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नालंदा में पांच दिवसीय लिटरेचर फेस्टिवल का शुभारंभ:राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने किया उद्घाटन; कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी पहुंचे

नालंदा लिटरेचर फेस्टिवल (NLF) की शुरुआत हो गई है। मुख्य अतिथि के बिहार के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। समारोह में तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के सांसद और लेखक शशि थरूर भी मौजूद हैं। पांच दिवसीय इस साहित्यिक आयोजन में देश-विदेश के प्रतिष्ठित साहित्यकारों, चिंतकों और कलाकारों की भागीदारी होगी। पहले दिन प्रतिभागियों के लिए प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के खंडहरों और ह्वेनसांग स्मारक परिसर की विशेष यात्रा का आयोजन किया गया है। दिन का समापन बिहार के सांस्कृतिक मंडल की ओर से प्रस्तुत लोक कला प्रदर्शन से होगा। महोत्सव की खास बात यह है कि इसमें बिहार की क्षेत्रीय भाषा भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका और बज्जिका को विशेष महत्व दिया गया है। 22 दिसंबर को होने वाले सत्रों में इन भाषाओं के संरक्षण, उनकी साहित्यिक परंपरा और आधुनिक युग में उनकी प्रासंगिकता पर गहन चर्चा होगी। ‘शब्दों की सोशल फैक्ट्री’ शीर्षक सत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और रोबोटिक्स के दौर में भाषा की स्थिति पर चर्चा होगी। जबकि ‘बोली से परे, हम भाषाएं हैं’ सत्र में मैथिली और भोजपुरी की काव्य परंपराओं की तुलनात्मक समीक्षा की जाएगी। प्रतिष्ठित वक्ताओं की भागीदारी कार्यक्रम के पहले दिन पद्म विभूषण डॉ. सोनल मानसिंह, आईआईसी के निदेशक के. एन. श्रीवास्तव, चंचल कुमार, सचिव, डीओएनईआर मंत्रालय, अमिताभ कांत, पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी, नीति आयोग और लेखक, नालंदा विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सचिन चतुर्वेदी और नव नालंदा महावीर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह शामिल होंगे। पूर्वोत्तर की भाषाई विविधता 23 दिसंबर को पूर्वोत्तर भारत की भाषाई विविधता पर केंद्रित कई सत्र आयोजित होंगे। ‘सात बहनों की भाषाओं की यात्रा’ में असमिया, बोडो, खासी, मिजो, मणिपुरी जैसी भाषाओं पर चर्चा होगी। प्रोफेसर गणेश नारायणदास देवी और अन्य विशेषज्ञ तिब्बती-बर्मन, इंडो-आर्यन और ताई-कादई भाषा परिवारों पर अपने विचार रखेंगे। महोत्सव केवल साहित्य तक सीमित नहीं है। 24 दिसंबर को ‘चोखा और गमछा से परे’ शीर्षक सत्र में बिहार की पारंपरिक खान-पान और जीवनशैली पर चर्चा होगी। इसके अलावा बिहार और पूर्वोत्तर की कला परंपराओं पर लाइव प्रस्तुतियां भी होंगी। भारतीय प्रवासी समुदाय, विशेष रूप से मॉरीशस, सूरीनाम और कैरेबियाई देशों में बसे गिरमिटिया मजदूरों के वंशजों की सांस्कृतिक विरासत पर भी एक विशेष सत्र रखा गया है। समावेशी दृष्टिकोण महोत्सव की प्रगतिशील सोच इस बात से झलकती है कि इसमें ट्रांसजेंडर पात्रों के साहित्यिक प्रतिनिधित्व, महिला लेखन और धार्मिक ग्रंथों की समकालीन प्रासंगिकता जैसे समसामयिक मुद्दों पर भी चर्चा होगी।
प्रतिदिन सुबह बिहार स्कूल ऑफ योगा मुंगेर की ओर से योग और ध्यान की गतिविधियां संचालित की जाएंगी। शाम को सांस्कृतिक कार्यक्रमों में जसने-महफिल और डॉ. सोनल मनसिंह का देव कथा नृत्य प्रस्तुति शामिल हैं।


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