नालंदा में पराली जलाने पर जिला प्रशासन ने दोषी किसानों और लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की है। जिला पदाधिकारी कुंदन कुमार के निर्देश पर कृषि विभाग ने एक व्यापक अभियान चलाया है, जिसके तहत अब तक 25 किसानों का डीबीटी पंजीकरण रद्द किया गया है। जिला कृषि पदाधिकारी की ओर से की गई कार्रवाई में एक प्राथमिकी दर्ज की गई है, जबकि एक सहायक समन्वयक को निलंबित कर दिया गया है। इसके अलावा तीन प्रखंड कृषि पदाधिकारियों का वेतन रोक दिया गया है और पांच कर्मचारियों का वेतन एवं मानदेय भी रोका गया है। कई अधिकारियों और कृषि समन्वयकों से स्पष्टीकरण भी मांगा गया है। जिला पदाधिकारी ने इस समस्या पर गहरा खेद व्यक्त करते हुए कहा कि जो भी पदाधिकारी, कृषि समन्वयक या किसान सलाहकार दोषी पाए जाएंगे, उन्हें तत्काल बर्खास्त या निलंबित किया जाएगा। इस मामले में किसी भी प्रकार की ढील नहीं बरती जाएगी। सख्त कार्रवाई की चेतावनी प्रशासन ने चेतावनी देते हुए कहा है कि पराली जलाने वाले चिन्हित किसानों का पंजीकरण रद्द कर दिया जाएगा। पंजीकरण रद्द होने पर किसान तीन वर्षों तक कृषि विभाग की सभी योजनाओं के लाभ से वंचित हो जाएंगे। इसके अतिरिक्त, फसल अवशेष जलाने वाले किसानों के खिलाफ सीआरपीसी की धारा 133 के तहत भी कार्रवाई की जाएगी। पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, फसल अवशेष जलाने से मिट्टी के पोषक तत्वों की भारी क्षति होती है और लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं का सफाया हो जाता है। इससे निकलने वाले एरोसॉल के कण वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं, जिससे सांस लेने में समस्या, आंखों में जलन और गले की तकलीफ जैसी स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती है। पुआल के सही उपयोग के लाभ कृषि विभाग के अनुसार, अगर एक टन पुआल को जमीन में मिलाया जाए तो मिट्टी में 20 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30 से 40 किलोग्राम पोटाश, 5 से 7 किलोग्राम सल्फर और 600 से 800 किलोग्राम ऑर्गेनिक कार्बन की प्राप्ति होती है। यह मृदा स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। धावा दल का गठन जिला पदाधिकारी के निर्देशानुसार जिला, अनुमंडल और प्रखंड स्तर पर धावा दलों का गठन किया गया है। ये दल पूरे जिले में भ्रमणशील रहकर पराली जलाने वाले किसानों और संबंधित कर्मचारियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई कर रहे हैं। जागरूकता अभियान प्रशासन ने पंचायत भवनों में बैनर लगाने, सरकारी भवनों पर दीवाल लेखन और माइकिंग के माध्यम से व्यापक प्रचार-प्रसार शुरू किया है। साथ ही स्पेशल कस्टम हायरिंग सेंटर का प्रभावी संचालन भी किया जा रहा है, ताकि किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उचित साधन उपलब्ध हो सकें। कंबाइन हार्वेस्टर मालिकों और चालकों से शपथ पत्र लेने की व्यवस्था भी की गई है, जिसमें वे फसल अवशेष न जलाने का वचन देंगे। जिला प्रशासन से अनुमति प्राप्त करने के बाद ही हार्वेस्टर मशीनों का संचालन किया जा सकेगा।
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