कंधार विमान अपहरण कांड के दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सुरक्षा में गंभीर चूक हुई थी। जिस समय आतंकी काठमांडू से अपहरण किया गया एअर इंडिया के विमान को अमृतसर की ओर ले जा रहे थे, उसी दौरान प्रधानमंत्री वाजपेयी का विशेष विमान भी उसी हवाई मार्ग से गुजर रहा था। यह खुलासा वाजपेयी के तत्कालीन मीडिया सलाहकार रहे अशोक टंडन ने अपनी पुस्तक ‘अटल संस्मरण’ में किया है। टंडन ने बुधवार को वाजपेयी की बर्थ एनिवर्सरी पर ‘अटल स्मरण’ किताब लॉन्च की है। टंडन 1998 से 2004 तक वाजपेयी के मीडिया सलाहकार थे। वहीं, वाजपेयी 1999 से 2004 तक, 5 साल का पूरा कार्यकाल पूरा करने वाले देश के पहले गैर-कांग्रेसी PM थे। किताब के मुताबिक पूरी घटना पढ़ें… किताब के मुताबिक, पटना से दिल्ली जाने वाला एयर कॉरिडोर लखनऊ होकर गुजरता है। वहीं काठमांडू से दिल्ली आने वाली उड़ानें भी इसी पटना–लखनऊ–दिल्ली हवाई मार्ग से संचालित होती हैं। काठमांडू से दिल्ली की उड़ान में आमतौर पर करीब दो घंटे का समय लगता है। उसी शाम वाजपेयी का विमान पटना से उड़कर दिल्ली पहुंचा था, जिसे लगभग एक घंटा 50 मिनट लगे। समय और रास्ता लगभग एक जैसा होने के कारण दोनों विमानों का एक ही एयर कॉरिडोर में होना बेहद संवेदनशील और जोखिम भरी स्थिति मानी गई। वाजपेयी को दिल्ली उतरने पर ही विमान अपहरण की जानकारी मिली। टंडन के अनुसार, प्रधानमंत्री और विमान में उनके साथ बैठे नागरिक उड्डयन मंत्री शरद यादव को तब तक अपहरण की सूचना नहीं थी। प्रधानमंत्री वाजपेयी रेसकोर्स रोड स्थित आवास पहुंचे तो टंडन ने उन्हें विमान अपहरण की जानकारी दी। इस पर अटलजी ने कहा कि उन्हें सूचना मिल चुकी है और ब्रजेश मिश्र तथा प्रधान सचिव जल्द पहुंच रहे हैं। कलाम की जगह भाजपा वाजपेयी को राष्ट्रपति बनाना चाहती थी किताब के मुताबिक, भारत के 11वें राष्ट्रपति के लिए भाजपा ने साल 2002 में डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को राष्ट्रपति पद ऑफर किया था। भाजपा ने वाजपेयी से कहा था, ‘पार्टी चाहती है कि आपको राष्ट्रपति भवन चले जाना चाहिए। आप प्रधानमंत्री पद लाल कृष्ण आडवाणी को सौंप दीजिए।’ वाजपेयी ने इस प्रस्ताव को साफ ठुकरा दिया। टंडन के अनुसार, वाजपेयी ने कहा था- मैं इस तरह के किसी कदम के पक्ष में नहीं हूं। मैं इस फैसले का समर्थन नहीं करूंगा। NDA ने 2002 में 11वें राष्ट्रपति चुनाव में कलाम को अपना उम्मीदवार बनाया था। कलाम के सामने कांग्रेस समर्थित उम्मीदवार लक्ष्मी सहगल थीं। हालांकि कांग्रेस समेत प्रमुख विपक्षी दलों के सांसदों और विधायकों ने कलाम के समर्थन में वोट किया। कलाम ने 25 जुलाई 2002 को राष्ट्रपति पद की शपथ ली। किताब में दावा- सोनिया-मनमोहन के साथ मीटिंग में कलाम के नाम की घोषणा हुई टंडन की किताब में बताया गया है कि वाजपेयी चाहते थे कि देश का 11वां राष्ट्रपति पक्ष-विपक्ष की सर्वसम्मति से बने। इसके लिए उन्होंने मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सीनियर नेताओं को बातचीत के लिए आमंत्रित किया था। इस बैठक में सोनिया गांधी, प्रणब मुखर्जी और डॉ. मनमोहन सिंह शामिल हुए। इसी बैठक में वाजपेयी ने पहली बार औपचारिक रूप से बताया कि NDA ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को अपना राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाने का फैसला लिया है। टंडन के अनुसार, इस घोषणा के बाद बैठक में कुछ देर के लिए सब मौन हो गए। सोनिया गांधी ने चुप्पी तोड़ते हुए वाजपेयी से कहा, ‘हम लोग कलाम के नाम के सिलेक्शन को लेकर हैरान हैं। हालांकि इस पर विचार करने के अलावा हमारे पास कोई ऑप्शन नहीं है। हम आपके प्रस्ताव पर चर्चा करेंगे और फिर फैसला लेंगे।’ ‘वाजपेयी-आडवाणी में नीतिगत मतभेद, फिर भी रिश्ते खराब नहीं हुए’ अशोक टंडन ने अपनी किताब में अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी के संबंधों का भी जिक्र किया है। टंडन ने लिखा- कुछ नीतिगत मतभेदों के बावजूद दोनों नेताओं के रिश्ते कभी सार्वजनिक रूप से खराब नहीं हुए। टंडन के अनुसार, आडवाणी हमेशा वाजपेयी को अपना नेता और प्रेरणा स्रोत बताते थे, जबकि वाजपेयी आडवाणी को अपना ‘अटल साथी’ बताते थे। किताब के अनुसार, वाजपेयी और आडवाणी की साझेदारी भारतीय राजनीति में सहयोग और संतुलन का प्रतीक रही। दोनों ने न केवल भाजपा का निर्माण किया, बल्कि पार्टी और सरकार, दोनों को नई दिशा दी। संसद हमले के समय सोनिया ने अटल से फोन पर खैरियत पूछी थी टंडन ने अपनी किताब में 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हुए आतंकी हमले का भी जिक्र किया है। उस समय लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष रहीं कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और वाजपेयी के बीच फोन पर बातचीत हुई थी। हमले के वक्त वाजपेयी अपने आवास पर थे और सहयोगियों के साथ टीवी पर सुरक्षाबलों की कार्रवाई देख रहे थे। टंडन ने किताब में लिखा- हमले के दौरान वाजपेयी को सोनिया गांधी का फोन आया। उन्होंने वाजपेयी से कहा कि मैं आपकी सुरक्षा को लेकर चिंतित हूं। इसके जवाब में वाजपेयी ने कहा- मैं सुरक्षित हूं। मुझे चिंता थी कि कहीं आप (सोनिया गांधी) संसद भवन में तो नहीं हैं। अपना ध्यान रखिएगा।
—————————- सोनिया बोलीं- सरकार नेहरू को इतिहास से मिटाना चाहती है, उन्हें गलत तरीके से पेश किया जा रहा कांग्रेस पार्लियामेंट्री पार्टी (CPP) की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने दिल्ली में एक कार्यक्रम के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के खिलाफ बयानबाजी को लेकर भाजपा सरकार की आलोचना की। सोनिया ने कहा- इसमें कोई शक नहीं है कि सरकार उन्हें (नेहरू को) सिर्फ इतिहास से मिटाना नहीं चाहती, बल्कि उनकी सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक आधारों भी को कमजोर करना चाहती है, जिन पर देश खड़ा हुआ। पूरी खबर पढ़ें…
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