आदित्यानंद आर्य | सीतामढ़ी जिले में मछली उत्पादन को लेकर सुनहरा दौर शुरू हो गया है। सीतामढ़ी तेजी से नीली क्रांति की तरफ अग्रसर हो रहा है। एक समय ऐसा था, जब यहां की मछली की मांग को पूरा करने के लिए जिले को आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों पर निर्भर रहना पड़ता था, लेकिन पिछले सात वर्षों में यहां के जल क्षेत्रों के वैज्ञानिक और व्यवस्थित उपयोग ने तस्वीर बदल दी है। आज जिला न केवल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनता जा रहा है, बल्कि निर्यात की दिशा में भी कदम बढ़ा रहा है। जिले में उत्पादन के आंकड़े लगातार बेहतर हो रहे हैं। वर्ष 2024 में लगभग 21.56 टीएमटी मछली उत्पादन दर्ज किया गया था, जबकि वर्ष 2024-25 के लिए 22.60 टीएमटी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इनमें से अबतक 13 टीएमटी उत्पादन हासिल किया जा चुका है। यह तेजी से बढ़ते उत्पादन का संकेत है कि आने वाले वर्षों में जिले की संभावनाएं और अधिक विस्तृत होंगी। सीतामढ़ी के जल की मिठास और शुद्धता ने यहां उत्पादित होने वाली मछलियों के स्वाद को विशेष बना दिया है। स्थानीय बाजार के साथ-साथ नेपाल और उत्तर प्रदेश के उपभोक्ताओं में भी यहां की मछलियों की मांग बढ़ रही है। जिले के मत्स्यपालक अब केवल स्थानीय खपत के लिए नहीं बल्कि बाहरी बाजारों को ध्यान में रखकर भी उत्पादन कर रहे हैं। { 2015-16 : 12.24 टीएमटी { 2016-17 : 12.25 टीएमटी { 2017-18 : 12.41 टीएमटी { 2018-19 : 13.11 टीएमटी { 2019-20 : 14.25 टीएमटी { 2020-21 : 15.02 टीएमटी { 2021-22 : 16.41 टीएमटी { 2022-23 : 19.46 टीएमटी { 2023-24 : 19.56 टीएमटी { 2024-25 : 21.56 टीएमटी (अनुमानित) ^जिले में मत्स्य पालन की अपार संभावनाएं हैं। यह क्षेत्र युवाओं को बड़े पैमाने पर रोजगार उपलब्ध करा सकता है। प्रशिक्षण, भ्रमण और सरकारी योजनाओं के माध्यम से मत्स्यपालकों की आय बढ़ाने की दिशा में लगातार कार्य चल रहा है। मत्स्य विक्रेताओं के लिए स्थायी बाजार उपलब्ध कराने की दिशा में भी विभाग द्वारा कार्रवाई की जा रही है। – सुभाष चंद्र यादव, जिला मत्स्य अधिकारी, सीतामढ़ी
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