भास्कर न्यूज| पूर्णिया पुलिस लाइन में महिलाओं के लिए 20 सीटेड शौचालय के निर्माण कार्य में ठेकेदार द्वारा तीन नम्बर ईंट का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिसको लेकर पुलिस लाइन में रहने वाले कुछ सिपाहियों ने इसकी मौखिक सूचना वरीय पुलिस अधिकारी को दी है। सिपाहियों का कहना है कि तीन नम्बर ईंट के इस्तेमाल से फर्श कमजोर होगा और जल्द टूटने लगेगा। पुलिस अधीक्षक स्वीटी सहरावत ने कहा कि उन्हें भी तीन नम्बर ईंट के प्रयोग की सूचना मिली है। शौचालय निर्माण करवा रहे ठेकदार को गुणवत्तापूर्ण निर्माण का निर्देश दिया गया था। निर्देश के बाद भी निम्न गुणवत्ता का ईंट लगाने की सूचना मिल रही है। इसकी जांच करवाकर ठेकेदार पर कार्रवाई की जाएगी। ठेकेदार संतोष कुमार से जब शौचालय के फर्श में तीन नम्बर ईंट लगाने की बात पूछी गई तो उसने कहा कि यह मीठा ईंट है। जिसे हमलोग दहिया ईंट भी कहते हैं। उन्होंने कहा कि बिहार पुलिस भवन निर्माण विभाग से बने 150 महिला सिपाही बैरक, 50 की क्षमता वाले 5 अदद रसोई सह डायनिंग हॉल एवं 20 सीटेड शौचालय भवन का निर्माण कार्य वर्ष 2018 का ही है। शौचालय निर्माण के लिए जमीन ही समय पर उपलब्ध नहीं करवाया गया। जिस कारण निर्माण कार्य में विलम्ब हुआ। उन्होंने बताया कि एक माह के अंदर शौचालय निर्माण कार्य पूर्ण हो जाएगा। इसमें 20 शौचालय एवं 20 स्नानागार है। वहीं 20 चेजिंग रूम भी है। पुलिस लाइन में रहने वाले कुछ सिपाही ने बताया कि शौचालय निर्माण में तीन नम्बर ईंट लगाने के बाद बहुत जल्द फर्श व जहां-जहां तीन नम्बर ईंट लगाया जा रहा है । वरीय अधिकारी को इसकी जांच कर एक नम्बर ईंट लगवाना चाहिए। ज्ञात हो कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा 150 महिला सिपाही बैरक, 50 की क्षमता वाले 5 अदद रसोई सह डायनिंग हॉल का उद््घाटन 30 जुलाई 2020 को ही किया था। भास्कर न्यूज| पूर्णिया सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने लोकसभा के माध्यम से बिहार और विशेषकर पूर्णिया-सीमांचल क्षेत्र से जुड़े जनहित के मुद्दों को राष्ट्रीय पटल पर उठाया है। उन्होंने जल शक्ति मंत्रालय (जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षण विभाग) तथा जनजातीय कार्य मंत्रालय को पत्र लिखकर गंगा नदी के कटाव और आदिवासी शिक्षा से जुड़े कई महत्वपूर्ण सवाल पूछे हैं। उन्होंने बताया कि इन सवालों के जवाब में केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया के साथ राज्य सरकार की उदासीनता सामने आई है। सांसद ने जल शक्ति मंत्री से पूछा-क्या सरकार को जानकारी है कि बिहार में कुरसेला से मनिहारी तक गंगा नदी के किनारे बसे कई गांव हालिया बाढ़ और कटाव के कारण बह गए हैं। क्या सरकार ने गंगा किनारे कटाव स्थलों की पहचान की है और आगे कटाव रोकने के लिए कोई ठोस कार्ययोजना बनाई गई। जवाब में सरकार ने बताया कि XIवीं और XIIवीं पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान बाढ़ नियंत्रण, कटाव-रोधी और जल निकासी विकास के लिए बाढ़ प्रबंधन कार्यक्रम (FMP) लागू किया गया था,जिसे बाद में बाढ़ प्रबंधन एवं सीमा क्षेत्र कार्यक्रम(FMBAP) के अंतर्गत जारी रखा गया। इस योजना के तहत कुल 48 बाढ़ प्रबंधन परियोजनाएं शामिल की गई हैं,जिनकी अनुमानित लागत 1866.50 करोड़ है। इसमें से 924.40 करोड़ की केंद्रीय सहायता बिहार सरकार को जारी की जा चुकी है। अहम बात यह कि कुरसेला से मनिहारी तक गंगा कटाव नियंत्रण के लिए बिहार सरकार की ओर से कोई प्रस्ताव केंद्र को प्राप्त नहीं हुआ है। सांसद ने राज्य सरकार की उदासीनता पर कहा कि जब गांव के गांव गंगा में समा रहे हैं, तब सरकार का प्रस्ताव न भेजना बेहद दुखद है। भागलपुर जिले में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय स्थापित करने के प्रस्ताव पर भी सांसद ने चर्चा की सांसद पप्पू यादव ने जनजातीय कार्य मंत्रालय से बिहार, खासकर पूर्णिया और आसपास के जिलों में आदिवासी शिक्षा को लेकर सवाल पूछे। पूछा- क्या भागलपुर जिले में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) स्थापित करने का कोई प्रस्ताव है और यदि है तो उसकी वर्तमान स्थिति क्या है। यह भी सवाल उठाया कि यदि ऐसा कोई विद्यालय प्रस्तावित नहीं है तो अनुसूचित जनजाति बहुल क्षेत्रों के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण आवासीय शिक्षा देने के लिए सरकार की वैकल्पिक योजना क्या है। उन्होंने मुद्दा उठाया कि पूर्णिया, बांका,जमुई, मुंगेर और कैमूर जैसे जिलों में अनुसूचित जनजाति की बड़ी आबादी होने के बावजूद अब तक वहां एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय स्थापित नहीं किए गए हैं। पप्पू यादव ने कहा कि पूर्णिया और सीमांचल आज दोहरी मार झेल रहे हैं। एक ओर गंगा और कोसी जैसी नदियों का कटाव और बाढ़ है तो दूसरी ओर शिक्षा और विकास के अवसरों की भारी कमी भी है। उन्होंने साफ कहा कि केंद्र सरकार योजनाओं का दावा करती है, लेकिन राज्य सरकार की निष्क्रियता के कारण उनका लाभ जमीन तक नहीं पहुंच पा रहा है। सांसद ने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि अगर गंगा कटाव और आदिवासी शिक्षा जैसे मुद्दों पर शीघ्र ठोस कदम नहीं उठाए गए तो वे इसे केवल संसद तक सीमित नहीं रखेंगे, बल्कि सड़क से सदन तक संघर्ष करेंगे।
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