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निशांत कुमार राजनीति में आएंगे, 3 बड़े कारण:बेटे के आने पर क्या नीतीश कुमार मुख्यमंत्री पद छोड़ेंगे?, JDU का पूरा प्लान; 5 सवाल-जवाब में जानिए

20 नवंबर को नीतीश कुमार ने 10वीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। नतीजे तो 14 नवंबर को ही साफ हो गए थे, पर तस्वीर जितनी साफ दिखी, कहानी उतनी साफ नहीं है। CM की कुर्सी नीतीश के पास है, लेकिन पावर-सेंटर अब खुलकर बीजेपी के हाथों में दिखने लगा है और यही बात राजनीति की धड़कन बढ़ा रही है। अंदरखाने इसी गहमागहमी के बीच एक और चर्चा अचानक जोर पकड़ चुकी है- नीतीश कुमार के बेटे निशांत कुमार राजनीति में उतरने वाले हैं। चुनाव के रिजल्ट के बाद पहले घर यानी नीतीश कुमार के बड़े भाई ने निशांत के राजनीति में आने की वकालत की। उसके 20 दिन बाद JDU के दिग्गज संजय झा ने साफ-साफ कहा कि निशांत को अब आगे आना चाहिए। अब सवाल और दिलचस्प हो गया है क्या यह सिर्फ राय है या JDU के भविष्य का ब्लूप्रिंट। अगर निशांत सामने आते हैं, तो क्या नीतीश कुमार अपनी राजनीतिक पारी को समेटने की तैयारी कर रहे हैं? जानेंगे, आज के एक्सप्लेनर बूझे की नाहीं में…। सवाल-1ः निशांत कुमार के राजनीति में आने पर कब किसने क्या कहा? जवाबः 5 दिसंबर को पटना एयरपोर्ट पर JDU के राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा और निशांत कुमार एक साथ दिखे। संजय झा ने कहा, ‘JDU के कार्यकर्ता, समर्थक और शुभचिंतक सभी चाहते हैं कि अब निशांत कुमार पार्टी में सक्रिय भूमिका निभाएं। पार्टी में हर कोई उन्हें काम करते देखना चाहता है। अब अंतिम निर्णय निशांत कुमार को ही लेना है।’ खास बात है कि इस बार संजय झा ने यह बयान मीडिया के बिना सवाल पूछे दिया है। मतलब अपने से बयान दिया है और वह भी निशांत कुमार के सामने। जबकि, इससे पहले 3 सितंबर को एक इंटरव्यू में संजय झा ने कहा था, ‘फिलहाल निशांत कुमार राजनीति में नहीं आएंगे। ऐसी कोई बात नहीं है। नीतीश कुमार फिलहाल सक्रिय हैं।’ सवाल-2ः क्या निशांत राजनीति में आएंगे और उनको लाने की मांग क्यों हो रही? जवाबः संजय झा के बयानों से साफ लग रहा है कि निशांत कुमार के राजनीति में आने के चॉंसेज ज्यादा हैं। एक्सपर्ट इसके पीछे 3 बड़े कारण बताते हैं… 1. नीतीश के बाद JDU में कोई पॉपुलर लीडर नहीं 2003 में बनी JDU बीते 22 साल से नीतीश की छतरी के नीचे ही चल रही है। नीतीश कुमार ही चेहरा हैं। पार्टी में कोई और नेता नहीं, जिसकी पकड़ पूरे बिहार में हो। दूसरे नंबर पर जरूर कुछ नेता पहुंचे हैं, लेकिन वे भी लंबे समय तक टिक नहीं पाए हैं। 2. बड़े लीडर हैं भी तो कोर वोटर कोईरी-कुर्मी समुदाय से नहीं JDU में नीतीश के अलावा 4 बड़े नेता हैं। केंद्रीय मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह, राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा, विजय कुमार चौधरी और अशोक चौधरी। इनमें ललन सिंह और विजय चौधरी भूमिहार हैं। संजय झा ब्राह्मण है और अशोक चौधरी दलित। जबकि, JDU का कोर वोटर कुर्मी-कोईरी और EBC हैं। सीनियर जर्नलिस्ट संजय सिंह बताते हैं, ‘फिलहाल बिहार की राजनीति में पिछड़ा तबका हावी है। नीतीश पिछड़े तबके के बड़े नेता हैं। ऐसे में वे किसी फॉरवर्ड को टॉप लीडरशिप नहीं सौंपना चाहेंगे। इससे अति पिछड़ा तबका लालू की तरफ शिफ्ट हो सकता है। अगर दलित नेता के नाते अशोक चौधरी को विरासत सौंपी जाती है, तो अति पिछड़ी जातियां उन्हें अपना नेता नहीं मानेगी।’ 3. निशांत के नाम पर विवाद नहीं, पार्टी बच सकती है पॉलिटिकल एनालिस्ट अभिरंजन कुमार कहते हैं, ‘भारत की पॉलिटिक्स को देखें तो यहां पॉलिटिकल साइंस की वेबर थ्योरी काम करती है। इसके मुताबिक, लीडरशिप 3 तरह की होती है- अथॉरिटेटिव मने आधिकारिक, डेमोक्रेटिक मने लोकतांत्रिक और कैरिस्मैटिक मने करिश्माई। सवाल-3ः क्या निशांत आएंगे तो नीतीश कुमार राजनीति छोड़ेंगे? जवाबः फिलहाल इसकी संभावना कम है। इसके 3 अहम कारण हैं… पॉलिटिकल एनालिस्ट अभिरंजन कुमार कहते हैं, ‘निशांत कुमार अभी पूरी तरह राजनीतिज्ञ नहीं बने हैं। ऐसे में उनके आने के तुरंत बाद नीतीश कुमार राजनीति से हट जाएंगे, इसकी संभावना बहुत कम है।’ अभिरंजन कुमार कहते हैं, ‘निशांत को नीतीश कुमार अपनी देखरेख में ट्रेंड करने की सोचेंगे। वह पहले उनको पार्टी की गतिविधियों में लगाएंगे। एक-दो साल ट्रेनिंग दी जाएगी। उसके बाद पार्टी की कमान सौंप सकते हैं। हां, इतना जरूर है कि 2029 से पहले नीतीश कुमार राजनीति छोड़कर पूरी तरह निशांत को कमान सौंप सकते हैं।’ सवाल-4: अगर निशांत नहीं आए तो क्या JDU खत्म हो जाएगी? जवाबः JDU का अस्तित्व पूरी तरह खत्म तो नहीं होगा, लेकिन यह पार्टी धीरे-धीरे सिकुड़ सकती है और दूसरे दलों में समा जाने का खतरा बढ़ जाएगा। सीनियर जर्नलिस्ट संजय सिंह कहते हैं, ‘JDU की पहचान और ताकत नीतीश कुमार के नेतृत्व से जुड़ी है। अगर वे स्पष्ट उत्तराधिकारी घोषित नहीं करते हैं तो नेतृत्व को लेकर अंदरूनी खींचतान और गुटबाजी बढ़ सकती है। कार्यकर्ताओं और समर्थकों में असमंजस फैल सकता है।’ सवाल-5ः जिन पार्टियों ने समय से अपना नेता घोषित नहीं किया, उनका क्या हुआ? जवाबः भारत की राजनीति में करिश्माई नेतृत्व का प्रचलन रहा है। लोगों और कार्यकर्ताओं के दिलो-दिमाग में नेताओं का प्रभाव रहा है। यही कारण है कि बिना परिवार की पार्टियों के भविष्य पर खतरा मंडराता रहा है। कांग्रेस की स्थिति ही देख लीजिए, पार्टी गांधी परिवार के बिना चल नहीं पाती। भारतीय राजनीति की विडंबना है कि जिन पार्टियों ने समय से कदमताल कर अपना नेता घोषित नहीं किया है, वो खत्म हो गई हैं। इसे उदाहरण से समझिए…


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