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पाकिस्तानी ने उत्तराखंड की जमीन पर किया दावा:VIDEO जारी कर बोला- दादा की जमीन; 3 साल पहले जम्मू के व्यक्ति ने फर्जी तरीके से खरीदी

देहरादून जिले के जौनसार-बावर क्षेत्र में हरिपुर कालसी की जमीन को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। मामला तब सुर्खियों में आया जब पाकिस्तान/पीओके से दो वीडियो वायरल हुए, जिनमें एक व्यक्ति ने खुद को जमीन का असली वारिस बताते हुए दावा किया कि कालसी क्षेत्र की संपत्ति उसके दादा की थी। वीडियो में उसने कहा कि यह जमीन इमामबाड़ा मस्जिद को दान की गई थी और अब कुछ लोग इस पर कब्जा करने की कोशिश कर रहे हैं। विवाद इसलिए और गहरा गया क्योंकि जिस जमीन को लेकर दावा किया जा रहा है, वह 2022 में जम्मू-कश्मीर के रहने वाले गुलाम हैदर नाम के शख्स ने खरीदी थी। गुलाम हैदर जम्मू पुलिस में भी कार्यरत रहा और आतंकियों को मदद पहुंचाने के आरोप में उसे निलंबित भी किया गया था। इस पूरे मामले को लेकर स्वाभिमान मोर्चा के अध्यक्ष बॉबी पंवार ने आरोप लगाया है कि हैदर ने जनजाति क्षेत्र में फर्जी दस्तावेज तैयार कराकर जमीन खरीदी है। मामला सोशल मीडिया पर उछला तो मुख्यमंत्री कार्यालय ने इसे गंभीरता से लेते हुए देहरादून DM सविन बंसल को जांच के निर्देश दिए। जिसके बाद अब सरकार इस पूरी विवादित जमीन को अपने कब्जे में लेने की तैयारी कर रही है। पहले पढ़िए पाकिस्तान से जारी वीडियो में क्या दावे किए जा रहे सोशल मीडिया पर वायरल पहले वीडियो में एक व्यक्ति ने अपना नाम अब्दुल्ला और दादा का नाम मोटा अली बताया। उसने कहा कि कालसी क्षेत्र में उसके दादा की जमीन थी, जिसे इमामबाड़ा मस्जिद को दान किया गया था। अब, उसके मुताबिक, दो पक्ष जमीन पर कब्जा जमाने में लगे हैं। वह कहता है कि उसकी एक पक्ष से बात हुई है लेकिन दूसरा पक्ष बातचीत नहीं कर रहा। दूसरे वीडियो में वही व्यक्ति एक मौलवी के साथ नजर आता है, जहां एक अन्य शख्स देहरादून के कालसी-अंबाड़ी की जमीन को अब्दुल्ला की पैतृक संपत्ति बताते हुए स्थानीय प्रधानों के नाम लेकर जमीन उसे देने की मांग कर रहा है। यह पूरा वीडियो वहां की स्थानीय भाषा में रिकॉर्ड किया गया है। जनजातीय क्षेत्र में हैदर ने कैसे खरीदी 10 बीघा जमीन? विवाद की जड़ यह है कि हरिपुर कालसी की यह जमीन 2022 में गुलाम हैदर नामक व्यक्ति ने खरीदी। आरोप है कि गुलाम हैदर ने यहां रहने वाले अपने रिश्तेदारों की मदद से परिवार रजिस्टर में नाम दर्ज कराया और स्थानीय निवास प्रमाण पत्र बनवा लिया। इसके आधार पर उसने 10 बीघा जमीन खरीद ली, जबकि जौनसार-बावर जनजाति क्षेत्र में बाहरी व्यक्ति को जमीन खरीदने के लिए SDM या DM की अनुमति अनिवार्य होती है। सवाल यह उठ रहा है कि बिना अनुमति के इतनी बड़ी जमीन की रजिस्ट्री कैसे हो गई? कौन अधिकारी इसमें शामिल था? और क्या दस्तावेजों की सत्यता की कभी जांच हुई? बॉबी पंवार ने इसे “सिस्टम की बड़ी चूक” बताया है। शिकायतें, कोर्ट केस और जांच की मांग हरिपुर कालसी के स्थानीय युवक संजय खान ने इस पूरे प्रकरण पर कई शिकायती पत्र प्रशासन को दिए थे। इतना ही नहीं, उन्होंने नैनीताल हाईकोर्ट में भी याचिका दायर कर रखी है। उनका आरोप है कि जमीन की खरीद फरोख्त फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हुई है और प्रशासन ने इसे रोकने के बजाय अनदेखी की। उत्तराखंड स्वाभिमान मोर्चा ने भी इस विवाद को गंभीर बताते हुए कहा कि जब पाकिस्तान से इस जमीन पर दावे वाले वीडियो आ रहे हैं, तो खुफिया एजेंसियों को भी मामले की जांच करनी चाहिए। मोर्चा अध्यक्ष बॉबी पंवार ने कहा- “बाहरी व्यक्ति को जनजाति क्षेत्र में किसने और कैसे जमीन देने की अनुमति दी? यह पूरी तरह जांच का विषय है।” पछुवा देहरादून में डेमोग्राफिक चेंज पर भी सवाल मामला केवल हरिपुर कालसी तक सीमित नहीं है। पछुवा दून में जनसंख्या असंतुलन की बड़ी समस्या लंबे समय से उठाई जा रही है। सहारनपुर व हिमाचल बॉर्डर से लगे इलाकों में पिछले वर्षों में बाहरी मुस्लिम परिवारों की बड़ी संख्या में बसावट हुई है। कई स्थानों पर ग्राम सभा और सरकारी जमीनों पर कब्जे के आरोप हैं। स्थानीय लोगों का आरोप है कि औद्योगिक क्षेत्र बनने के बाद स्थानीय रोजगार कोटा की आड़ में यूपी के कॉन्ट्रैक्टरों ने अपने लोगों के फर्जी प्रमाण पत्र बनवाकर उन्हें स्थानीय निवासी दिखाया। इसी के बाद वहां की जनसंख्या का स्वरूप तेजी से बदला। कई गांव जो पहले हिंदू बाहुल्य थे, आज 90% मुस्लिम आबादी वाले हो चुके हैं। अवैध तरीके से हो रहा मस्जिदों का निर्माण स्थानीय संगठनों का दावा है कि पछुवा दून में बिना अनुमति के सैकड़ों मस्जिदें और करीब 40 से अधिक मजारें सरकारी व PWD की जमीनों पर बना दी गईं। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद कि बिना DM की अनुमति कोई धार्मिक स्थल नहीं बन सकता, कई वर्षों से यह अवैध निर्माण चलता रहा। स्थानीय राजनीतिक संरक्षण को इसकी वजह बताया जा रहा है। आरोप है कि वोट बैंक की राजनीति के कारण न तो प्रशासन ने कार्रवाई की और न ही जमीन खाली कराई गई। कई मामलों में शिकायतें फाइलों में दबाकर रख दी गईं।


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