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बांग्लादेश में हिंसा भड़की, भारत-बांग्लादेश के बीच बढ़ा अविश्वास, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर गंभीर सवाल

बांग्लादेश में हुई हिंसक घटनाओं ने ढाका और दिल्ली के रिश्तों में पहले से मौजूद तनाव को और गहरा कर दिया है। उत्तरी बांग्लादेश के मयमनसिंह में एक हिंदू युवक की हत्या के बाद दोनों देशों के बीच अविश्वास और आरोप-प्रत्यारोप खुलकर सामने आने लगे हैं। मौजूदा हालात को देखते हुए यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या भारत-बांग्लादेश के बीच दशकों पुराना भरोसेमंद रिश्ता गंभीर संकट के दौर में पहुंच रहा है।
बता दें कि 27 वर्षीय दीपु चंद्र दास, जो बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय से थे, पर कथित रूप से ईशनिंदा का आरोप लगाकर भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी थी। यह घटना उस दिन हुई, जब राजधानी ढाका में छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या को लेकर बड़े पैमाने पर विरोध-प्रदर्शन भड़कने वाले थे। हादी के समर्थकों का आरोप है कि इस हत्या का मुख्य संदिग्ध, जो अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग से जुड़ा बताया जा रहा है, भारत भाग गया है। हालांकि बांग्लादेशी पुलिस ने इस दावे की पुष्टि नहीं की।
गौरतलब है कि इन घटनाओं के बाद बांग्लादेश में भारत विरोधी भावनाएं और तेज हो गई। वहीं भारत में हिंदू संगठनों ने दीपु दास की हत्या के खिलाफ प्रदर्शन किए हैं। दोनों देशों ने एक-दूसरे पर अपने-अपने राजनयिक मिशनों की सुरक्षा में लापरवाही का आरोप लगाया है। इसके चलते दिल्ली समेत कई शहरों में वीज़ा सेवाएं अस्थायी रूप से निलंबित की गई हैं और दोनों देशों ने अपने उच्चायुक्तों को तलब कर चिंता जताई है।
मौजूद जानकारी के अनुसार, बांग्लादेश में भारत के प्रभाव को लेकर असंतोष कोई नई बात नहीं है। शेख हसीना के 15 साल लंबे शासन के दौरान भी एक वर्ग में यह भावना बनी रही कि भारत ढाका की राजनीति में जरूरत से ज्यादा दखल देता है। हसीना के सत्ता से हटने और भारत में शरण लेने के बाद यह नाराजगी और गहरी हो गई है, खासकर तब जब भारत ने उन्हें वापस भेजने की मांग पर अब तक सहमति नहीं जताई है।
दीपु दास की हत्या के वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद हालात और बिगड़ गए। अंतरिम सरकार के प्रमुख और नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस ने कहा है कि “नए बांग्लादेश में ऐसी हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है” और दोषियों को बख्शा नहीं जाएगा। पुलिस के अनुसार इस मामले में 12 लोगों को गिरफ्तार किया गया है।
विश्लेषकों का कहना है कि शेख हसीना के हटने के बाद धार्मिक कट्टरपंथी तत्व ज्यादा मुखर हो गए हैं। कई इलाकों में सूफी दरगाहों को नुकसान पहुंचाने, हिंदुओं पर हमले, महिलाओं के खेल आयोजनों पर रोक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बाधा जैसी घटनाएं सामने आई हैं। मानवाधिकार संगठनों ने भी बीते एक साल में भीड़ हिंसा बढ़ने पर चिंता जताई है।
राजनीतिक विश्लेषक आसिफ बिन अली का कहना है कि कट्टरपंथी समूह अब खुद को मुख्यधारा मानने लगे हैं और विविधता या असहमति को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। उनका आरोप है कि किसी व्यक्ति या संस्था को “भारत समर्थक” बताकर उसके खिलाफ हिंसा को जायज ठहराया जा रहा है।
इस बीच, बांग्लादेश में आगामी 12 फरवरी को होने वाले चुनावों को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है। अवामी लीग के चुनाव से बाहर रहने के कारण बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के जीतने की संभावना जताई जा रही है, लेकिन जमात-ए-इस्लामी जैसी इस्लामी पार्टियां चुनौती बन सकती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक एक निर्वाचित सरकार नहीं आती, अंतरिम प्रशासन के लिए कानून-व्यवस्था संभालना और विदेश नीति में संतुलन बनाए रखना मुश्किल रहेगा।
भारत में नीति-निर्माता भी हालात पर नजर बनाए हुए हैं। एक संसदीय समिति ने हालिया घटनाक्रम को 1971 के बाद से भारत के लिए सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती बताया है। पूर्व बांग्लादेशी राजनयिक हुमायूं कबीर का कहना है कि दोनों देशों को जमीनी सच्चाई स्वीकार कर संवाद के जरिए भरोसा बहाल करना चाहिए।
जानकारों की राय है कि बांग्लादेश की स्थिरता भारत की सुरक्षा, खासकर उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिए बेहद अहम है। ऐसे में दोनों देशों को सड़क पर उभर रहे गुस्से को कूटनीतिक रिश्तों पर हावी नहीं होने देना चाहिए, क्योंकि इसका सबसे बड़ा नुकसान आम नागरिकों, अल्पसंख्यकों और लोकतांत्रिक मूल्यों को उठाना पड़ सकता है।


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