भारतीय कला जगत के लिए यह एक शोक का दिन था। विश्वप्रसिद्ध मूर्तिकार राम सुतार के निधन की खबर ने देश के कलाकारों को स्तब्ध कर दिया। लेकिन राजगीर में आयोजित महोत्सव के दौरान एक ऐसी घटना घटी जिसने सिद्ध कर दिया कि सच्ची कला कभी मरती नहीं, वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरित होती रहती है। अंतर्राष्ट्रीय सैंड और लीफ आर्टिस्ट मधुरेंद्र कुमार ने नालंदा के राजगीर में चल रहे तीन दिवसीय महोत्सव के दौरान अपनी विशिष्ट कला शैली के माध्यम से दिवंगत शिल्पकार को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। जंगली पेड़ों के हरे पत्तों पर तराशी गई यह कलाकृति केवल एक चित्र नहीं, बल्कि एक कलाकार की दूसरे कलाकार के प्रति सच्ची श्रद्धा का प्रतीक बन गई। बोले- तीन घंटे की मेहनत से उकेरी आकृति कला की यह अनूठी साधना करीब तीन घंटे तक चली। मधुरेंद्र कुमार ने तेजधार नुकीले चाकू से अत्यंत सावधानी और कुशलता के साथ पत्तों को बारीकी से काटते हुए राम सुतार का जीवंत चित्र उकेरा। हर काट, हर रेखा में उनकी भावनाओं की गहराई झलक रही थी। कलाकृति पर लिखे गए शब्द “अलविदा शिल्पकार राम सुतार” ने पूरे दृश्य को और भी मार्मिक बना दिया। बोले- कलाकार होने के नाते सुतार जी के निधन से दुखी हूं इस अवसर पर मधुरेंद्र कुमार ने कहा कि हम भी एक कलाकार और शिल्पकार होने के नाते राम सुतार जी के निधन से बेहद दुखी हैं। दुनिया के सबसे बड़े स्टैचू ऑफ यूनिटी के शिल्पकार का जाना न सिर्फ भारत, बल्कि पूरे विश्व कला जगत के लिए अपूर्णीय क्षति है। राम सुतार की कला भारत के कोने-कोने में जीवित है। गुजरात में सरदार वल्लभभाई पटेल की 600 फीट ऊंची ‘स्टैचू ऑफ यूनिटी’ उनकी प्रतिभा का अद्भुत नमूना है। इसके अलावा बिहार की राजधानी पटना के गांधी मैदान में स्थापित दो बच्चों के साथ मुस्कुराते हुए महात्मा गांधी की 72 फीट ऊंची कांस्य प्रतिमा भी उनकी कुशलता का जीता-जागता प्रमाण है। मधुरेंद्र कुमार ने इन स्मारकों का उल्लेख करते हुए कहा कि ये रचनाएं भारतीय कला और इतिहास में सदैव अमर रहेंगी। ये केवल पत्थर और धातु की मूर्तियां नहीं हैं, बल्कि एक राष्ट्र की आत्मा और गौरव के प्रतीक हैं।
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