मोबाइल गेम के चक्कर में पहाड़ी गाछी गांव के रहने वाले चंदन दास के 13 साल के बेटे रवि ने आत्महत्या कर ली। उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया है। दादा शंकर दास ने मुखाग्नि दी। इस घटना से न केवल परिवार के लोग सदमे में हैं, बल्कि पूरा गांव हैरान है। गांव के लोग यह सोच-सोचकर परेशान हैं कि 13 साल का मासूम मोबाइल का इतना आदि हो गया था। इसके चक्कर में वो शुक्रवार की सुबह फंदे से लटक गया। मृतक के दादा शंकर दास ने बताया कि मेरा बेटा चंदन अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ केरल के सेलम नामक जगह पर रहता है। वहीं मजदूरी कर परिवार का भरण पोषण करता है। 2 साल पहले जब वो जा रहा था तो मेरी और मेरी पत्नी की देखभाल के लिए अपने बेटे रवि और बेटी राधा को मेरे पास गांव में छोड़ दिया था। बेटा ने सोचा था कि दोनों हमारी देखभाल करेंगे, लेकिन करीब 1 साल पहले पोती ने घर में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली थी। इसके बाद मैं अपनी पत्नी और पोते के साथ रहता था। इस घटना के बाद दैनिक भास्कर की टीम पहाड़ी गांव पहुंची। घटना को लेकर मृतक के दादा, गांव के लोगों ने क्या कहा। पढ़ें पूरी रिपोर्ट… दो बार स्कूल में एडमिशन करवाया, लेकिन पढ़ना नहीं मृतक नाबालिग के दादा शंकर दास ने बताया कि बहन की मौत के बाद पोता अकेले रहता था। घर में अकेले रहने की वजह से मोबाइल पर गेम खेलता था। जब पांच साल का था, तब स्कूल में एडमिशन कराने गए तो पढ़ाई से इनकार कर दिया। थोड़ा और बड़ा हुआ, दोबारा हम लोगों ने एडमिशन कराना चाहा, लेकिन स्कूल से भागकर घर आ जाता था। ‘मोबाइल पर बिजी रहता था, मेरी कोई बात नहीं सुनता था’ बुजुर्ग ने बताया कि, पोता रवि मोबाइल पर गेम खेलने में इतना व्यस्त रहता था कि वो मेरी कोई बात नहीं सुनता था। सोचते थे अभी बचपना है, धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा। लेकिन मोबाइल का ऐसा लत पड़ चुका था कि दिन-रात हाथ में मोबाइल लेकर गेम ही खेलते रहता था। रवि के पिता ने मोबाइल खरीद दिया था और वो ही रिचार्ज भी करवाता रहता था। गुरुवार की रात उसने अपनी मां से मोबाइल ठीक कराने के लिए पैसा मांगा। लेकिन मां ने डांट-फटकार किया। इससे नाराज होकर वो रात में खाना भी नहीं खाया। ‘सोचा था कि बुढ़ापे का सहारा पोता ही बनेगा, लेकिन खुद कंधा पर लेकर श्मशान जाना पड़ा’ शंकर दास ने बताया कि सोचा था कि मेरा पोता रवि बुढ़ापे का सहारा बनेगा, लेकिन छोटी उम्र में ही उसे कंधा देकर श्मशान घाट पहुंचना पड़ा और अंतिम संस्कार करना पड़ा। रवि की मौत के बाद मेरी पत्नी सदमे में है। अब हम अपनी गाय बेच देंगे और खुद भी बेटा के साथ ही केरल चले जाएंगे। पड़ोसी बोले- मां ने गेम खेलने से मना किया था, डांट भी लगाई थी पड़ोस के रहने वाले वकील और सामाजिक कार्यकर्ता वीरेंद्र कुमार ने बताया कि, रवि को गेम का लत लगा हुआ था। हमेशा मोबाइल पर गेम खेलने रहता था। पिछले कुछ दिनों से उसका मोबाइल खराब हो गया था। मां से मोबाइल ठीक कराने के लिए बोला, लेकिन वो मना कर दिया। इसी गुस्से में आकर उसने आत्महत्या कर ली। 1 साल पहले रवि की बड़ी बहन ने घर में ही आत्महत्या कर ली थी। मनोचिकित्सक बोले- गेम खेलने से मस्तिष्क में डोपामाइन नाम का रसायन रिलीज होता है मनोचिकित्सक डॉ. विश्वामित्र ठाकुर ने बताया कि, आजकल यह स्थिति गंभीर और चिंताजनक विषय है। मोबाइल गेम की लत में बच्चे जान दे रहे हैं। गार्जियन को ध्यान देना सबसे ज्यादा जरूरी है। उन्होंने आगे बताया कि, लगातार गेम खेलने से मस्तिष्क में डोपामाइन नाम का रसायन रिलीज होता है, जो उन्हें अस्थायी आनंद देता है। दिमाग इस प्लेजर का आदी हो जाता है। जब वे गेम नहीं खेल पाते या उन्हें रोका जाता है, तो बेचैन, चिड़चिड़े हो जाते हैं और उन्हें तनाव महसूस होता है। गेम खेलने से मना करने पर बच्चों में तीव्र नाराजगी, गुस्सा और आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। ऑनलाइन गेम में हारने या अच्छा प्रदर्शन न कर पाने पर बच्चे निराश हो जाते हैं और डिप्रेशन में जा सकते हैं। कई बच्चे गेमिंग को अपनी वास्तविक समस्याओं, तनाव या अकेलेपन से भागने का रास्ता मानते हैं। जब वे गेमिंग की दुनिया से बाहर आते हैं, तो उन्हें अपनी समस्याएं और भी बड़ी लगने लगती है। जिससे मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है। गेम में अत्यधिक व्यस्त रहने के कारण बच्चे परिवार और दोस्तों से भावनात्मक दूर हो जाते हैं। सामाजिक मेलजोल की कमी तनाव को बढ़ाती है। कुछ हिंसक ऑनलाइन गेम में लगातार रहने से बच्चों में हिंसक प्रवृत्ति बढ़ जाती है। वे बात-बात पर गुस्सा हो जाते हैं, चीजों को आक्रामकता के साथ संभालने लगते हैं, जिसमें खुद को नुकसान पहुंचाना भी शामिल हो सकता है। हालांकि आत्महत्या अक्सर किसी एक कारण से नहीं होती, बल्कि कई तनावों और जोखिम का मिला-जुला परिणाम होती है, जिसमें गेमिंग की लत एक ट्रिगर का काम करती है।
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