पूर्णिया के रंगभूमि मैदान में चार दिवसीय गायत्री महायज्ञ के चौथे और आखिरी दिन गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति शुरू हो गई है। धार्मिक पूजन उत्सव में जिले भर से हजारों लोग शामिल हुए हैं। शांतिकुंज हरिद्वार से आए शशि कांत सिंह ने अपने सहयोगी संगीत मंडली के साथ मंत्रोच्चार के बीच महायज्ञ कराया। इसमें न सिर्फ पुरुष बल्कि बड़ी संख्या में महिलाएं और बालिकाएं शामिल हैं। सभी ने पारंपरिक वस्त्र धारण कर रखा है और भक्ति में लीन हैं। इसे देखने लोगों का जन सैलाब जनसैलाब रंगभूमि मैदान में उमड़ पड़ा है। 108 कुण्डीय राष्ट्रीय शौर्य समृद्धि गायत्री महायज्ञ की शुरुआत 9 दिसम्बर को भव्य कलश यात्रा के साथ हुई थी। कलश यात्रा के बाद आज शाम 5 बजे से 7 बजे तक युग संगीत का कार्यक्रम हुआ। 10 दिसम्बर को सुबह 6 बजे से 7:30 बजे प्रज्ञायोग, ध्यान और प्राणायाम कार्यक्रम, 9 बजे से 12 बजे तक महायज्ञ, शाम 5 बजे से 8 बजे तक संगीत व प्रवचन का कार्यक्रम आयोजित हुआ था। 11 दिसम्बर को सुबह 6 बजे से 7:30 बजे ध्यान- साधना और 9 बजे से 12 बजे तक संस्कार कार्यक्रम हुआ। 12 दिसम्बर यानी आज 9 बजे से गायत्री महायज्ञ की पूर्णाहुति और विदाई कार्यक्रम चल रहा है। जानकारी देते हुए आयोजन मंडल के सदस्य डॉ. सुमन कुमार सिंह और पवन कुमार पोद्दार ने बताया कि अखिल विश्व गायत्री परिवार गायत्री शक्तिपीठ कला भवन और शांति कुंज हरिद्वार की ओर से इस चार दिवसीय 108 कुण्डीय राष्ट्रीय शौर्य समृद्धि गायत्री महायज्ञ का आयोजन किया गया। गायत्री महायज्ञ का आयोजन वंदनीय माता भगवती देवी के जन्मशति वर्ष, पूज्य गुरुदेव पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के साधना के शताब्दी वर्ष और अखंड ज्योति के प्राकट्य शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में आयोजित हुआ। चार दिवसीय गायत्री महायज्ञ में शांतिकुंज हरिद्वार से शशि कांत सिंह अपने सहयोगी संगीत मंडली के सदस्यों के साथ शामिल हुए। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य और वंदनीय माता के आशीर्वाद से एक बार फिर से राष्ट्रीय शौर्य को जगाने के लिए आध्यात्मिक प्रयोग करने का अवसर मिला। भारतीय संस्कृति देवों और ऋषियों की संस्कृति रही है। राष्ट्रीय हित के लिए युगों में मंत्र और यज्ञ के माध्यम से उपचार किये जाते रहे हैं। आज अपना देश आंतरिक और बाहरी शत्रुओं से घिरा है। ऐसी विषम परिस्थिति में देव बल को संतुष्ट करने एवं राष्ट्र की आत्मा को जागृत करने का अथक प्रयास किया जा रहा है। संत-महात्मा व ऋषि मुनियों का मत है कि अंततः भारत वर्ष अपने गौरव को प्राप्त करके ही रहेगा।
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