रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच चेन्नई-व्लादिवोस्तोक ईस्टर्न कॉरिडोर को लेकर चर्चा हुई। यह कॉरिडोर सिर्फ 10,370 किमी लंबा होगा, जिससे भारतीय जहाज औसतन 24 दिन में रूस पहुंच सकेंगे। फिलहाल भारत से रूस के सेंट पीटर्सबर्ग तक सामान भेजने के लिए जहाजों को लगभग 16,060 किमी की लंबी यात्रा करनी पड़ती है, जिसमें करीब 40 दिन लग जाते हैं। यानी यह नया रूट लगभग 5,700 किमी छोटा है और भारत को सीधे 16 दिन की बचत होगी। पुतिन और पीएम मोदी के बीच 5 दिसंबर को हुई वार्ता में इस समुद्री मार्ग को जल्द शुरू करने पर सहमति बनी। माना जा रहा है कि कि ग्लोबल तनाव के बीच यह नया रास्ता एक सुरक्षित, तेज और भरोसेमंद ऑप्शन दे सकता है। गाजा युद्ध से स्वेज नहर रूट ग पर बढ़ता जोखिम और यूक्रेन युद्ध के चलते यूरोप के रास्ते रूस तक पहुंचने वाले पारंपरिक समुद्री मार्ग में लगातार मुश्किलें आ रही हैं। भारत के लिए गेमचेंजर साबित हो होगा नया कॉरिडोर इस कॉरिडोर के जरिए चेन्नई से मलक्का खाड़ी, दक्षिण चीन सागर और जापान सागर से व्लादिवोस्तोक तक जाने वाले वाले के 16 दिन बचेंगे। ये रूट सुरक्षित होने के साथ-साथ आने वाले दिनों में भारत-रूस व्यापार के लिए गेमचेंजर साबित हो सकता है। एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यह कॉरिडोर चरणबद्ध तरीके से शुरू हो जाएगा। इसके चालू होते ही तेल, गैस, कोयला, मशीनरी और धातु जैसे जरूरी व्यापार क्षेत्रों में तेजी आएगी और भारत की सप्लाई चेन काफी मजबूत होगी। यह मार्ग भारत-रूस आर्थिक साझेदारी को नई ऊंचाई देगा। भारत की एनर्जी व कच्चे माल की आसानी से सप्लाई होगी चेन्नई-व्लादिवोस्तोक ईस्टर्न कॉरिडोर चालू होते ही रूस से भारत को कच्चा तेल, नेचुरल गैस, कोयला, उर्वरक, धातु और अन्य इंडस्ट्रियल माल आयात करना आसान होगा। इससे भारत की एनर्जी व कच्चे माल की जरूरतें सुरक्षित होंगी। भारत रूस को मशीनरी, इंजीनियरिंग गुड्स, ऑटो-पार्ट्स, टेक्सटाइल्स, कृषि व समुद्री उत्पाद भेज सकता है। मरीन गुड्स और मशीनरी पर जोर दिया गया है।
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