बक्सर के चुन्नी गांव में पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के अवसर पर एक किसान सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में बक्सर के सांसद सुधाकर सिंह ने किसानों के सम्मान और अधिकारों की लड़ाई जारी रखने पर जोर दिया। सम्मेलन में किसानों की समस्याओं, कृषि संकट और केंद्र सरकार की नीतियों पर विस्तृत चर्चा हुई। कार्यक्रम में सांसद सुधाकर सिंह के अलावा भाकपा माले के पूर्व विधायक अजीत कुशवाहा, विधान पार्षद लाल दास राय, शेषनाथ सिंह, संतोष भारती, शिवबचन सिंह, पूजा कुमारी, बृजबिहारी सिंह, हरिराम सिंह, प्रखंड अध्यक्ष आफताब आलम, बच्चालाल निषाद और बीरेंद्र सिंह सहित कई जनप्रतिनिधि और किसान नेता उपस्थित रहे। इस कार्यक्रम का आयोजन मधुमंगल सिंह और भूवनेश्वर सिंह के नेतृत्व में किया गया था। किसानों के मान-सम्मान के लिए संघर्ष किया था शुरू सांसद सुधाकर सिंह ने अपने संबोधन में कहा कि चौधरी चरण सिंह ने किसानों के मान-सम्मान और अधिकारों के लिए जो संघर्ष शुरू किया था, वह आज भी उतना ही प्रासंगिक है। उन्होंने आरोप लगाया कि कॉर्पोरेट ताकतें लंबे समय से किसानों को नुकसान पहुंचा रही हैं। सांसद के अनुसार, यह लड़ाई किसी एक समय की नहीं, बल्कि वर्चस्व की एक सदियों पुरानी लड़ाई है, जो आगे भी जारी रहेगी। उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था की चुनौतियों को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा। सांसद ने कहा कि निजीकरण के माध्यम से बहुसंख्यक आबादी के भरण-पोषण की गलत सोच अपनाई गई है। उन्होंने 2020 के कोरोना संकट का जिक्र करते हुए बताया कि जब पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा गई थी, तब कृषि क्षेत्र ही करोड़ों लोगों को भोजन और सम्मान देने का एकमात्र माध्यम बना था। रोजगार के लिए गए थे शहरों में सुधाकर सिंह ने आगे कहा कि लगभग आठ करोड़ लोग जो रोजगार के लिए शहरों और फैक्ट्रियों में गए थे, उन्हें मजबूरी में वापस खेती-किसानी की ओर लौटना पड़ा। उन्होंने बिहार के किसानों के संघर्ष पर भी बात की और कहा कि राज्य में समाजवादी सरकारों के दौरान किसानों को कुछ राहत मिली थी, लेकिन मौजूदा सरकार में उनकी दुर्दशा स्पष्ट है। किसान आज भी खाद, बीज, सिंचाई और फसल के उचित दाम जैसी समस्याओं से जूझ रहे हैं। वहीं भाकपा माले के पूर्व विधायक अजीत कुशवाहा ने अपने संबोधन में कहा कि चौधरी चरण सिंह का सपना तभी पूरा होगा, जब किसान संगठित होकर अपने हक के लिए संघर्ष करेंगे। उन्होंने कहा कि खेती को मुनाफे का सौदा बनाने की बजाय किसान विरोधी नीतियां थोप दी गई हैं। सम्मेलन के अंत में किसानों ने एकजुट होकर अपने अधिकारों की लड़ाई को तेज करने का संकल्प लिया।
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