बिहार चुनाव परिणाम के बाद ही नितिन नबीन को राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनाने की तैयारी शुरू हो गई थी। 202 सीट के प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में आई BJP अब यहीं से बड़ा चेहरा ढूंढने लगी थी। चुनाव प्रचार के दौरान नितिन नबीन के कमिटमेंट ने पार्टी के टॉप लीडरशिप का अपनी तरफ ध्यान खींचा। टॉप लीडरशिप ने जब नाम आगे बढ़ाया तो संघ भी मना नहीं कर पाया। प्रपोजल में इसमें नितिन नबीन की कार्यकुशलता, पब्लिक कनेक्ट, संगठन की अच्छी समझ का उदाहरण दिया गया था। साथ ही बिहार की जीत, छत्तीसगढ़ का प्रबंधन का भी जिक्र था। नितिन नबीन को अध्यक्ष की कुर्सी तक पहुंचाने में RSS के दो टॉप लीडर और क्षेत्र के प्रभारी का सहयोग माना जा रहा है। एक्सक्लूसिव रिपोर्ट में पढ़िए संघ और मोदी-शाह ने नितिन नबीन को क्यों चुना…। बिहार में RSS की पकड़ शहरी इलाकों में है। पटना, गया, मुजफ्फरपुर, भागलपुर जैसे शहरों में संघ की शाखाएं लंबे समय से लग रही हैं। नितिन नबीन की राजनीतिक पहचान भी इसी शहरी क्षेत्रों से बनी है। पटना जैसे शहर में जहां मिडिल क्लास, व्यापारी और प्रोफेशनल वोट निर्णायक हैं, संघ की वैचारिक मौजूदगी भाजपा के लिए आधार बनती है। नितिन नबीन की राजनीति में आक्रामकता कम, संयम, संवाद और संगठन ज्यादा दिखता है। यही व्यवहार नितिन को लगातार संघ के करीब लाता चला गया। सूत्रों के मुताबिक, नितिन नबीन का नाम बिहार चुनाव के बाद ही लगभग तय हो गया था। उत्तर प्रदेश के प्रदेश अध्यक्ष का फैसला होना था, जिसके कारण लेट थी। 2 पॉइंट में RSS नितिन नबीन के नाम क्यों राजी हुआ 1. ‘डाउन टू अर्थ’ छवि: संघ के विस्तार में सहायक संघ से जुड़े नेताओं के बारे में एक बात कही जाती है—वे लो प्रोफाइल रहते हैं, लेकिन काम लगातार करते हैं। नितिन नबीन की छवि भी कुछ ऐसी ही बनी। वे न तो सोशल मीडिया पर अतिसक्रिय रहते हैं और न ही बड़े राजनीतिक विवादों में बयानबाजी करते हैं। उनकी पहचान एक ऐसे नेता की है, जो कार्यकर्ताओं से सीधे संवाद करता है, सार्वजनिक मंचों पर संतुलित भाषा रखता है और सत्ता में रहते हुए भी खुद को अलग-थलग नहीं करता। यह शैली भाजपा के भीतर संघ-समर्थित नेताओं में आम मानी जाती है। इसका फायदा यह होता है कि नेता विरोध से ज्यादा स्वीकार्यता हासिल करता है। 2. पब्लिक कनेक्ट: सेवा और पहुंच की राजनीति संघ की राजनीति का एक बड़ा आधार सेवा कार्य रहा है। आपदा, सामाजिक आयोजन, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम—इन सबमें स्वयंसेवकों की भूमिका रहती है। नितिन नबीन की राजनीतिक यात्रा में भी यह तत्व दिखता है। पटना के शहरी इलाकों में वे नागरिक समस्याओं पर हस्तक्षेप करते दिखे, प्रशासन से संवाद का रास्ता अपनाते रहे और कार्यकर्ताओं के जरिए फीडबैक लेते रहे। यही वजह है कि उन्हें ‘पब्लिक कनेक्ट वाला नेता’ कहा जाता है, न कि सिर्फ चुनावी चेहरा। 5 पॉइंट में मोदी-शाह ने क्यों चुना 1ः मोदी शाह के आज्ञाकारी, हैंडल करना आसान नितिन नबीन पार्टी के निर्देशों को बिना इफ-बट के हूबहू लागू करने वाले नेता हैं। बिहार सरकार में भी वे तालमेल बनाकर चलते हैं ताकि कोई नाराज न हो सके। उनके संबंध सभी पार्टियों में हैं। नितिन ज्यादातर बिहार में ही रहे हैं। इस कारण उनकी पहचान देशभर में नहीं हैं। पॉलिटिकल एनालिस्ट अभिरंजन कुमार कहते हैं, ‘नितिन नबीन का कद वैसा नहीं है कि वह मोदी-शाह के बिना मर्जी का फैसला ले सकें। वह जो भी फैसला लेंगे उनके हिसाब से ही लेंगे। यूं कहिए वह आज्ञाकारी नेता की भूमिका में रहेंगे।’ पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रियदर्शी रंजन कहते हैं, ‘नबीन की एक खूबी यह भी है कि वे महत्वाकांक्षी नहीं हैं। उनको जितना मिलता है उतने से संतोष करने वाले नेता हैं। ऐसे में टॉप लीडरशिप के लिए वे चुनौती नहीं बन सकते।’ 2: लो प्रोफाइल नेता, कभी भी मिल सकते हैं 5 बार के विधायक और 3 बार के मंत्री होने के बाद भी नबीन काफी लो-प्रोफाइल नेता हैं। उनसे मिलना कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक के लिए आसान रहता है। कोई भी व्यक्ति रात हो या दिन, कभी भी मिल सकता है। पॉलिटिकल एनालिस्ट प्रियदर्शी रंजन कहते हैं, ‘नितिन नबीन काफी मिलनसार नेता हैं। बिना परिचय के लोगों से भी आसानी से मिल लेते हैं। कार्यकर्ताओं के लिए उनका दरवाजा 24 घंटे खुला रहता है। उनके पिता भी काफी मिलनसार नेता थे।’ नबीन का पूरा परिवार RSS का करीबी रहा है। वे अभी 45 साल के हैं। इनको आगे कर भाजपा ने युवा पीढ़ी को आगे किया है। 3ः OBC को सत्ता, फॉरवर्ड को पार्टी इस बार भी भाजपा ने पार्टी और सत्ता में OBC-फॉरवर्ड कॉम्बिनेशन को रिपीट किया है। जेपी नड्डा ब्राह्मण समाज से आते हैं। उनकी जगह पार्टी ने कायस्थ समाज से आने वाले नबीन को रिप्लेस कर फॉरवर्ड-OBC कॉम्बिनेशन को मजबूत किया है। मोदी OBC समाज से आते हैं, ऐसे में पार्टी की कमान फॉरवर्ड समाज को दी गई है। प्रियदर्शी रंजन कहते हैं, ‘भाजपा ने सधी हुई रणनीति के तहत समीकरण साधा है। उसे पता है कि अपने कोर वोटर को कैसे सहेजना है। भाजपा जब शून्य थी तब उसकी ताकत फॉरवर्ड होते थे। अब जब वह अपने शीर्ष पर है तो उन्हें छोड़ना नहीं चाह रही है।’ 4ः नबीन के सहारे बंगाल और पूर्वोत्तर दोनों को साधा नबीन बिहार के पहले नेता हैं, जिन्हें भाजपा ने बड़ी जिम्मेदारी दी है। यह बड़ी रणनीति का हिस्सा हो सकता है। पार्टी का फोकस पूर्व यानी बंगाल और पूर्वोत्तर को साधने पर है। 5ः छत्तीसगढ़ चुनाव जितवाया नितिन नबीन को छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ का प्रभारी बनाया गया था। कांग्रेस के स्ट्रॉन्ग होल्ड वाले राज्य में सरकार बनाने में नितिन नबीन की अहम भूमिका थी। इन्होंने कई बड़े सांगठनिक बदलाव किए थे, जिसका फायदा बीजेपी को मिला था। नितिन नबीन ने एक ओर बूथ स्तर पर मजबूत कार्यकर्ता नेटवर्क बनाया। दूसरी ओर मोहल्ला मीटिंग्स, छोटे कार्यक्रमों और व्यक्तिगत संपर्क के जरिए पार्टी की इमेज मजबूत की। यही काम उनको बिहार-बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में करना है।
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