19 दिसंबर 1927 का वह दिन भारतीय स्वाधीनता संग्राम के इतिहास में बलिदान और वीरता की एक ऐसी दास्तान है, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की चूलें हिला दी थीं. यह वही तारीख है जब काकोरी कांड के तीन वीर सपूतों-पंडित राम प्रसाद ‘बिस्मिल’, अशफ़ाक़ उल्लाह ख़ां और ठाकुर रोशन सिंह ने अलग-अलग जेलों में ‘वंदे मातरम’ और ‘सरफ़रोशी की तमन्ना’ के उद्घोष के साथ फांसी के फंदे को चूम लिया था.
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