नौगजा पीर सहारनपुर… जहां एक साथ गूंजती हैं अजान, मंदिर की घंटियां और गुरुद्वारे की अरदास
देहरादून रोड पर स्थित नौगजा पीर बाबा की दरगाह सहारनपुर की सबसे प्रसिद्ध और पवित्र स्थलों में से एक है. यह वह जगह है जहां धर्म की सीमाएं मिट जाती हैं और इंसानियत सर्वोपरि हो जाती है. दरगाह की खासियत यह है कि यहां बाबा की मजार के साथ एक मस्जिद, दो मंदिर और एक गुरुद्वारा भी बना हुआ है. एक ही परिसर में तीनों धर्मों के प्रतीक मौजूद हैं. यही वजह है कि नौगजा पीर आज सद्भाव, आस्था और एकता का जीवंत प्रतीक बन चुका है.
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, नौगजा पीर बाबा एक महान सूफी संत थे जिनकी कद-काठी असाधारण रूप से लंबी थी. करीब नौ गज. इसी कारण उन्हें नौगजा पीर कहा जाता है. कहा जाता है कि बाबा ने इस इलाके में मानवता, प्रेम और समानता का संदेश फैलाया. पुरानी कहानियों में उल्लेख है कि बाबा अपनी दुआओं और करामातों से पीड़ितों की मदद करते थे. वे कहा करते थे. इंसान की पहचान उसके कर्म से होती है, मजहब से नहीं. इसी विचारधारा ने उन्हें हर धर्म के लोगों के बीच आदर और सम्मान का स्थान दिलाया.
नौगजा पीर की दरगाह में हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु पहुंचते हैं. कोई नमाज़ पढ़ने, कोई आरती करने, तो कोई अरदास के लिए. यहां एक साथ अज़ान की आवाज़, मंदिर की घंटियां और गुरुद्वारे की शबद-कीर्तन सुनाई देती हैं. यह दृश्य हर आगंतुक को एक अद्भुत सुकून देता है, मानो सब धर्म एक ही दुआ में बंध गए हों. गुरुवार के दिन दरगाह पर चादर चढ़ाने और मन्नतें मांगने वालों की भीड़ उमड़ती है. इसके अलावा यहां कुछ स्थानीय गायक बाबा के लिए सूफियाना अंदाज में हर गुरुवार को कव्वाली गाते भी देखे जा सकते है.
चढ़ाई जाती हैं घड़ियां
यहां आने वाले श्रद्धालु कहते हैं कि बाबा से मांगी गई मुरादें जरूर पूरी होती हैं. कोई नई नौकरी की दुआ लेकर आता है तो कोई अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य की कामना के लिए. दरगाह परिसर में मौजूद मस्जिद, मंदिर और गुरुद्वारा इस स्थान को विशिष्ट बनाते हैं. जहां मस्जिद में नमाज़ अदा की जाती है, वहीं मंदिर में आरती और गुरुद्वारे में अरदास गूंजती है. अलग-अलग धर्मों की रस्में एक ही जगह संपन्न होती हैं. यह नज़ारा अपने आप में अनोखा है और भारत की सांस्कृतिक एकता को दर्शाता है.
प्रसाद के रूप में मिठाई भी यहां चढ़ाई जाती है इसके अलावा अगर कोई बीमार है तो उसके परिवार वाले बीमारी को दूर करने के लिए दरगाह के पास झाड़ू और साबुत नमक रखकर आते है ताकि बीमारी से निजात मिले.
नौ गजा पीर दरगाह की दीवारों पर लगी सैकड़ों घड़ियां यहां आने वाले लोगों को आकर्षित करती हैं. स्थानीय लोगों का मानना है कि बाबा की मजार पर घड़ी चढ़ाने से जीवन का रुक गया समय दोबारा सही दिशा में चल पड़ता है. कहा जाता है, यह परंपरा दशकों पुरानी है.
एक साथ सुनाई देती है तीन धर्मों के लोगों की आवाजें
किसी की जिंदगी में जब कठिनाई या ठहराव आता था, तो वह बाबा से समय के सही चलने की दुआ करता था और श्रद्धा से घड़ी चढ़ा देता था. आज यह एक विश्वास की प्रतीक परंपरा बन चुकी है. नौगजा पीर की यह दरगाह सहारनपुर शहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर, देहरादून रोड पर स्थित है. पास में नौगजा चौक क्षेत्र आता है. यह इलाका सहारनपुर नगर निगम क्षेत्र में है, और दरगाह की धार्मिक देखरेख स्थानीय दरगाह कमेटी करती है. यहां शहर से बस, ऑटो और निजी वाहनों द्वारा आसानी से पहुंचा जा सकता है.
दरगाह पर आने वाले हिंदू मुस्लिम समाज के लोग कहते है कि नौगजा पीर बाबा की दरगाह सहारनपुर का दिल है. यहां हर मजहब का इंसान शांति की तलाश में आता है. जब मंदिर की घंटी और अज़ान एक साथ सुनाई देती है, तो लगता है जैसे यही असली भारत है. नौगजा पीर सहारनपुर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहजीब का प्रतीक है. यह वह जगह है जो सिखाती है कि भले रास्ते अलग हों, मंज़िल एक ही है. ईश्वर तक पहुंचना. नौगजा पीर बाबा की दरगाह आज भी यही संदेश देती है कि इंसानियत सबसे बड़ा धर्म है.
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