प्रतापगढ़ के लालगंज कोतवाली प्रभारी आलोक कुमार को केंद्रीय दक्षता पदक से सम्मानित किया जाएगा। उन्हें यह सम्मान पट्टी थाने में की गई एक विवेचना के लिए दिया जा रहा है, जिसमें उन्होंने बच्चे की हत्या के दोषियों को सजा दिलाने के लिए बेंजीडीन टेस्ट का प्रयोग किया था। केंद्रीय गृहमंत्रालय ने उन्हें इस पदक के लिए नामित किया है। देशभर में इस श्रेणी में उत्तर प्रदेश की मात्र छह विवेचनाएं चुनी गई हैं, जिनमें आलोक कुमार की विवेचना भी शामिल है।उनकी उत्कृष्ट जांच क्षमता और वैज्ञानिक तरीकों के प्रयोग को दर्शाता है। यह मामला पट्टी कोतवाली क्षेत्र के जलालपुर किठौली गांव का है। 1 जुलाई 2024 की रात 11 वर्षीय उमेश की गला दबाकर हत्या कर दी गई थी। हत्या के बाद बच्चे का शव घर से कुछ ही दूरी पर स्थित कुएं में फेंक दिया गया था। बच्चे की मां सरस्वती देवी ने हत्या की आशंका जताते हुए रिपोर्ट दर्ज कराई थी। पुलिस ने शव बरामद कर संदिग्धता के आधार पर गांव के रोशनलाल को गिरफ्तार किया। पूछताछ में रोशनलाल ने कबूल किया कि उसका सरस्वती से प्रेम प्रसंग चल रहा था। बच्चे को इस संबंध की जानकारी हो गई थी, जिसके कारण दोनों ने मिलकर उसकी हत्या कर शव कुएं में फेंक दिया था। घटना में कोई प्रत्यक्ष गवाह न होने के बावजूद, पुलिस ने फॉरेंसिक के लोकार्ड प्रिंसिपल लॉ की मदद ली। इसके तहत बेंजीडीन टेस्ट के लिए घटनास्थल पर मौजूद बच्चे के खून और रोशनलाल के खून के सैंपल जुटाए गए और उनका डीएनए टेस्ट कराया गया। बेंजीडीन टेस्ट की रिपोर्ट को आधार मानते हुए अदालत ने इस मामले में रिकॉर्ड 15 दिनों में ही फैसला सुना दिया था। यह प्रमाणित हो गया कि बच्चे ने रोशनलाल पर हमला किया था जिससे उसका खून निकला था और बाद में सरस्वती और रोशनलाल ने मिलकर बच्चे को पीटकर और गला दबाकर मार दिया था। तत्कालीन जिला जज अब्दुल शाहिद ने बेटे की हत्या में मां और उसके प्रेमी को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। तत्कालीन एसपी डॉ. अनिल कुमार, सीओ पट्टी मनोज रघुवंशी, पैरोकार हेड कांस्टेबल और शासकीय अधिवक्ता विक्रम सिंह की पैरवी भी महत्वपूर्ण रही।
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