‘मैंने फोन किया तो उन्होंने कहा कि अभी काम कर रहा हूं। बाद में बात करूंगा। उनका फोन नहीं आया। आज लाश आ गई।’ इतना कहते-कहते अरविंद की पत्नी बेहोश हो जाती हैं। पास मौजूद एक महिला उसे संभालती है। चेहरे पर पानी छिड़कती है। होश में आते ही वह पति के शव से लिपटती है। फिर से वही रट लगाने लगती है। चंद मिनट में फिर बेहोश हो जाती है। अरविंद उन 6 लोगों में से थे, जिनकी मौत महाराष्ट्र के नागपुर में एक हादसे में हो गई। रविवार को शव गांव लाए गए। ये सभी मरने वाले कौन हैं? नागपुर क्या करने गए थे? घटना कैसे घटी? परिवार वाले क्या कह रहे हैं? यह जानने के लिए हम मुजफ्फरपुर और पश्चिम चंपारण जिले में स्थित मृतकों के घर पहुंचे। पहले जानिए नागपुर में क्यों मरे बिहार के 6 लोग महाराष्ट्र के नागपुर के एक फैक्ट्री में शुक्रवार (19 दिसंबर) को पानी की टंकी फटने से बिहार के 6 मजदूरों की मौत हो गई। हादसे में 9 मजदूर घायल हुए। सीएम नीतीश कुमार ने सभी मृतकों के परिवार को 2-2 लाख रुपए और महाराष्ट्र सरकार ने 5-5 लाख रुपए मुआवजा देने की घोषणा की है। ये सभी नागपुर के बूटीबोरी महाराष्ट्र इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (MIDC) में काम करते थे। अवादा इलेक्ट्रो प्राइवेट लिमिटेड के सोलर पैनल निर्माण फैक्ट्री में पानी की टंकी फटने से घटना घटी। मृतकों की पहचान अरविन्द कुमार (26), बुलेट कुमार, सुधांशु कुमार (23), अजय कुमार (25), शमीम अंसारी (42) और अशोक पटेल (42 ) के रूप में हुई है। पानी टंकी की टेस्टिंग चल रही थी, किसी ने हटने को नहीं कहा सबसे पहले हम पश्चिम चंपारण जिले के चनपटिया प्रखंड के मिश्रौली पटखौली पहुंचे। इस गांव के दो मजदूर अरविन्द और बुलेट की मौत हुई है। इसी गांव के रहने वाले मनन आलम इस घटना में बच गए। वह लाश लेकर वापस घर आए। हमने उनसे बात की। मनन आलम ने बताया, ‘फैक्ट्री में काम चल रहा था। मेरे गांव के अरविंद और बुलेट भी वेल्डिंग कर रहे थे। शुक्रवार को पहली बार काम करने गया था। पानी की टंकी की टेस्टिंग चल रही थी। वहीं, बगल में कुछ लोग वेल्डिंग कर रहे थे। किसी ने नहीं बताया कि टेस्टिंग चल रही है, दूर हट जाओ।’ उन्होंने बताया, ‘मैं भी वहीं काम कर रहा था तभी अचानक तेज आवाज हुई और टंकी फट गया। हम लोग कुछ समझ पाते इससे पहले ही चारों तरफ मलवा और पानी फैल गया। टंकी फटने के बाद पानी का प्रेशर इतना ज्यादा था कि जो चपेट में आया मर गया।’ मलबे में दबकर मर गए लोग, हमने घायलों को पहले निकाला आपकी जान कैसे बची? इस सवाल पर मनन आलम ने कहा, ‘मैं थोड़ा दूर था तो बच गया। अरविंद और बुलेट को भागने का मौका नहीं मिला। मौके पर ही उनकी मौत हो गई। कैंप पूरी तरह गिर गया। कई लोग तो उसके अंदर दबकर मर गए।’ उन्होंने बताया, ‘मैंने देखा कि कई लोग कैंप के मलबे के नीचे दबे हैं। वे दर्द से चीख रहे थे। हमलोगों ने पहले जिंदा लोगों को निकाला। मैं अपने गांव के लोगों को भी खोज रहा था, लेकिन वे दिख नहीं रहे थे।’ मनन ने बताया, ‘कैंप के मलबे को हटाने के लिए JCB आई। उसने मलबा हटाया तो मैंने अरविंद और बुलेट की लाश देखी। हमारे गांव से 15 लोग वहां काम करने गए थे। मैंने घर पर फोन कर घटना की जानकारी दी। पोस्टमॉर्टम के बाद लाश लेकर घर आया हूं।’ 4 भाई-बहनों में सबसे बड़ा था अरविंद, 2020 में हुई थी शादी मनन आलम से बातचीत के बाद हम अरविंद के घर पहुंचे। जमीन पर बैठी महिलाएं रो रहीं थीं, बिलख रहीं थी। दरवाजे पर अरविंद के पिता मोहन ठाकुर बेटे की मौत की खबर मिलने के बाद से बेसुध पड़े थे। अरविंद की पत्नी का रो-रो कर बुरा हाल था। वह बार-बार बेहोश होती, होश आने पर चीखने-चिल्लाने लगती। हमने उनसे बात करने की कोशिश की, लेकिन वह कुछ बोल नहीं सकीं। बस एक ही रट लगाए हुई थी, ‘साहेब हम त फोन कलिअइ र.. कहलथिन कि अभी काम हई, बाद में बात करम..। इतना कहते-कहते वह फिर से बेहोश हो गईं। हमने अरविंद के पिता से बात की। उन्होंने कहा, ‘अरविंद वेल्डिंग की ठेकेदारी करता था। उनके साथ गांव के 15 लड़के गए थे, वे साथ काम करते थे। वह 4 भाई बहनों में सबसे बड़ा था। उसकी शादी 2020 में हुई थी। परिवार में इकलौता कमाने वाला था।’ घर की गरीबी देख कमाने गया बुलेट, आई लाश अरविंद के घर से महज 100 मीटर दूरी पर बुलेट का घर है। गांव से लोगों ने बताया कि बुलेट दो भाई-बहनों में सबसे छोटा है। हम दरवाजे पर पहुंचे तो देखा लोगों की भीड़ जुटी थी। सभी रो रहे थे। हमने परिवार वालों से बात की। पता चला कि परिवार की माली हालात ठीक नहीं थे। घर की गरीबी देख बुलेट 12वीं की पढ़ाई के बाद कमाने गया था। लौटकर उसकी लाश आई। बुलेट की बहन ने कहा, ‘घर में पैसे की तंगी देखकर बुलेट कमाने गया था। कहता था दीदी तुम्हारी शादी बड़े घर में करूंगा। मैं जो मांगती वह दिला देता था। बोला था कि होली में आऊंगा तो मोबाइल दूंगा।’ उन्होंने कहा, ‘घटना के एक रात पहले घर पर फोन किया था। बोला कि मम्मी से बात करनी है। मैंने फोन मम्मी को दे दी। आवाज सही से नहीं आ रही थी तो बोला कि बाद में बात करता हूं। ना मुझसे बात हो पाई और ना मम्मी से। फिर खबर मिली कि उसकी मौत हो गई।’ बेटे ने कहा था पापा आप जो कहेंगे खरीदकर लाऊंगा हमने बुलेट की मां से बात करने की कोशिश की, लेकिन वह बोलने की हालत में नहीं थीं। रो-रो कर उनका बुरा हाल था। हमने बुलेट के पिता इंद्रजीत शाह से बात की। उन्होंने बताया, ‘पहले तो मुझे बेटे की मौत की बात पर विश्वास नहीं हुआ। अपने बड़े बेटे से कहा कि एक बार कन्फर्म करो कि क्या हुआ है? आज तो लाश आ गई।’ उन्होंने कहा, ‘बुलेट 14 दिसंबर को ही काम करने गया था। जाने के पहले कहता था कि पापा मन लगाकर काम करूंगा। आप जो कहेंगे वह खरीदकर लाऊंगा।’ रोते-रोते बेहोश हो रही थी अजय की पत्नी आगे हम मुजफ्फरपुर के करजा इलाके के गबसरा गांव में पहुंचे। इस गांव में भी मातम पसरा था। लोग बात कर रहे थे कि अभी एक महीने पहले ही लड़के कमाने गए और इस तरह की घटना हो गई। हम अजय के दरवाजे पर गए। लोगों की भीड़ इकट्ठा थी। अजय का झोपड़ी नुमा घर है। घर के अंदर से रोने की आवाज आ रही थी। अजय की मां, पत्नी और बहन रोते-रोते बेहोश हो रही थीं। अजय तीन भाइयों में सबसे बड़ा था। परिवार की पूरी जिम्मेदारी उसी के कंधों पर थी। पिता गांव में राजमिस्त्री का काम करते हैं। बेटा कहकर गया था- कमाकर आऊंगा तो बड़ी बहन की शादी करेंगे हमने अजय की मां रेशमी देवी से बात की। उन्होंने कहा, ‘10 नवंबर को बेटा कमाने गया था। बोला था कि आऊंगा तो बड़ी बहन की शादी करनी है। उससे रोज बात होती थी। घटना वाले दिन मुझे उससे बात करने का काफी मन हो रहा था। फोन किया तो किसी ने नहीं उठाया। मुझे बेचैनी होने लगी। दूसरे एक साथी ने फोन कर बताया कि अजय की मौत हो गई है।’ उन्होंने कहा, ‘घर की जिम्मेदारी उसपर थी। उसकी कमाई से घर का खर्च चल रहा था। अभी हाल ही में गांव के एक व्यक्ति से कर्ज लेकर एक कट्ठा जमीन लिया है। बेटा तो चला गया, अब कर्ज कौन चुकाएगा। जब भी फोन से बात होती थी तो कहता था कि अबकी बार आऊंगा तो बहन की शादी कराऊंगा, कर्ज के पैसे चुकाऊंगा।’ अजय की बहन अंजली बोली, ‘भैया कहते थे कि खूब मन लगाकर पढ़ाई करो। जितने पैसे लगेंगे खर्च करूंगा, लेकिन जहां तक पढ़ोगी पढ़ाऊंगा।’ अजय की छोटी बहन तनु कुमारी ने रोते-रोते कहा, ‘अब भैया नहीं रहे, राखी किसके हाथ में बांधूंगी।’ दो छोटे-छोटे बच्चों के सिर से उठ गया पिता का साया अजय की पत्नी पूजा घटना के समय मायके में थीं। खबर मिलते ही ससुराल पहुंचीं। अजय के दो छोटे बच्चे हैं। बड़ा बेटा दिव्यांश (3) और बेटी परी (1)। पूजा ने कहा, ‘दो दिन पहले ही उनसे बात हुई थी। उन्होंने कहा था कि घर चली जाओ। मैंने कहा की छोटे-छोटे बच्चे हैं। ठंड का समय है। ठंड कम होते ही चली जाऊंगी। इससे वह नाराज हो गए थे। बोले कि घर नहीं गईं तो कभी फोन नहीं करूंगा। इसके बाद बात नहीं हुई।’ उन्होंने कहा, ‘वह रोज सुबह करीब 7 बजे कॉल करते थे, लेकिन उसके बाद फोन नहीं आया। घटना वाले दिन मैंने कई बार फोन किया, लेकिन कॉल रिसीव नहीं हुआ। फिर सूचना मिली कि अब वह इस दुनिया में नहीं रहे।’ दो माह पहले अपने चाचा के साथ काम करने गया था सुधांशु अजय के घर से करीब 50 मीटर दूर सुधांशु कुमार का घर है। वह पूर्व मुखिया हितलाल सहनी का भतीजा था। सुधांशु भी अजय के साथ काम करने गया था। इसके पिता नागेश्वर सहनी गांव में ही काम करते हैं। हमने हितलाल सहनी से बात की। उन्होंने कहा, ‘गबसरा गांव के कई युवक महाराष्ट्र के नागपुर, पुणे समेत अन्य शहरों में काम करते हैं। जहां हादसा हुआ, वहां इसी गांव के करीब 15 युवक काम करते थे। सुधांशु करीब दो माह पहले अपने चाचा जीतलाल साहनी के साथ गया था। वह 5 साल से महाराष्ट्र में काम कर रहे हैं।’ हितलाल ने कहा, ‘अब किसी को इस बात का अंदाजा नहीं था कि ऐसी घटना हो जाएगी। घटना की जानकारी मिलने के बाद से सुधांशु के पिता बदहवास हालत में पड़े हैं। उसकी मां प्रमिला देवी का रो-रोकर बुरा हाल है।’
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