फोकस होता है- यानी ये हेलिकॉप्टर “आसमान से सेना का हथियार” बनकर काम करते हैं। 1. 30 मिमी की चेन गन: मौत का दूसरा नाम अपाचे के नीचे एक 30 मिमी की एम-230 चेन गन लगी होती है। इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह गन पायलट के हेलमेट (Helmet Mounted Display) से जुड़ी होती है। पायलट जिस तरफ अपना सिर घुमाता है, यह गन भी उसी दिशा में घूम जाती है। यह एक साथ 1,200 राउंड गोला-बारूद दागने की क्षमता रखती है। 2. मिसाइल और रॉकेट का घातक कॉम्बिनेशन 3. ‘लॉन्गबो’ रडार: धुंध और अंधेरे में भी साफ नजर इसके रोटर (पंखों) के ऊपर लगा गुंबदनुमा रडार 256 ठिकानों को एक साथ ट्रैक कर सकता है। चाहे धूल भरी आंधी हो, घना कोहरा हो या काली रात, यह रडार दुश्मन की हर हरकत को पहचान लेता है। महाराष्ट्र के नासिक में ली ‘कड़ी ट्रेनिंग’ जोधपुर में तैनाती से पहले इन हेलीकॉप्टरों और इनके पायलटों ने महाराष्ट्र के नासिक स्थित आर्मी एविएशन ट्रेनिंग स्कूल में कठिन प्रशिक्षण प्राप्त किया। यहां पायलटों को अपाचे के डिजिटल कॉकपिट और जटिल वेपन सिस्टम को चलाने का अभ्यास कराया गया। जून 2025 में हिंडन एयरबेस पर आने के बाद से ही सेना इन्हें युद्ध के लिए तैयार (Battle Ready) करने में जुटी थी। विशेषज्ञों की राय: “गेम चेंजर साबित होंगे ये हेलिकॉप्टर” रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि जोधपुर में अपाचे की तैनाती से पश्चिमी सीमा पर भारत की स्थिति पहले से कहीं अधिक मजबूत हो गई है। यह हेलिकॉप्टर न केवल हमला करता है, बल्कि यह एक उड़ता हुआ ‘कमांड सेंटर’ भी है, जो जमीन पर मौजूद सैनिकों को दुश्मन की सटीक लोकेशन भेज सकता है। अपाचे का भारतीय सेना में शामिल होना और जोधपुर जैसे फ्रंटलाइन बेस पर तैनात होना यह संदेश देता है कि अब हम किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हैं। इसकी मारक क्षमता बेजोड़ है। सेना को उम्मीद है कि पश्चिमी मोर्चे पर एक पूरी ‘अपाचे स्क्वॉड्रन’ तैयार हो जाएगी। डिलीवरी में देरी के बावजूद पूरा हुआ सौदा रक्षा मंत्रालय ने 2020 में बोइंग से थल सेना के लिए 6 हेलिकॉप्टर खरीदने का 600 मिलियन डॉलर (करीब 5,691 करोड़ रुपए) का करार किया था। मूल योजना के अनुसार इन हेलिकॉप्टरों को मई-जून 2024 तक पहुंचना था, लेकिन सप्लाई चेन की समस्याओं और तकनीकी कारणों से 15 महीने की देरी हुई। पहली तीन अपाचे हेलिकॉप्टर की खेप जुलाई 2025 में भारत पहुंची थी। आखिरी तीन हेलिकॉप्टर को नवंबर में भेजा जाना था, लेकिन तुर्की द्वारा ओवर फ्लाइट की अनुमति नहीं मिलने के कारण विमान को वापस अमेरिका लौटना पड़ा था।
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