औरंगाबाद में खेतों से करीब 80 प्रतिशत धान की फसल कटकर घरों और खलिहानों में पहुंच चुकी है। लेकिन सरकारी स्तर पर धान की खरीद अब भी नाममात्र ही हो पाई है। जिले में धान अधिप्राप्ति के लिए 182 पैक्स और 10 व्यापार मंडल का चयन किया गया है। धान खरीद शुरू हुए एक महीना से अधिक समय पूरा हो चुका है, बावजूद इसके अब तक कुल लक्ष्य का मात्र 6.39 प्रतिशत ही धान ही खरीदा जा सका है। धान खरीद की प्रक्रिया शुरू होने के बाद पहले 30 दिनों तक पैक्स, व्यापार मंडल और राइस मिलों के बीच रस्साकस्सी चलती रही। सीधा असर धान खरीद पर पड़ा। राइस मिल, सहकारी बैंक और पैक्स की अंदरूनी कलह में पिसकर धान खरीद की रफ्तार बेहद धीमी हो गई। स्थिति यह है कि 32 दिन बीत जाने के बावजूद लक्ष्य का महज 7 प्रतिशत भी धान की खरीद नहीं हो सकी है। किसानों का कहना है कि वो बिचौलियों के हाथ से धान बेचने को मजबूर है। हाल के दिनों में आवश्यक बैठकों के बाद सभी समितियों को धान खरीद तेज करने के निर्देश दिए गए हैं। खरीद में लापरवाही पर अधिकारियों और समिति सदस्यों को सख्त चेतावनी भी दी गई है। धान खरीद शुरू होते ही पैक्स और व्यापार मंडलों का राइस मिलों से टकराव शुरू हो गया है। 68% चावल नहीं ठहरने पर नहीं लिया जा रहा धान धान में गुणवत्ता को लेकर समितियों की ओर से किसानों का धान लेने से मना कर दिया जा रहा है। नियमानुसार पैक्स अध्यक्ष किसानों से जो धान खरीदते हैं, उसे मिलिंग करा कर एसएफसी को देना पड़ता है। एक क्विंटल धान के बदले एसएससी को 68 किलोग्राम चावल देना होता है। लेकिन औरंगाबाद में एक क्विंटल धान को मिलिंग (कुटाई) कराने पर महज 60 किलोग्राम ही चावल ठहर रहा है। ऐसे में समितियों को 8 किलोग्राम चावल यानी 12 किलोग्राम अधिक धान मिलरों को देना होगा। क्योंकि समितियों की ओर से लिए गए एक क्विंटल धान के एवज में मिलर को एसएफसी को 68 किलोग्राम चावल देना होता है। अगर किसान धान बेचने पैक्स में जा रहे हैं, तो पहले उनके धान की गुणवत्ता की जांच की जा रही है। 68 किलोग्राम चावल नहीं ठहरने पर समितियों की ओर से धान का कम रेट लगाया जा रहा है। ऐसी स्थिति में किसानों को एमएसपी का फायदा नहीं मिल पा रहा है। 64 पैक्स अब भी डिफॉल्टर, नहीं हो रही धान खरीद कोऑपरेटिव अध्यक्ष संतोष कुमार सिंह ने बताया कि विभाग की गलती के कारण जिले के 64 पैक्स अब भी डिफाल्टर हैं। पूरा सीएमआर निर्धारित समय पर जमा करने के बावजूद भी एसएफसी की ओर से बिल नहीं भेजा गया है। जिसके कारण उन्हें डिफाल्टर की सूची में रखा गया है। दूसरी ओर समितियों को अब तक धान खरीद के लिए कैश क्रेडिट नहीं मिला है। जिसके कारण परेशानी हो रही है। सभी समितियां को एक-एक लॉट का पैसा दिया गया था। उस राशि से धान की खरीद करने के बाद संबंधित बीसीओ विभाग को रिपोर्ट करेंगे, इसके बाद दूसरे लॉट की राशि दी जा रही है। इस प्रक्रिया में तीन से चार दिन का समय लग रहा है। ऐसी स्थिति में धान अधिप्राप्ति प्रभावित हो रहा है। अधिक उत्पादन के बावजूद इस पर जिले को मिला कम लक्ष्य कृषि विभाग के अनुसार जिले में इस बार धान का उत्पादन पिछले साल की तुलना में अधिक हुआ है। पूरे जिले में लगभग 12 लाख मीट्रिक टन धान का उत्पादन हुआ है। लेकिन जिले को महज 1.70 हेक्टेयर धान खरीद का लक्ष्य मिला है। जबकि पिछले साल 10 लाख मीट्रिक टन धान का उत्पादन हुआ था और अधिप्राप्ति का लक्ष्य लगभग तीन लाख मीट्रिक टन से अधिक था। कोऑपरेटिव अध्यक्ष संतोष कुमार सिंह ने बताया कि कृषि विभाग की ओर से क्रॉप कटिंग के बाद अनुमानित धन्य उत्पादन का आंकड़ा भेजा जाता है, उसी के आधार पर धान अधिप्राप्ति का लक्ष्य विभाग की ओर से निर्धारित किया जाता है। भूलवश जिले में 7 लाख मीट्रिक टन धान उत्पादन का आंकड़ा भेज दिया गया। जिसके कारण लक्ष्य कम मिला है। वरीय अधिकारियों को इससे अवगत कराया गया है। उम्मीद है भूल को सुधार करते हुए धान अधिप्राप्ति के लक्ष्य को बढ़ाया जाएगा सघन निगरानी के निर्देश जिला प्रशासन ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि धान खरीद में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। संबंधित अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि किसी भी स्तर पर बिचौलियों या व्यापारियों की भूमिका न हो। धान अधिप्राप्ति की राशि सीधे किसानों के बैंक खाते में भेजी जाएगी। प्रशासन ने 24 से 48 घंटे के भीतर किसानों को भुगतान करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। 1700-1800 रुपए क्विंटल में बिक रहा धान जिले के खेत-खलिहानों में धान की भरपूर आवक है, लेकिन सरकारी खरीद नहीं होने के कारण किसान मजबूरी में निजी व्यापारियों को धान बेच रहे हैं। दुखद स्थिति यह है कि जहां पैक्स में धान का सरकारी समर्थन मूल्य 2369 रुपए प्रति क्विंटल है, वहीं बाजार में किसान 1700 से 1800 रुपए प्रति क्विंटल में धान बेचने को मजबूर हैं। इससे किसानों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। जिले के बुमरू गांव निवासी किसान संजय कुमार सिंह ने बताया कि इस बार धान की अच्छी उत्पादन की उम्मीद थी। समय पर पटवारी भी हुई थी। लेकिन अंतिम समय में हुई बारिश ने सब खेल बिगाड़ दिया। उत्पादन पहले से कम हुआ है। सरकारी स्तर पर धान बिक्री की कोई व्यवस्था नहीं है। क्रय केंद्र खुला नहीं है। जिसके कारण उन्हें औने पौने कीमत पर धान बेचना पड़ा। सहकारिता पोर्टल से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार जिले के 192 पैक्सों और व्यापार मंडलों में धान क्रय केंद्र खोले गए हैं। अब तक 1102 किसानों ने करीब 10916.867 मीट्रिक टन धान बेचा है। जबकि, जिले के कुल 40294 किसानों ने सरकारी स्तर पर धान बिक्री के लिए ऑनलाइन आवेदन किया है। कई पैक्सों में अभी तक खाता भी नहीं खुला है। अधिकारी बोले कैमरा पर कुछ नहीं बोलेंगे जिला सहकारिता पदाधिकारी मनोज कुमार ने कैमरे पर पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। हालांकि, डीएम अभिलाष शर्मा ने एक सप्ताह के अंदर दो बार टास्क फोर्स की बैठक बुलाया है। बैठक के दौरान धान अधिप्राप्ति में पिछड़े प्रखंड के प्रखंड सहकारिता पदाधिकारी को फटकार भी लगाया गया, लेकिन स्थिति में सुधार नहीं हो सका।
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