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बिहार चुनाव में जीत के बाद बदल रही BJP:6 साल बाद बाहरी नहीं खांटी भाजपाई को कमान, जाति की जगह युवा को तवज्जो

48 घंटे के भीतर पटना के अलग-अलग इलाकों में लगे बिहार बीजेपी के पोस्टर पर तस्वीर का ऑर्डर पूरी तरह बदल गया। पार्टी के सभी पोस्टर से बाहर रहने वाले नितिन नबीन की तस्वीर अचानक सबसे बड़ी हो गई। अब तक बिहार में पार्टी के पोस्टर बॉय रहे डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा की तस्वीर की साइज अब उनके सामने छोटी पड़ गई है। दीवारों पर लिखी इबारत से स्पष्ट है कि अब बीजेपी बदल रही है। सरकार से लेकर संगठन तक में प्रयोग कर रही है। भास्कर की स्पेशल रिपोर्ट में पढ़िए इन प्रयोगों के क्या मायने है? पार्टी पर इसका कितना असर पड़ सकता है, कितना नफा और नुकसान हो सकता है। 10 साल बाद पार्टी खांटी भाजपाई पर उतरी बात, जून 2024 की है। सम्राट चौधरी बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष थे। इनकी अगुआई में पार्टी लोकसभा चुनाव लड़ी, लेकिन परफॉर्मेंस 2019 की तुलना में खराब रहा। इसके बाद अचानक बड़े लीडर्स खुलकर सम्राट चौधरी के खिलाफ मुखर हो गए। अश्विनी चौबे जैसे दिग्गज नेता ने तो खुलकर उन्हें आयातित माल बता दिया था। नतीजा, मार्च 2023 में अध्यक्ष बने सम्राट चौधरी को जुलाई 2024 में संगठन से सरकार में शिफ्ट कर डिप्टी सीएम बना दिया गया। इसके बाद जुलाई 2024 में सम्राट चौधरी की जगह दिलीप जायसवाल को पार्टी की कमान दी गई। इनके नेतृत्व में पार्टी ने विधानसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन जरूर किया, लेकिन कई धड़ों में बंट गई। टॉप लीडरशिप समझ गई थी बड़ी सर्जरी की है जरूरत पार्टी में उपाध्यक्ष स्तर के एक नेता ने बताया कि विधानसभा चुनाव में टॉप लीडरशिप को इस बात को अच्छे से समझ आ गया था कि संगठन के लेवल पर पार्टी में बड़ी सर्जरी करने की जरूरत है। दूसरे दलों से आने वाले नेता को प्रदेश अध्यक्ष बना देने से पार्टी कई धड़े में बंट जा रही है। नित्यानंद राय के बाद से 3 प्रदेश अध्यक्ष बने। इनमें संजय जायसवाल और सम्राट चौधरी राजद होते हुए बीजेपी में आए थे। इसके बाद दिलीप जायसवाल को कमान मिली। ये कांग्रेस के रास्ते बीजेपी में आए थे। यानि की पिछले 6 साल से खांटी भाजपाई की जगह आयातित नेताओं को भाजपा की कमान मिल रही थी। अब 10 साल बाद पार्टी ने खांटी भाजपाई के हाथ में कमान दी है। अगले 4 साल तक बिहार में किसी तरह का कोई चुनाव नहीं है। ऐसे में पार्टी का पूरा फोकस अब बिहार में संगठन में जान डालने की है। संजय सरावगी को कमान देकर पार्टी ने इसी को साधने की कोशिश की है। सरकार से लेकर संगठन तक, गुट नहीं, पार्टी ही अहम बीजेपी में लंबे समय तक प्रवक्ता के पद पर रहे एक नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि सम्राट चौधरी के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद से ही पार्टी कई धड़ों में बंट गई थी। सभी बड़े नेता अपना-अपना धड़ा बनाने लगे थे। इससे पहले ऐसा स्व. सुशील मोदी के समय हुआ था। जब पार्टी पर उनकी मजबूत पकड़ थी तब अश्विनी चौबे, प्रेम कुमार, नंदकिशोर यादव अपना-अपना धड़ा बना लिया था। इसका पार्टी को बहुत नुकसान हो रहा था। नीचे से लेकर ऊपर तक गलत मैसेज जा रहा था। दूसरे दल से आने वाले नेताओं को तवज्जो मिलने लगी थी। ऐसे में खांटी भाजपाइयों का मनोबल टूटने लगा था। ये बात ऊपर तक गई। अब कार्यकर्ताओं को ये संदेश देने की कोशिश की गई है कि किसी भी पार्टी से आयातित नेता को आगे बढ़ाने के बजाय अपने प्रयोगशाला में तैयार नेता को ही बड़ा पद मिलेगा। सरकार में भी युवा और भाजपाई को तवज्जो बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष चुनने से पहले कैबिनेट के चयन में बीजेपी ने चौंकाया। पार्टी ने नीतीश मिश्रा, जनक राम, हरि सहनी, नीरज बबलू जैसे दूसरे दलों से आने वाले नेताओं की कैबिनेट से छुट्‌टी कर दी। इसके अलावा उम्र के आधार पर भी कुछ नेताओं को हटाया गया। इनकी जगह पार्टी ने संजय टाइगर, लखेंद्र पासवान, रमा प्रसाद, श्रेयसी सिंह जैसे उन युवा नेताओं को तवज्जो दी जो बीजेपी के लैब में राजनीति को सींच रहे हैं। अगर नीतीश कैबिनेट में मंत्रियों की औसत आयु देखें तो यह 57 साल है। इनमें सबसे ज्यादा 11 मंत्रियों की आयु 51 से 60 साल है। 11 में से 7 मंत्री बीजेपी कोटे के हैं। सबसे युवा 34 साल की श्रेयसी सिंह बीजेपी की हैं। वहीं 41 से 50 साल उम्र के 2 और 61 से 70 साल उम्र के 5 भाजपा विधायक मंत्री बने हैं। पारंपरिक पॉलिटिक्स की जगह अलग लकीर खींचने की कोशिश पटना यूनिवर्सिटी की डीन शेफाली रॉय ने बताती हैं, ‘BJP ने बिहार से बड़ा प्रयोग किया है। अभी तक जो एक ढर्रे पर राजनीति चलते आ रही थी, उसे तोड़ने का प्रयास किया गया है। पार्टी ने परंपरागत राजनीति की जगह युवाओं के हाथ में पावर देने का प्रयोग किया है।’ उन्होंने कहा, ‘संगठन के लेवल पर पार्टी ने बिहार से यह प्रयोग किया है। पूरा प्रयोग पार्टी के रिवाइवल की है। बिहार को युवाओं का प्रदेश कहा जाता है। अगर बिहार में आबादी के हिसाब से देखें तो 35 साल से कम उम्र के लोगों की संख्या 1 करोड़ से ज्यादा है।’ जाति से बड़ा चेहरा बनाने की कोशिश शेफाली रॉय कहती हैं कि बीजेपी ने कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बिहार के नेता को बनाया। नितिन नबीन कायस्थ जाति से आते हैं, लेकिन अभी तक कायस्थ नेताओं का लीडरशिप में रोल बहुत लिमिटेड रहा है। BJP ने स्ट्रैटिजिकली जाति से बड़ा चेहरा बनाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा, ‘भाजपा ने मंत्रिमंडल में रणनीति के तहत हर जाति से नए चेहरे को आगे बढ़ाया है। जैसे अगर दलित चेहरे की बात करें तो जनक राम की जगह लखेंद्र पासवान को मंत्री बनाया गया। नीरज बब्लू की जगह संजय टाइगर को आगे किया गया। हरि सहनी की जगह रमा निषाद जैसी पहली बार जीती विधायक को मंत्री बनाया गया है।’ इलाके के हिसाब से क्षत्रप तैयार कर रही भाजपा एक्सपर्ट की मानें तो BJP इलाके के हिसाब से क्षत्रप तैयार करने की कोशिश कर रही है। अगर बीजेपी की मौजूदा लीडरशिप को देखें तो राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नवीन पटना यानि मगध के इलाके से आते हैं। इसी इलाके से आने वाले प्रेम कुमार को विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया है। बीजेपी के नए प्रदेश अध्यक्ष संजय सरावगी दरभंगा यानि मिथिला से आते हैं। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय सिन्हा अंग क्षेत्र से आते हैं। वहीं, सरकार में मंत्री दिलीप जायसवाल सीमांचल की राजनीति करते हैं। लॉन्ग टर्म पॉलिटिक्स में BJP को मिल सकता है लाभ सीनियर जर्नलिस्ट अमरनाथ तिवारी बताते हैं, ’‌‌BJP ने जाति की जगह समावेशी पॉलिटिक्स का प्रयोग किया है। जाति की जगह पार्टी के प्रति वफादारी और निष्ठा को तवज्जो दी है। गैर यादव OBC और सवर्ण को साधने के साथ युवाओं को भी आगे बढ़ा रही है। इससे मैसेज दूर तक जाएगा। पार्टी को लॉन्ग टर्म पॉलिटिक्स में लाभ मिलेगा।’ वहीं, शेफाली रॉय कहती हैं ये एक रणनीतिक और नपा-तुला रिस्क है। तुरंत इसका लाभ नहीं दिख सकता, लेकिन अगर ये इसी तरह का बैलेंस आगे भी बनाए रखने में सफल रहते हैं तो BJP को आने वाले दिनों में बड़ा लाभ मिल सकता है।’


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