नालंदा में पराली जलाने को लेकर जिला प्रशासन ने सख्त कदम उठाए हैं। दोषी किसानों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश जारी किए हैं। जिला पदाधिकारी कुंदन कुमार ने संबंधित विभागों को तत्काल प्रभाव से दंडात्मक कार्रवाई शुरू करने का आदेश दिया है। जिला कृषि विभाग के अनुसार, पराली जलाने वाले चिन्हित किसानों का DBT पंजीकरण तत्काल रद्द किया जा रहा है। पंजीकरण रद्द होने की स्थिति में किसान तीन वर्षों तक कृषि विभाग की सभी योजनाओं के लाभ से वंचित हो जाएंगे। यह कदम किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए उठाया गया है। लापरवाह अधिकारियों पर भी गिरेगी गाज जिला पदाधिकारी ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि विभाग स्तर पर दोषी पाए जाने वाले कृषि समन्वयक और किसान सलाहकारों को अविलंब बर्खास्त या निलंबित किया जाए। बार-बार फसल अवशेष जलाने की शिकायत वाले क्षेत्रों के संबंधित कृषि समन्वयक को भी उत्तरदायी बनाया जाएगा। पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव कृषि विभाग के अनुसार, फसल अवशेष जलाने से मिट्टी के पोषक तत्वों की भारी क्षति होती है और लाभकारी सूक्ष्म जीवाणुओं का सफाया हो जाता है। इससे निकलने वाले एरोसॉल के कण वायु प्रदूषण बढ़ाते हैं और सांस की बीमारियां, आंखों में जलन तथा गले की समस्याएं उत्पन्न करते हैं। कंबाइन हार्वेस्टर के संचालन पर विशेष निगरानी जिला प्रशासन ने कंबाइन हार्वेस्टर के संचालकों के साथ बैठक कर उन्हें जागरूक करने का निर्देश दिया है। सभी कंबाइन हार्वेस्टर का संचालन जिला प्रशासन से अनुमति प्राप्त करने के बाद ही किया जा सकेगा। फसल कटाई से पूर्व मालिकों और चालकों से फसल अवशेष न जलाने का शपथ पत्र भी लिया जाएगा। धावा दल का गठन, CrPC की धारा 133 के तहत कार्रवाई जिला पदाधिकारी के निर्देश पर जिला, अनुमंडल और प्रखंड स्तर पर धावा दल का गठन किया जा रहा है। ये दल पूरे जिले में भ्रमणशील रहेंगे और पराली जलाने वाले किसानों के विरुद्ध CrPC की धारा 133 के तहत कठोर कार्रवाई सुनिश्चित करेंगे। जागरूकता अभियान तेज प्रशासन ने पंचायत भवनों में बैनर लगाने, सरकारी भवनों में दीवाल लेखन और माइकिंग के माध्यम से व्यापक प्रचार-प्रसार का निर्देश दिया है। साथ ही, पिछले साल स्थापित स्पेशल कस्टम हायरिंग सेंटरों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने पर भी जोर दिया गया है। पुआल को मिट्टी में मिलाने से होता है फायदा कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, एक टन पुआल जमीन में मिलाने से 20-30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 30-40 किलोग्राम पोटाश, 5-7 किलोग्राम सल्फर और 600-800 किलोग्राम ऑर्गेनिक कार्बन की प्राप्ति होती है। यह मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने का सबसे प्रभावी और पर्यावरण हितैषी तरीका है। जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया कि किसानों के बीच फसल अवशेष प्रबंधन का व्यापक प्रचार-प्रसार किया जा रहा है, ताकि इस समस्या को जड़ से समाप्त किया जा सके। उप निदेशक और सहायक निदेशक कृषि सहित सभी अनुमंडल कृषि पदाधिकारी इसका कड़ाई से अनुपालन सुनिश्चित करेंगे।
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